कुछ करने के लिए न तो किसी उम्र की जरुरत होती है न ही किसी खास समय की। कहते हैं सही काम करने के लिए कोई समय गलत नहीं होता। उन्होंने भी समय का इंतज़ार नहीं किया। पहले तो उन्होंने चलना शुरू किया फिर दौड़ना, उसके बाद साइकिलिंग शुरू की और फिर ट्रेकिंग। उनके पैरों में मानो कमाल की ऊर्जा थी। 80 दशक गुजर जाने के बाद आमतौर पर बुजुर्ग को पार्कों में अपने नाती-पोतों के साथ व्यस्त देखा जाता है। बेंगलुरु के 86 वर्षीय सेवानिवृति रेलवे कर्मचारी चाहते तो रेलवे की नौकरी से रिटायर होने के बाद अपनी पूरी जिंदगी आराम से पेंशन पर गुजार सकते थे। लेकिन वो थे ही कुछ अलग किस्म के।

Picture Source :- Facebook / Bylahalli Raghunath Janardan
साल 1995 में 62 साल की उम्र में उन्होंने मिर्गी जैसी बीमारी का डटकर मुकाबला किया, दो साल बाद 64 साल की उम्र में वो साइकलिंग करने लगे। 68 साल की उम्र में उन्होंने ट्रेकिंग करने का फैसला किया। तो 72 वर्ष की आयु में, उन्होंने दौड़ना शुरू कर दिया। अपने 23 साल की कलावधि में उन्होंने लगभग 4 लाख किमी साइकिल चलाई। आप यकीन करने के पहले एक बार शक जरूर करेंगे कि 4 लाख किलोमीटर की दूरी साइकिल से तय करना भला कैसे संभव हो सकता है। तो आपको बता दें कि इस नामुमकिन से दिखने वाले कारनामे को मुमकिन कर दिखाया है बिलाहल्ली रघुनाथ जनार्दन ने।

Picture Source :- Facebook / Bylahalli Raghunath Janardan
68 साल की उम्र में जहाँ आमतौर पर लोग घुटनों के दर्द से कराह रहे होते हैं वहीं उम्र के उस पड़ाव में जनार्दन ने जब पहाड़ की चोटियों को पार करना शुरू किया तो पहाड़ियां मानो उनके सामने झुकने लगी। उन्होंने माउंट कैलाश सहित लगभग 20 बार हिमालय की यात्रा की जिसमें सियाचिन पास, कारगिल, लेह, द्रास, साथ ही साथ कंचनजंगा भी शामिल है। इसके साथ ही उन्होंने लगभग 14 बार पश्चिमी घाटों की यात्रा भी की है। 64 साल की उम्र में लोग बिस्तर से उठ नहीं पाते लेकिन उन्होंने इस उम्र में साइकलिंग करनी शुरू कर दी थी। 72 वर्ष की आयु में जहाँ लोग मुश्किल से चल नहीं पाते उस दौर में उन्होंने दौड़ना शुरू कर दिया। 16 पूर्ण मैराथन, 64 अर्ध-मैराथन और 10 किमी की 60 दौड़ स्पर्धाओं को उन्होंने पूरा किया।

Picture Source :- Facebook / Bylahalli Raghunath Janardan
उनके इस कारनामे को देखते हुए कर्नाटक सरकार ने उन्हें ‘केम्पेगौड़ा’ पुरस्कार से सम्मानित किया गया था। मैराथन, ड्यूथलॉन और साइक्लोथॉन में भाग लेने वाले रघुनाथ से प्रभावित होकर जयनगर डाकघर ने उनकी तस्वीर से एक विशेष स्मारक डाक टिकट जारी किया। अपनी उम्र की सीमा को बौना बनाते हुए उन्होंने हर वो काम किया जिसे करने के लिए युवाओं के पसीने छूट जाते हैं। मिर्गी की बिमारी को आँखे दिखातें हुए जब उन्होंने साइकिल चलानी शुरू की तो उनकी रफ़्तार को देखते हुए मुश्किलों से भरे हुए सफर उन्हें सलाम करने पर मजबूर हो गए।

