कहने के लिए तो वो दिल्ली के एक सरकारी स्कूल में फ़िजिकल एजुकेशन टीचर हैं। वहां स्थित पालम स्पोर्ट्स क्लब में वो साल 1995 से अब तक तक़रीबन 600 से अधिक लड़कियों को कबड्डी की ट्रेनिंग दे चुकी हैं। उनकी शिक्षा का ही असर है कि उनकी 9 छात्राएं अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर खेल चुकी हैं। वर्तमान में वो 9 साल की उम्र से लेकर 26 साल तक की तक़रीबन 40 से अधिक लड़कियों को मुफ्त में कबड्डी की ट्रेनिंग दे रही हैं। दो कमरों के मकान में रहने वाली यह सभी लड़कियां बेहद गरीब परिवार से आती हैं।

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इन बच्चियों की घर की आर्थिक स्थिति ठीक नहीं है, फिर भी उनके अंदर खेल भावना ही है जो उन्हें सभी मुश्किलों को लांघते हुए इसके प्रति समर्पित होने के लिए प्रोत्साहित कर रही है। इस खेल को लेकर उनका मानना है कि “खेल से सरकारी नौकरी आसानी से मिल जाती हैं।” आप सोच रहे होंगे कि कौन है जो इतने वर्षों से बिना निराश हुए अपने कर्तव्य को बखूबी निभा रही हैं। तो आपको बता दें कि हम बात कर रहे हैं 50 वर्षीय महिला कबड्डी कोच नीलम साहू की जो बिना थके महिलाओं को ट्रेन कर रही हैं।

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एनडीटीवी में छपी एक खबर के मुताबिक,महिला कबड्डी खिलाड़ियों की मौजूदा परिस्थिति के बारे में नीलम का कहना है कि “आज भी महिला प्लयेर्स को बुनियादी सुविधाओं के आभाव का सामना करना पड़ रहा है। उनके रहने की उचित सुविधा नहीं है, प्रैक्टिस करने के लिए मैट नहीं है। मैट न होने की वजह से खासतौर पर सर्दियों में बच्चों के पैर छिल जाते हैं। गर्मियों में भी उन्हें भारी दिक्कतों का सामना करना पड़ता है, इनकी स्थिति में व्यापक सुधार ना होने की वजह से उन्हें आज भी कड़े संघर्षों का सामना करना पड़ रहा है।”

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अब यह खेल के प्रति उनका जुनून ही है जो बेहद गरीबी में भी देश के लिए कुछ कर गुजरने के उद्देश्य से वो दिलोजान से इस खेल से जुडी हुई हैं। एक तरफ जहाँ प्रो कबड्डी लीग की वजह से पुरुष खिलाड़ियों ने आसमान की बुलंदियों को छुआ हैं तो वही महिला खिलाड़ियों की किस्मत आज भी पाई-पाई के लिए मोहताज़ बनी हुई है। उन्हें पुरुषों के मुताबिक वो मान-सम्मान नहीं मिल सका है जो उन्हें मिलना चाहिए था।

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कहते हैं खेल में बेइंतिहा पैसा है, बस आपको बड़े इत्मिनान से खेल से जुड़े रहना होगा। भारत जैसे देश में आज भी खेल को पूजा जाता है। वैसे तो इस देश में दर्जनों ऐसे खेल है जो बड़े जोश के साथ खेले जाते हैं। कबड्डी इस देश के प्राचीनतम खेलों में से एक रहा है। पहले इस खेल की लोकप्रियता गावों या कस्बों तक ही सीमित थी लेकिन जब से प्रो कब्बड्डी लीग शुरू हुई है तब से मानो खिलाड़ियों की किस्मत ही बदल गई। इस लीग के शुरू होने के पहले लोगों का रुझान इस खेल के प्रति उतना नहीं हुआ करता था जितना अब होने लगा है।

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खैर, प्रो कबड्डी लीग की वजह से पुरुष खिलाड़ियों का सोया मुकद्दर तो जाग उठा लेकिन महिला खिलाड़ियों की हालत आज भी जस की तस बनी हुई है। आज भी उन्हें बुनियादी सुविधाओं की कमी का शिकार होना पड़ता है। दो बार एशियाई खेलों में अपनी धमक ज़माने वाली महिला कबड्डी खिलाड़ियों को आज भी पुरुष खिलाड़ियों जैसी पहचान नहीं मिल पा रही है। ज़रूरत इस बात की है कि सरकार और खेल संस्था महिला कबड्डी खिलाड़ियों की बेहतरी के लिए लाज़मी कदम उठाए ताकि उन्हें भी वो पहचान मिल सके जो आज पुरुष कबड्डी खिलाड़ियों को मिली है।