श्रीलंका क्रिकेट के लिए 90 का दशक बेहद खास रहा था। इस दशक में न सिर्फ लंकाई टीम में एक से एक दिग्गज दिखे, बल्कि टीम ने विश्व स्तरीय खेल भी दिखाया। इस गोल्डन एरा का सबसे खास लम्हा रहा 17 मार्च 1996 का दिन। जब लंकाई चीतों ने दमदार ऑस्ट्रेलियाई टीम को पटखनी देकर पहली बार विश्व विजेता का ताज पहना था। ऑस्ट्रेलिया वेस्टइंडीज को और श्रीलंका भारत को हराकर फाइनल में पहुंचा था। लाहौर के गद्दाफी स्टेडियम में श्रीलंका ने टॉस जीतकर पहले गेंदबाजी का फैसला किया। प्रमोद विक्रमसिंघे, चामिंडा वास, मुथैया मुरलीधरन जैसे गेंदबाज और सनत जयसूर्या, अरविंद डिसिल्वा जैसे ऑलराउंडर की मौजूदगी के बाद भी श्रीलंका ऑस्ट्रेलिया पर ज्यादा शिकंजा नहीं कस सका।
कप्तान मार्क टेलर ने 74, रिकी पोंटिंग ने 45 रन की अहम पारी खेली। डीसिल्वा ने इन दोनों को चलता करने के साथ ही तीन विकेट झटके और लंका की कुछ हद तक मैच में वापसी कराई। ऑस्ट्रेलिया के लिए निचले क्रम में स्टुअर्ट लॉ (22) और माइकल बेवन (36) ने उपयोगी पारी खेली और टीम का स्कोर 241 रन तक पहुंचाया।
इस मजबूत स्कोर के खिलाफ श्रीलंका की शुरुआत खराब रही। अब तक टूर्नामेंट में धुआंधार ओपनिंग करती रही सनत जयसूर्या (9) और रोमेश कालूवितर्णा (6) की जोड़ी 23 रन तक पवेलियन में थी। ऐसे में लंका के विश्व विजयी अभियान की कमान संभाली असानका गुरुसिंहे और अनुभवी अरविंद डीसिल्वा ने। दोनों ने तीसरे विकेट के लिए 125 रन की यादगार साझेदारी की। विश्व कप फाइनल में इस तरह की साझेदारी कर दोनों ने क्रिकेट फैन्स के दिल जीत लिए। 148 रन के स्कोर पर गुरुसिंहे (65 रन, 99 गेंद) आउट हुए, तो डीसिल्वा का साथ देने कप्तान अर्जुन रणतुंगा आ गए। दोनों ने टीम को और कोई झटका नहीं लगने दिया।
डीसिल्वा ने शानदार शतक (107 रन नाबाद, 124 गेंद) लगाया और रणतुंगा (47 रन नाबाद, 37 गेंद) ने भी तेजी से रन बटोरे। श्रीलंका ने कंगारुओं पर हावी रहते हुए 47वें ओवर में ही लक्ष्य हासिल कर लिया। सात विकेट से मैच जीतने के साथ ही लंका ने विश्व विजेता का ताज पहना। ये पहला मौका था, जब श्रीलंका ने वर्ल्ड कप जीता। अरविंद डिसिल्वा को शानदार ऑलराउंड प्रदर्शन (42-3, 107 रन) के कारण मैन ऑफ द मैच चुना गया।