खेल में प्रैक्टिस और फिटनेस का मेल किसी भी खिलाड़ी को जीत की दहलीज तक पहुंचाने का मद्दा रखता है। बीते समय की बात हो या मौजूदा दौर की, क्रिकेटरों ने अपने खेल को बेहतर बनाने के लिए फिटनेस पर बहुत ध्यान दिया है। लेकिन जब इस फिटनेस को हासिल करने के लिए दमदार ट्रेनिंग की बात आती है तो इसका इतिहास रोमांचित कर देता है। दरअसल, फिटनेस ट्रेनिंग का मतलब सिर्फ व्यायाम नहीं होता। इसके लिए हर एक चीज़ का पूरा चार्ट बनता है। मसलन क्या खाना है, कितना खाना है और कितनी देर व्यायाम करना है। हर खिलाड़ी इस चार्ट के मुताबिक ही अपनी दिनचर्या को जीता है।
शुरुआती दौर में फिटनेस को अधिक महत्व नहीं दिया जाता था। लेकिन समय के साथ फिटनेस को हासिल करने का तरीका भी बदला और इसको मापने का पैमाना भी। यहां हम आपको क्रिकेट में खिलाड़ियों की फिटनेस में आए वर्ष दर वर्ष बदलाव के बारे में बताने जा रहे हैं। ध्यान से पढ़ें क्योंकि यह सफर की रोचक किस्सों से भरा हुआ है।
फिटनेस के प्रति पहला कदम
साल 1950-51 में एशेज खेलने के लिए इंग्लैंड की टीम जहाज से सफर करती थी। इस दौरान टीम सहयात्रियों का मनोरंजन करने का काम भी करती थी। तभी यहां एक खास खेल खेला जाता था, जिसमें खिलाड़ी एक दूसरे के ऊपर से उछलते थे। इसमें होने वाली मेहनत का असर देखते हुए खिलाड़ियों की फिटनेस पर बात शुरू हुई। क्योंकि जब सभी खिलाड़ी ऐसा करने का प्रयास करते थे तो कुछ इसे बड़ी आसानी से कर लेते तो कुछ फेल हो जाते। हालांकि इससे पहले क्रिकेटर मैच से एक दिन पहले फुटबॉल को अपनी ट्रेंनिंग का हिस्सा बना चुके थे।
काउंटी क्लब ने शामिल किया वार्मअप
लंकाशायर के काउंटी क्लब ने साल 1973 में सबसे पहले ट्रेनिंग सेशन का कल्चर शुरू किया। इस दौरान खिलाड़ी बॉडी स्ट्रेचिंग और वार्मअप करते थे। उस दौर में ट्रेनिंग को सभी खिलाड़ी मनोरंजन का हिस्सा मानते थे। जिसका वो जमकर मज़ा लेते और टाइम पास करते।
ट्रेनर और फिजियो की एंट्री
क्रिकेट में धीरे-धीरे फिटनेस की अहमियत बढ़ती गई और इसी के साथ टीमों के साथ ट्रेनर और फिजियो का जुड़ना शुरू हो गया। इस बदलाव के बाद खिलाड़ियों में फिटनेस के प्रति जागरुकता बढ़ने लगी। साल 1977 और 78 में ऑस्ट्रेलिया के ट्रेनर डेनिस वेट वेस्टइंडीज की टीम से जुड़े और खिलाड़ियों को फिट रहने की ट्रेनिंग देने लगे। उस दौर में सुबह और शाम को पैदल चलने के साथ ही खिलाड़ियों ने वार्म अप को अपने फिटनेस रूटीन का हिस्सा बनाया।
अस्सी के दशक में फिटनेस
इस दौरान कुछ खिलाड़ियों ने कोर एक्सरसाइज को अपनी रूटीन का हिस्सा बनाया। लेकिन इससे बहुत अधिक फायदा नहीं मिलने के कारण यह उतना अधिक लोकप्रिय नहीं हुआ। इसी दशक में क्रिकेटरों ने फोम रोलर से अपने शरीर को मसाज देना भी शुरू किया था।
साइकलिंग और ट्रैकिंग
इंग्लैंड टीम मैनेजमेंट ने साल 1997 में खिलाड़ियों को फिट रखने के लिए उन्हें साइकल चलाने और पर्वत पर चढ़ने को कहा। इसके लिए उन्होंने कैनरी आईलैंड में ट्रेनिंग कैंप भी आयोजित किया। इस एक्सरसाइज से खिलाड़ियों को बहुत फायदा हुआ। जिसके बाद इसे कई देशों की टीम ने भी ट्राई किया।
ट्रेनिंग में आया ट्विस्ट
क्रिकेट में जब सीमित ओवर का खेल शुरू हुआ तो इसे बहुत लोकप्रियता हासिल हुई। इसको नजरअंदाज़ नहीं किया जा सकता था। इसलिए इस खेल के साथ इसकी कोचिंग में भी बड़ा बदलाव आया। ऑस्ट्रेलिया ने जॉन बुकानन को टीम का कोच घोषित किया। उन्होंने क्रिकेट में फिटनेस और खेल में बहुत एक्सपेरिमेंट किए। जिसकी वजह से साल 2006 और 07 में उनकी मिलट्री स्टाइल ट्रेनिंग को खूब ख्याति हासिल हुई। इस ट्रेनिंग का एक हिस्सा बहुत बेहतरीन साबित हुआ। इसमें सभी ऑस्ट्रेलियाई खिलाड़ी कार में धक्का लगाने का काम करते थे। ऐसा करने से टीम में एकता बढ़ी और सभी खिलाड़ियों की ताकत में भी इजाफा हुआ।
क्रिकेट में बढ़ा ताकत का महत्व
इंग्लैंड में क्रिकेटरों को उनकी ताकत बढ़ाने के लिए एक खास ट्रेनिंग की शुरुआत की गई। जिसमें मैदान पर बड़े टायर रखे गए और खिलाड़ियों से उन्हें पलटने का काम दिया गया। इसके बाद इन्हीं टायर पर जोर-जोर से हथौड़ा भी चलवाया गया। इसके बाद क्रिकेट में उस दौर की शुरुआत हुई जिसमें खिलाड़ियों को ताकत के सहारे खेल खेलने की ट्रेनिंग दी जाने लगी।
आधुनिक तरीकों का बढ़ा चलन
ताकत के बाद खिलाड़ियों की फिटनेस में स्ट्रेंथ का नया अध्याय जोड़ा गया। जिसके लिए क्रिकेटरों को रजिस्टेंट की ट्रेनिंग दी जाने लगी। इस ट्रेंनिंग में क्रिकेटर पैड पहनकर ग्राउंड पर दौड़ लगाते। बेल्ट लगाकर ट्रेनर के साथ दौड़ते। मैदान में इन एक्सरसाइज़ को करने के बाद खिलाड़ियों ने जिम में भी समय देना शुरू किया।
इसकी शुरुआत साल 2001 के आस-पास हुई। धीरे-धीरे इसे अंतरराष्ट्रीय स्तर पर पहचान मिलने लगी और सभी क्रिकेटरों ने जिम में समय देना शुरू कर दिया। सबसे पहले सभी खिलाड़ी ट्रेडमिल पर दौड़कर पसीना बहाते और फिर जिम में मौजूद भिन्न-भिन्न मशीनों पर अपनी क्षमता को बढ़ाते हुए पसीना बहाते। अब आगे क्रिकेट में फिटनेस हासिल करने का यह सफर किस हद तक जाएगा, ये देखने वाली बात होगी। क्योंकि इससे आने वाली युवा पीढ़ी को भी बहुत कुछ सीखने को मिलेगा।