ये कहानी उन लोगों के लिए है जो आज भी बेटियों को बोझ समझते हैं। इस कहानी से उन लोगों को प्रेरणा लेनी चाहिए जिनके घर में आज भी बेटों के मुकाबले बेटियों से दुय्यम दर्जे का व्यवहार किया जाता है। और ये कहानी समाज के उन बुद्धिजीवियों के लिए जो आज भी बेटियों के सपनों को बेड़ियों से बांधे रखना चाहते हैं। ये कहानी हैं पंजाब स्थित तरनतारन के मुग़लचक्क गाँव में रहने वाले उस पिता की होनहार बेटियों की जो अपने खेल से दुनिया भर में देश का डंका बजा रही हैं।
पेशे से ऑटो चालक पिता की वो लाडलिया हैं जो अपने खेल के दम पर पिता का नाम रोशन कर रही हैं। वैसे ये कहना गलत नहीं होगा कि आज लड़कियां हर मुकाम पर लड़कों के साथ कदमताल कर रही हैं। ये वही बेटियां है जिन्हें आज भी कई लोग ये जानकार दुनियां में नहीं आने देते कि ये तो बेटी है। आज वही देश का नाम रोशन कर रही हैं।
खैर यहां हम बात कर रहे थे उस कहानी की जिसकी नायिका उस बाप की परियां है जो बेहद गरीब है। वैसे तो पिता सरबंत सिंह ऑटो चलाकर अपने परिवार का गुजर-बसर मुश्किल से कर पाते हैं। लेकिन गरीब पिता ने हर उस मुश्किलात का सामना करते हुए अपने सपनों को जीवित रखने की भरसक कोशिश की, जो उसकी नन्हीं लाडली के आँखों में पनप रहे थे। आज जब भी कोई इनकी तीनों बेटियों की प्रशंसा करता है या फिर उन्हें सम्मानित करता है तो सरबंत सिंह और उनकी पत्नी की ख़ुशी का ठिकाना नहीं रहता। वो बस अपनी बेटियों को आगे बढ़ता हुआ देखना चाहते हैं।

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आपको बता दें सरबंत की बड़ी बेटी राजविंदर कौर इंटरनेशनल हॉकी खिलाड़ी है। फिलहाल वो टीम इंडिया में आने की तैयारी के मद्देनज़र मैदान पर खून-पसीना एक कर रही है। हालाँकि वो बैंकाक, थाईलैंड में आयोजित जूनियर एशिया कप में खेल चुकी हैं। राजविंदर की दो छोटी बहनें हैं, मनदीप कौर और वीरपाल कौर। मनदीप राष्ट्रीय स्तर की हॉकी खिलाड़ी हैं तो वीरपाल भी नेशनल लेवल रेसलर हैं, फ़िलहाल मनदीप अभी कॉलेज में हैं और वीरपाल कौर रेसलिंग की कोचिंग ले रही हैं। आपको बता दें वीरपाल साल 2017 में जूनियर नेशनल में गोल्ड मेडल जीत चुकी हैं।
सरबंत कहते हैं कि “अपनी बेटियों की ख़ुशी के लिए मैंने उन्हें खेलने दिया, मैंने कभी भी नहीं सोचा था कि वो इस ऊंचाई तक पहुंचेंगी और देश के लिए मेडल जीतेंगी। यह सब देखकर खुशी होती है कि मेरी बेटियां आज देश के लिए खेलती हैं और मेडल जीतकर तिरंगे की शान बढ़ाती हैं”।
तीनो बेटियों की सफ़लता में जितना हाथ उनके पिता का है उससे कई गुना ज़्यादा हाथ उनकी माँ बलविंदर कौर का है। जो अपनी बेटियों को घर से 10 किमी. दूर श्री गुरु अर्जन देव हॉकी एकेडमी में रोजाना हॉकी की कोचिंग के लिए ले जाया करती थीं। बकौल बलविंदर, “घर के हालात ठीक नहीं थे, लेकिन फिर भी हमने बेटियों को आगे बढ़ने के लिए प्रोत्साहित किया। हमने बेटियों को बोझ नहीं समझा”। वो कहती हैं कि कोच शरणजीत सिंह और पूर्व ओलंपियन दलजीत ढिल्लों ने हर संभव मदद की।
आज ये तीनों बहने मेडल जीतकर देश का सीना गर्व से चौड़ा कर रही हैं और अपनी सफलता का सारा श्रेय पिता सरदार सरबंत सिंह को देती हैं, जिन्होंने अपनी बेटियों का हर कदम पर साथ दिया और उन्हें औरों की तरह बोझ नहीं समझा।