Picture Source :- Facebook / Bylahalli Raghunath Janardan
जनार्दन के इस कारनामे को सुनकर दिमाग के कोने में एक सवाल सहज रूप से पनपने लगता है कि भला इस उम्र में वो अपने आपको कैसे फिट रखते हैं, ऐसा क्या खाते हैं। इस उम्र में जहाँ छड़ी का सहारा लिए बिना चला नहीं सकता वहीं वो बड़े-बड़े कारनामें किए जा रहे हैं। आखिरकार क्या खाते हैं वो ? उनकी दिनचर्या में शामिल चीजों को जानने की उत्सुकता बढ़ने लगी। युवाओं को शर्मिंदा कर देनेवाले इस कारनामे पर वो कहते हैं कि “मैं सुबह 5:30 बजे उठता हूं और सबसे पहले शहद के साथ गर्म पानी पीता हूं। उसके बाद ब्रश करता हूँ। सुबह के नाश्ते में खजूर, बादाम और अखरोट जैसे सूखे मेवों का सेवन करता हूँ। दोपहर के खाने में हल्का भोजन और रात के खाने में एक गिलास दूध और दो केला पर्याप्त होता हैं।”

Picture Source :- Facebook / Bylahalli Raghunath Janardan
‘द बेटर इंडिया’ से बातचीत में उन्होंने अपनी उपलब्धियों के बारे में बताया, “साल 1995 में बेटी के साथ एक सफर के दौरान जब मैं अचानक से बेहोश हुआ तो मुझे नजदीकी नर्सिंग होम में भर्ती कराया गया। उस दौरान मुझे मिर्गी की बिमारी का पता चला। इस बिमारी से बचने के लिए डॉक्टरों ने मुझे आजीवन दवाइयों के सेवन की सलाह दी। यह जानकर मुझे बेहद निराशा हुई कि मुझे घर पर अकेला नहीं छोड़ा जा सकता। यह सुनते ही मैं टूटकर बिखर गया था कि अब मुझे अपने आप से घर के बाहर निकलने की अनुमति नहीं मिलेगी ।”
उन दिनों को याद करते हुए जनार्दन कहते हैं कि “मैं दिन के अधिकांश समय में निष्क्रिय और आलसी रहने लगा था। इस दौरान हमने कई विशेषज्ञों से संपर्क किया। सभी ने आजीवन दवा लेने की सलाह दी। मैं सोचता था कि लोग कब तक मेरा ख्याल रखेंगे। मैं किसी पर बोझ नहीं बनना चाहता था। मुझे यकीन था कि मुझे मिर्गी नहीं है। शुरुआती प्रतिरोध के बावजूद, परिवार के दबाव के आगे मुझे झुकना पड़ा और दवा की शरण में नतमस्तक होना पड़ा। लेकिन मैंने भी तय कर लिया था कि मैं आजीवन दावाओं पर निर्भर नहीं रहूंगा।”

Picture Source :- Facebook / Bylahalli Raghunath Janardan
जब आपके इरादें बुलंद हो तो धधकते हुए अंगारों को भी ठंडा होना पड़ता है। तो भला इस बिमारी की क्या बिसात थी कि वो जनार्दन के आड़े आ जाती। एक दिन जब घरवाले सो रहे थे, तब वो सुबह 4:30 बजे बिस्तर छोड़ अकेले घूमने निकल गए। शुरुआत में सिर्फ चलना शुरू किया। प्रतिदिन सुबह उठाकर 20 किलोमीटर तक की दूरी नापनी शुरू की। बहुत कम लोगों को ही पता था कि उनकी नई यात्रा की शुरुआत होने जा रही है। फिर एक दिन घर में पोते की साइकिल उठाई और निकल पड़े। पहले दिन 77 किलोमीटर की दूरी तय की। अगले दिन, बिना किसी को बताए, उसने अपने गाँव ब्यलहल्ली में 132 किलोमीटर साइकिल चलाई।

Picture Source :- Facebook / Bylahalli Raghunath Janardan
उनके इस कारनामे पर उन्हें परिवार वालों की भारी नाराज़गी का सामना करना पड़ा। सभी को नज़रअंदाज़ करते हुए उन्होंने अपना नित्यक्रम जारी रखा। इस दौरान उन्हें कई बार लूटपाट की घटनाओं से भी रूबरू होना पड़ा। ग़नीमत थी कि कोई अप्रिय घटना नहीं हुई। उनके साहस के आगे सभी थक, हार चुके थे। उनकी इस ज़िंदादिली को देखकर तो यही कहा जा सकता है कि “न उम्र की सीमा हो….न कर्मों का हो बंधन।”