क्रिकेट के खेल में जो मुकाम डॉन ब्रेडमैन को हासिल है हॉकी की दुनिया में वही मुकाम मेजर ध्यानचंद को हासिल है। दोनों ही खिलाड़ी लगभग एक ही दौर में एक साथ दो अलग- अलग खेल खेले और महान नहीं बल्कि महानतम खिलाड़ी कहलाए। हॉकी के खेल में मेजर ध्यानचंद को जादूगर की उपाधि दी गई क्योंकि उनके जैसा महान खिलाड़ी आज तक हॉकी के इतिहास में पैदा नहीं हुआ।
हॉकी के मैदान में गेंद पर ध्यानचंद का नियंत्रण इतना बेहतरीन था कि एक बार यदि गेंद उनके स्टिक पर आ जाए तो गोल पोस्ट तक पहुंच कर ही स्टिक का साथ छोड़ती थी। हॉकी और गेंद के साथ उनके कमाल को देखकर लोगों ने उस दौर में एक कहावत कहनी शुरू कर दी थी कि गेंद ध्यानचंद की स्टिक में आकर ऐसे चिपक जाती है मानों उसमें चुंबक लगा हो।
यहां तक की जर्मनी के तानाशाह एडोल्फ हिटलर ने भी ध्यानचंद के खेल का लोहा माना। 1928 में एम्सटर्डम में हुए ओलिंपिक खेलों में वह भारत की ओर से सबसे ज्यादा गोल करने वाले खिलाड़ी रहे। उस टूर्नमेंट में ध्यानचंद ने 14 गोल किए। एक स्थानीय समाचार पत्र में लिखा था, ‘यह हॉकी नहीं बल्कि जादू था। और ध्यान चंद हॉकी के जादूगर हैं।
ध्यानचंद के खेल को देखते हुए एक बार तो हॉलैंड की टीम ने ऐसी हरकत कर दी जिसके लिए बाद में उन्हें शर्मिंदा होना पड़ा। हुआ ये कि हॉलैंड ने हॉकी स्टिक में चुंबक लगने वाली कहावत को सच मान लिया और मैच से पहले ध्यानचंद का स्टिक तोड़कर यह चेक किया कहीं वाकई में उसमें चुंबक तो नहीं है। हॉलैंड की इस हरकत के बाद उनकी काफी जग हंसाई हुई और मेजर ध्यानचंद दूसरी स्टिक के साथ भी उतने ही शानदार तरीके से खेलते रहे और वैसे ही गोल करते रहे।