छत्तीसगढ़ के नक्सली प्रभावित इलाकों का नाम सुनते ही जेहन में बंदूक की गोलियों की दनदनाहट कानों में गूंजने लगती है। जहाँ आज भी लोग शिक्षा और मुख्यधारा से भटके हुए हैं। कहते हैं खेल से समाज में चमत्कारिक तरीके से बदलाव लाया जा सकता है। इसका जीता जागता उदहारण है छत्तीसगढ़ का बस्तर जिला जो नक्सलियों से भरा पड़ा है। लेकिन खेल के प्रति चाह ने आज इस इलाके में बदलाव की एक लौ जलाने का काम किया है। कभी नक्सलियों के खौफ में जीने वाली छत्तीसगढ़ स्थित बस्तर के कोंडागांव की लड़कियों की हॉकी टीम अब देश का नाम रोशन करने जा रही है। शुरुआत में इन बच्चियों को जूते बांधने की भी जानकारी नहीं थी। आज वो बंदूक को छोड़कर हॉकी स्टिक थाम रही हैं।

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कह सकते हैं कि बेटी पढाओं, बेटी बचाओं के बाद अब बेटी खेलाओ के नारे को हकीकत में तबदील होते देखा जा रहा है। उन्हें बंदूक छोड़ हॉकी थामने के लिए प्रेरित कर रही है देश की अर्धसैनिक बल आईटीबीपी। जानकारी के मुताबिक कोंडागांव जिले के मरदापाल के कन्या आश्रम में रहकर पढ़ाई कर रही जनजाति की 42 छात्राएं जिनकी उम्र 17 साल से कम है, उन्हें आईटीबीपी ने अपने स्तर पर प्रशिक्षण देना प्रारंभ किया। लगातार 2 साल तक अथक मेहनत कर आईटीबीपी के जवानों ने इन बेटियों को हॉकी के गुर सीखाएं। नतीज़तन छत्तीसगढ़ की इन बालिकाओं की खुद की अपनी हॉकी टीम है और इन्हें अंडर-17 की टीमों में खेलने का मौका मिलने जा रहा है। स्पोर्ट्स अथॉरिटी ऑफ इंडिया ने भी इनमें से 6 बच्चियों को प्रशिक्षण के लिए चयनित किया है।
बात करें मरदापाल कन्या आश्रम में रह रही बच्चियों की तो वो नक्सल हिंसा से ग्रसित परिवारों की बच्चियां हैं। इनमें से कई बच्चियों के परिवार अत्यंत गरीबी की दशा में आज भी अपना जीवनयापन कर रहे हैं। इन बालिकाओं को शारीरिक अभ्यास, फिटनेस और खेल की प्रारंभिक बारीकियों को सिखाने के बाद धीरे-धीरे इन्हें हॉकी के मैदान पर उतारा गया। बुनियादी सुविधाओं के आभाव में भी छात्राओं को हॉकी जैसे खेल में विकसित और प्रशिक्षित करके आईटीबीपी ने नारी सशक्तिकरण की दिशा में एक महत्वपूर्ण पहल की है। वो लड़किया जो खेल से दूर-दूर तक परिचित नहीं थीं उन्हें पहले तो सुरक्षा बलों ने पढ़ाई से जोड़ा और फिर खेल के मैदान में भी हुनर दिखाने के लिए प्रेरित किया।

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छत्तीसगढ़ के अबूझमाड़ से सटे इन इलाकों की दयनीय परिस्थिति है। यहाँ के लोग इक्कीसवीं सदी के भारत में विकास के तमाम दावों को खोखला बताते हुए आज भी चिकित्सा, शिक्षा और मुख्यधारा से जुड़े अन्य विकास कार्यों से कोसों दूर हैं। इन इलाकों में सामाजिक और आर्थिक रूप से पिछड़ों की तादात लाखों में है। ऐसे माहौल में रहकर इन बच्चियों ने जो दिलेरी दिखाई है वो काबिलेतारीफ़ है। राज्य और राष्ट्रीय स्तर पर इन बालिकाओं ने कई बड़ी प्रतियोगिताओं में भाग ले कर यह साबित कर दिया है कि वो किसी से कम नहीं हैं।
छत्तीसगढ़ के जिस इलाके में नक्सलियों के बंदूक और गोला-बारूद की धमक होती थी, आज वहां सुरक्षा बलों ने स्थानीय लड़कियों के खेल के जज्बे को आगे बढ़ाते हुए हॉकी की एक ऐसी टीम तैयार कर दी है जो लोगों के लिए प्रेरणा देने का काम कर रही है।