वैसे तो सब किस्मत के धनी नहीं होते, वो बिरले ही होते हैं जिनपर मुक़द्दर मेहरबान होता है। ऐसे भी कई हुए हैं जो अपने मौजूदा काम से ही खुश हैं। दो जून की रोटी का जुगाड़ और सरकारी नौकरी, बस लाइफ सेट। लेकिन उसे तो बुलंदियों को छूना था। आसमान में चमकते उस ध्रुव तारे की तरह था वो जो करोड़ों के बीच में भी रहकर अपनी अलग पहचना बनाना चाहता था। रेल्वे में क्लर्क की मामूली सी नौकरी, हजारों की तनख्वाह तक ही नहीं सीमित रहना चाहता था वो। उसे तो करोड़ों में खेलना था। मोहित चिल्लर, जी हाँ, यही नाम है उनका। प्रो कब्बड्डी लीग से पहले रेल्वे में क्लर्क के पद पर कार्यरत वो ऐसे कबड्डी प्लयेर हैं जो अपने हुनर के दम पर महज 24 वर्ष की आयु में करोड़पति बने हैं। इस खेल के प्रति उनका जुनून और उम्दा प्रदर्शन ही है जो उन्हें आज इस मुकाम पर पहुँचाया है।

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बात करे मोहित की तो वो देश की राजधानी दिल्ली के छोटे से गांव नजिमपुर के रहने वाले हैं। बचपन से ही उनका रुझान कबड्डी की तरफ था। उनके चाचा अंतर्राष्ट्रीय स्तर के कबड्डी खिलाड़ी रह चुके हैं। उन्हीं से प्रेरित होकर वो भी इस खेल से जुड़े। वैसे तो उनके गाँव में खेल का वो माहौल नहीं हुआ करता था फिर भी उन्होंने अपना इरादा नहीं बदला। अपना तन और मन इस खेल के प्रति लगाकर जुड़ गए अपने सपनों को साकार करने में। उनकी मेहनत आखिरकार रंग लाई और साल 2016 में हुए एशियाई खेलों में भारत को कबड्डी में स्वर्ण पदक दिलाने में उनका अहम योगदान रहा।

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अपने दमदार प्रदर्शन की वजह से वो प्रो कबड्डी लीग से जुड़े। इस लीग के पहले तीन सीजन में वो यू मुंबा की तरफ से खेले और बाद में वो बेंगलुरु बुल्स का हिस्सा बने। चौथे सीजन में 53 लाख रूपए में जुड़कर वो उस सीजन के सबसे महंगे खिलाड़ी साबित हुए। राकेश कुमार और मंजीत चिल्लर को अपना आदर्श मानने वाले मोहित की कहानी को देखकर उन्हें मुक़द्दर का सिकंदर कहना गलत नहीं होगा। किस्मत के धनी मोहित आज उस उम्र में अपने खेल से करोड़पति बन गए हैं जिस उम्र में देश के अधिकांश युवा बेरोजगारी का दंश झेल रहे हैं।