करोड़पति बनना सभी का सपना होता है। लोग चाहते हैं कि पांच आकंड़े की नौकरी करने से बेहतर है कि ऐसा कुछ किया जाए जिससे करोड़ों में खेल सके। वैसे इतना आसान भी नहीं है करोड़पति बनाना। लेकिन असंभव भी नहीं है। हाँ, अगर आपके इरादे नेक हो, कुछ कर गुजरने का जज़्बा हो, सपनों को जीने का जुनून हो और सबसे बड़ी बात आपके अंदर खेल का हुनर हो तो समझो हो ही गया। इन सब का साथ हो तो आप भी अपने संघर्ष और हुनर के दम पर वो सभी मुकाम आसानी से हासिल कर सकते हो जिसे पाने के लिए अन्य लोग अपना सर्वोच्च जीवन बिता देते हैं। लेकिन नेम और फेम के इस खेल में आपका खेल में बने रहना बेहद जरुरी है। ऐसी ही एक कहानी है हरियाणा के एक कबड्डी खिलाड़ी की जिसने अपने खेल कौशल के बलबूते एक आयाम स्थापित किया है। लेकिन उनके इस शानदार सफलता के पीछे छुपा है उनका वो संघर्ष जिसे शायद आप नहीं जानते होंगे।

Picture Source :- Facebook/Monu Goyat
वो हरियाणा स्थित भिवानी जिले के कुंगार गांव में पले-बढ़े। पिता की आठ एकड़ की जमीन थी। इस किसान के बेटे ने कबड्डी खेल से करोड़पति बनकर पूरे जिले में नाम रोशन किया है। आज उनके नाम की ही चर्चा होती है। नाम है मोनू गोयत। बचपन से चुस्त मोनू अपने चाचा विजेंदर सिंह को ही अपना पहला गुरु मानते हैं। अपने घुटने की चोट की वजह से मोनू के चाचा साल 1990 में हुए बीजिंग खेलों में नहीं जा सके। उन्हें मोनू में अपना सपना दिखा। नौ साल की उम्र से ही विजेंदर अपने भतीजे को कबड्डी के दांव-पेंच सीखाने लगे। फुर्तीले मोनू भी अपने चाचा के सपने को पूरा करने में जी-जान से जुड़ गए। दो साल के भीतर ही वो बहुत अच्छे रेडर बन गए। जल्द ही स्थानीय खेलों में भी भाग लेने लगे। कॉलेज से ग्रेजुएशन करने के बाद उनका आत्मविश्वास बढ़ता गया।आगे चलकर वो कबड्डी के जोशीले रेडर बन गए।
साल 2010 में खेल कोटे से सेना में चुने जाने वाले मोनू एकमात्र व्यक्ति थे। उन्होंने गोरेगांव, इंदौर और मदुरै जैसे शहरों में जबरदस्त प्रदर्शन करते हुए विभिन्न पुरस्कार जीते। उन्हें जीत में दो बाइक बजाज प्लेटिना और एक टीवीएस सुजुकी भी मिली। गोयत कहते हैं कि “हम खुद को इस खेल में बनाए रख सकते थे, लेकिन अक्सर पैसों की कमी महसूस होती थी। गांवों में होने वाले टूर्नामेंट जीतने पर पुरस्कार राशि आमतौर पर 31,000 रुपए से भी कम होती थी।” इसके बावजूद उन्होंने इस खेल को खेलना जारी रखा।

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मोनू, प्रो कबड्डी लीग के शुरूआती तीन संस्करण में नहीं खेल सके थे। उन्हें मौका मिला चौथे संस्करण में जहाँ बंगाल वॉरियर्स ने उन्हें 18 लाख रुपए में और पांचवें संस्करण में पटना पायरेट्स ने 44.5 लाख रुपए की बोली लगाकर खरीदा। इस उपलब्धि पर उनके चाचा विजेंदर कहते हैं कि “उनके जैसे खिलाड़ियों के छोटे सपने होते थे वो सिर्फ एक नौकरी के लिए खेलते थे। ज्यादा पैसे की उम्मीद नहीं थी क्योंकि उस वक्त कोई लीग वग़ैरा तो थी नहीं।”

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जैसा कि कबड्डी के खेल में, हमलावर प्रतिद्वंद्वी क्षेत्र पर आक्रमण करते हैं और कई विपक्षी खिलाड़ियों को छूकर अंक स्कोर करते हैं। एक अच्छे रेडर में गति, शक्ति और बेहतरीन मूवमेंट होने चाहिए। मोनू कहते हैं कि “आधुनिक कबड्डी ताकत से अधिक दिमाग का खेल है।” उसके बाद वो मौका भी आया जब उनके खेल हुनर को देखते हुए हरियाणा स्टीलर्स ने मोनू पर 1.51 करोड़ रुपए की बोली लगाकर अपनी टीम में शामिल किया। इसके साथ ही मोनू प्रो कबड्डी लीग के इतिहास में सबसे ज्यादा भुगतान किए जाने वाले एथलीट बनकर सारे रिकॉर्ड तोड़ दिए हैं। अपनी इस उपलब्धि पर मोनू कहते हैं कि “एक कबड्डी खिलाड़ी और एक सेना के जवान के रूप में मैं यह अपने देश के लिए करना चाहता हूं।”

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मोनू ने अपने खेल प्रदर्शन के दम कमाए गए इन पैसों से दो साल पहले ही हंसी में दो मंजिला मकान बनवाया, अब जहां उनका परिवार रहता है। इतनी कम उम्र में सिर्फ खेल के दम पर ही मोनू ने साधारण किसान के बेटे से करोड़पति बन यह जता दिया कि कुछ भी असंभव नहीं है।