हाईटेक आविष्कारों और आधुनिक समय वाली 20वीं सदी में भी पुरानी पद्धति, नुस्खों का वजूद और लोगों का इनपर विश्वास बरकरार है। भले ही डॉक्टर या विज्ञान में इन पुराने उपचारों के कारगर होने का कोई प्रमाण न हो लेकिन आज भी हर घर में इनका जमकर इस्तेमाल किया जाता है। एक ही ऐसी प्राचीनतम पद्धति और चिकित्सा का नाम है कपिंग थैरेपी जो आज के समय में बड़े पैमाने पर विश्व स्तरीय एथलीटों द्वारा अपने शरीर को मैच के लिए फिट और प्रदर्शन सुधारने के लिए उपयोग की जाती है। इसे अरबी में हिजामा, चीनी और अंग्रेजी में कपिंग, मिस्र में बिल कर्न और भारत में रक्त मोक्षण नाम से जाना जाता है। खेल की दुनिया में इस तकनीक का इस्तेमाल काफी वक्त चला आ रहा है लेकिन 2016 रियो ओलंपिक में अमेरिकी तैराक माइकल फेल्प्स के इस्तेमाल के बाद यह थैरेपी बड़े पैमाने पर दुनिया के खिलाड़ियों द्वारा आजमाई जा रही। आईये जानते हैं कपिंग थैरेपी के बारे में।
कपिंग की मदद से कई स्वास्थ्य समस्याओं से निजात पाई जा सकती है, जैसे यह शरीर से विषैले पदार्थों को बाहर करने में मदद करती है। यह न सिर्फ एक पारंपरिक चीनी चिकित्सा पद्धति है बल्कि इस इलाज को प्राचीन मिस्र, उत्तर अमेरिकी भारतीयों, यूनानियों द्वारा तथा अन्य एशियाई और यूरोपीय देशों में इस्तेमाल किया गया। भारत में यह रक्त मोक्षण के नाम से प्रचलित है।
क्या है कपिंग ?
मुख्य तौर पर कपिंग के दो प्रकार के होते हैं, ड्राई कपिंग और ब्लीडिंग या वैट कपिंग। सामान्यतौर पर वैट कपिंग उपचारात्मक व चिकित्सीय दृष्टिकोण पर आधारित होती है और ड्राई कपिंग चिकित्सीय तथा आराम पहुंचाने वाली पद्धति पर काम करती है। यह मसाज़ के बिल्कुल विपरित होती है क्योंकि इसमें दवाब देने के लिए बजाए सक्शन का इस्तेमाल किया जाता है जिसमें छोटे छोट कप से सहारे टिशू, स्कीन और मांसपेशियों को खींचा जाता है। इस तकनीक के इस्तेमाल के बाद खिलाड़ी की पीठ या इलाज़ वाली जगह पर बैंगनी रंग के धब्बे बन जाते हैं जो देखने में बिल्कुल घांव की तरह लगते हैं लेकिन किसी प्रकार का दर्द नहीं होता और जल्द ही यह निशान भी मिट जाते हैं।
कपिंग के प्रकार
इस पद्धति का इस्तेमाल एथलीट या खिलाड़ी मुख्यत शरीर की मांसपेशियों के खिंचाव की समस्या, दर्द से निजात पाना, ज्यादा ब्लड प्रेशर, मांसपेशियों को रिलैक्स करना, शरीर से विषैले पद्रार्थों को निकालना विशेष कर स्लीप डिस्क एवं साईटिका में बहुत लाभदायक होता है। इस पद्धति के बाद एथलीट अपने आपको तरोताज़ा और ज्यादा स्वस्थ महसूस करते हैं और उनके प्रदर्शन पर भी इसका असर पड़ता है।
एथलीटों के लिए रामबाण
फुटबॉल लीग प्लेयर डेमर्कस वेयर और ओलंपियन अलेक्जेंडर नाडौर, नेटली कफलिन और माइकल फेल्प्स समेत कई अमेरिकी खेल हस्तियों द्वारा इस पद्धति का उपयोग करने से इसका बड़ा असर खेल जगत में देखने को मिला है। 2016 रियो ओलंपिक के दौरान तैराक माइकल फेल्प्स के शरीर बार गोल लाल रंग के चकत्ते देखे गए थे जिसके बाद से कई एथलीटों ने इस पद्धति का उपयोग करना शुरु कर दिया। बता दें कि फेल्प्स ने रियो ओलंपिक में 5 गोल्ड और 1 सिल्वर मेडल जीता था।
फेल्प्स ने 2016 ओलंपिक में कपिंग का लिया सहारा
आपको जानकर हैरानी होगी विश्व विख्यात कपिंग थैरेपी का इस्तेमाल केवल एथलीट ही नहीं बल्कि क्रिकेटर भी करते हैं। इसका सबसे बड़ा उदाहरण भारत के तेज़ गेंदबाज़ मोहम्मद शमी हैं जो अक्सर मसल्स रिलैक्सेशन और रिक्वरी के लिए कपिंग थैरेपी का सहारा लेते हैं। वहीं इंग्लैंड के स्पिन गेंदबाज़ मोईन अली भी अपनी बॉडी को रिलैक्स करने के लिए कपिंग थैरेपी लेते हैं।
कपिंग की रिंग में क्रिकेटर्स भी
थैरेपी का बढ़ता इस्तेमाल और लोगों में जानकारी के अभाव होने के कारण इसका दुष्प्रभाव भी देखा गया है। बतौर स्पोर्ट्स वेबसाइट स्पोर्ट्सावाला की टीम आपसे गुजारिश करती है कि बिना किसी प्रोफेशनल की सलाह यह थैरेपी कतई न लें। हाल ही में चीन के एक मसाज़ सेंटर में एक महिला ने अपने कंधे की कपिंग थैरेपी रोज़ लेना शुरु कर दी थी जिसके चलते उनकी पीठ में लगभग 7 छेद हो गए और महिला बुरी तरह ज़ख्मी हो गई थी। यह मसाज़ सेंटर की कपिंग थैरेपी में गड़बड़ी के कारण हुआ था। ऐसे में इस थैरेपी को डॉक्टर और प्रोफेशनल्स की निगरानी में ही लेना चाहिए।
मसाज़ सेंटर नहीं प्रोफेशनल्स से कराएं थैरेपी