वो कभी अपनी माँ के साथ फूल बेचा करती थी। 5 किलो चमेली के फूल, 6 घंटे की मशक्कत तभी कहीं जाकर 50 रुपये की आमदनी होती, जो घर की दो जून की रोटी का जुगाड़ करने में अहम किरदार निभाया करती। कभी गरीबी के चलते दाने-दाने को मोहताज़ रहने वाली उषा रानी आज प्रदेश के लिए आशा की किरण बनकर चमचमा रही हैं। कभी गरीबी से जद्दोजेहद करती उषा आज किसी परिचय की मोहताज़ नहीं है।
साल 2018 में हुए एशियाई खेल की कबड्डी प्रतियोगिता में भारतीय खिलाड़ी उषा ने रजत पदक जीतकर जो कीर्तिमान स्थापित किया था, वो आज मिसाल बन कर औरों को भी प्रेरणा देने का काम कर रहा है। आपको बता दें उषा कर्नाटक के दोड्डाबल्लापुर पुलिस स्टेशन में कॉन्सटेबल हैं और साथ ही भारतीय महिला कबड्डी टीम की सदस्य भी हैं।

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मुफ़लिसी के दिनों को याद करते हुए उषा की माँ पुट्टम्मा कहती हैं कि “वो भी दिन था जब घर में बस के किराये के लिए 10 रुपये भी नहीं हुआ करते थे। उन दिनों ये रकम की कीमत लाखों के बराबर हुआ करती थी। एक बार तो बस के किराये के लिए 10 रुपये उधार लेने पड़े थे।”
कहते है मेहनत किसी सफलता की गुलाम नहीं होती। ये उपलब्धि जीतनी आसानी से हमें सुनाई देती है उतनी ही कठिनाइयों का सामना किया है उषा ने। हालाँकि उनका सफ़र काटों भरा रहा है। पग-पग पर कड़ी मेहनत और लगन के इम्तेहान से गुजरकर इस मुकाम तक पहुंची हैं उषा।
कर्नाटक स्थित यशवंतपुर में सुबेदार पलिया की एक बस्ती में रहने वाले एक गरीब परिवार में जन्मी उषा रानी के 2 भाई, प्रकाश और नवीन, और 2 बहन, शोभा रानी और दिव्याश्री हैं। किस्मत की धनी उषा के पिता कबड्डी खिलाड़ी और माँ शॉट-पुट खिलाड़ी होने के नाते घर में उन्हें खेल के प्रति प्रोत्साहित किया जाता था। उन्होंने कभी भी नहीं सोचा था कि कबड्डी में उनकी दिलचस्पी और ‘माता स्पोर्ट्स क्लब’ में नियमित अभ्यास उन्हें साल 2007 में पुलिस विभाग में नौकरी दिलाएगा। उनकी नौकरी ने घर की माली हालात को बदल कर दी है।

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गरीब परिवार से ताल्लुक रखने वाली 29 वर्षीय उषा जब भी कहीं कबड्डी होते हुए देखती तो सोचती थीं कि क्या कभी वो भी भारत के लिए खेल पाएंगी? इस बाबत वो अपने पिता नरसिम्हा और मां पुट्टम्मा के साथ कबड्डी के बारे में बातें करती थीं कि उन्हें भी देश के लिए खेलना है। पुलिस की नौकरी बाद भी वो कबड्डी के प्रति उसी संजीदगी के साथ जुड़ी रही और 2018 एशियाड गेम्स में उषा ने भारत का प्रतिनिधित्व किया।
इसके साथ ही वो कर्नाटक राज्य पुलिस कबड्डी टीम में सबसे कम उम्र की खिलाड़ी थी। गौरतलब है कि कर्नाटक से एशियाई खेलों के लिए चयनित होने वाली वो एकमात्र खिलाड़ी थीं। एशियाई खेल में उषा रानी के सिल्वर मेडल जीतने पर उनके परिवार और शहर में ख़ुशी की लहर उमड़ पड़ी थी। यक़ीनन इतनी गरीबी में भी ऐसा मुकाम हासिल कर पाना सब के बस की बात नहीं है।