कहते हैं अगर आपके इरादे मजबूत हो तो उम्र कोई मायने नहीं रखती। उम्र का नंबर महज काउंट करने के लिए होता है। पूर्व भारतीय फुटबॉलर इनइवलाप्पिल मणि विजयन जिन्हें आईएम विजयन के नाम से भी जाना जाता है। कहने के लिए तो वो 50 वर्ष के हो गए हैं लेकिन आज भी वो किसी युवा खिलाड़ी की तरह ही गोल दागते हैं। उम्र के इस पड़ाव में उनकी फुर्ती को देखकर लोगों को आज भी आश्चर्य होता है। उम्र के पांच दशक पार करने के बाद जहाँ लोग घुटने के असहाय दर्द को झेल रहे होते हैं वहीं विजयन खेल के मैदान में दौड़कर फुटबॉल को किक मार रहे हैं। कभी भारत का पेले कहे जाने वाले विजयन की फिटनेस वकाई में गौर करने लायक है।
दोहा में ‘कतर इंडियन एसोसिएशन फ़ॉर फुटबॉल’ द्वारा साल 2019 के चैंपियंस लीग का आयोजन किया गया था। हालाँकि यह महज एक खेल प्रदर्शनी थी लेकिन इस प्रदर्शनी में एक शानदार नज़ारा देखने मिला जो सभी को अपनी ओर आकर्षित करने पर मजबूर कर दिया था। लोग स्तब्ध होकर देखते रहे कि एक 50 वर्ष का इंसान किसी युवा खिलाड़ी की तरह बड़ी स्फूर्ति के साथ मैदान में गोल दाग रहा है। उनका यह वीडियो सोशल मीडिया में भी वायरल हुआ। इस वीडियो में उन्हें देख कर ऐसा लग रहा था मानो उन्होंने रुकना सीखा ही नहीं है।

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उनकी शारीरिक बनावट और फिटनेस ऐसी है कि आज के युवा उन्हें देख कर बंगले झाकने लगते हैं। आज भी वो 90 मिनट तक फुटबॉल खलने की कुवत रखते हैं। उनकी इस बेमिसाल बॉडी की सफलता का राज़ है उनका डेली रूटीन जिसे वो कड़ाई से पालन करते हैं। फुटबॉल खेलने से लेकर सिल्वर स्क्रीन तक और असल ज़िंदगी में बतौर पुलिस की नौकरी करने वाले विजयन की फिटनेस का हर कोई मुरीद बनने लगा है। दिलचस्प बात यह है कि जब भी हम भारतीय फुटबॉल के दिग्गजों की बात करते हैं, तो हमारे दिमाग में सबसे पहले बाईचुंग भूटिया, सुनील छेत्री और नेविल डिसूजा के नाम आते हैं। भारतीय फुटबॉल के इतिहास में विजयन एक ऐसे शख्स हैं जिनके नाम कई उपलब्धियां है। इस अद्भुत फुटबॉलर के जीवन और उनकी उपलब्धियों पर एक नज़र।
साल 1989 में राष्ट्रीय टीम के लिए पदार्पण कर नेहरू कप, प्री-ओलंपिक, प्री-वर्ल्ड कप, साउथ एशियन फुटबॉल फेडरेशन कप जैसे विभिन्न अंतरराष्ट्रीय टूर्नामेंटों में टीम का प्रतिनिधित्व करने वाले विजयन को ‘ब्लैक बक’ नाम से जाना जाता है।

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विजयन घरेलू सर्किट में 200 गोल दागने वाले एकमात्र भारतीय फुटबॉलर हैं। आँकड़ों पर गौर करें तो उनका औसत 0.739 है जबकि भूटिया और सुनील छेत्री का औसत क्रमशः 0.384 और 0.458 है।
अपने सफल और शानदार करियर के दौरान विजयन को साल 2003 में अर्जुन अवार्ड से नवाज़ा गया। इसके साथ ही वो यह पुरस्कार जीतने वाले केरल के पहले खिलाड़ी बने। उनके खेल को देखते हुए उन्हें साल 1993, 1997 और 1999 में ‘इंडियन प्लेयर ऑफ द ईयर’ से सम्मनित किया गया।

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साल 2002 में विजयन ने फिल्मों में भी अपना हुनर दिखाया। जयराज द्वारा निर्देशित फिल्म ‘शांथम’ में उन्होंने खलनायक – सुपर सुब्बारायण की भूमिका निभाई। इस फिल्म में उनकी भूमिका को खूब सराहा गया। इस फिल्म को राष्ट्रीय पुरस्कार से सम्मानित किया जा चुका है। आज वो केरल सिनेमा के चर्चित अभिनेता बन चुके हैं।

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खेल के प्रति उनके समर्पण और योगदान को देखते हए उन्हें केरल पुलिस विभाग में सर्कल इंस्पेक्टर के पद पर तैनात किया गया है। अपने एक जीवन में फुटबॉल के मैदान के बाहर सोडा बेचने से लेकर मैदान में गोल दागने तक और फिल्मों में अभिनय करने से लेकर समाज को सही राह दिखाने की जिम्मेदारी को पार पाने तक के सफर में विजयन के सकारात्मक रवैए से हमे प्रेरणा लेनी चाहिए।
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