बचपन बीत जाने के बाद अक्सर स्कूली दिनों में खेले गए खेल याद आते हैं। मौजूदा दौर में भले ही शहरों में क्रिकेट,बैडमिंटन या फुटबॉल खेला जाता हो मगर छोटे कसबों और गाँव की गलियों में कई तरह के पारम्परिक खेल आज भी खेले जाते हैं। बात करें वर्तमान की तो, आज भी गली मोहल्लों में बच्चों की टोलियों ने पारम्परिक खेलों को संजोये रखा है। अक्सर हमने और आपने अपने आस-पास इस तरह के गेम्स खेलते बच्चें देखें होंगे। हालाँकि समय की रफ़्तार और तेजी से बढ़ती आधुनिकता ने हमारे खेलों में भी बदलाव ला दिया है। प्ले स्टेशन, वीडियो गेम और गैजेट के दौर में शायद हम इस तरह के गेम्स खेलना भूल गए है। भले ही इन खेलों का आयोजन राष्ट्रीय या अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर न होता हो लेकिन इस खेल को खेलने वाले बच्चों के लिए यह खेल बड़े स्पोर्ट्स गेम्स के आयोजन की तरह होता है।
गिल्ली-डंडा

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भारत के अमूमन सभी गांवों की गलियों में खेला जाने वाला यह खेल सबसे लोक्रपिय रहा है। अक्सर बच्चों की इसे खेलता देखा गया है। कहा तो यहाँ तक जाता है कि क्रिकेट का आईडिया अंग्रेजों को इसी खेल से आया था। इसे खेलने के लिए एक गिल्ली का और डंडे का उपयोग किया जाता है। गिल्ली के दोनों तरफ के छोर को चाक़ू से नुकीला किया जाता है फिर गिल्ली के नुकीले छोर पर पर डंडे से जोर से मारा जाता है ताकि गिल्ली हवा में उछले और उछलने के बाद एक बार फिर उस गिल्ली पर जोर से मारा जाता है ताकि उड़कर दूर जा कर गिर सके। इसके बाद खिलाडी पहले बिंदु को छूने के लिए दौड़ता है ताकि दूसरे खिलाडी के गिल्ली लाने से पहले वह पहुंच सके।
कंचा

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वैसे तो इंग्लिश में इसे मार्बल से कहते हैं और हिंदी में ‘कंचा’ कहा जाता है। बच्चों के बीच कंचे का खेल बेहद लोकप्रिय है। आज भी बच्चें इसे खेलते हैं।
इसे खेलने के लिए पहले तो कुछ कंचो को कुछ दुरी पर बिखरा दिया जाता है। फिर खिलाड़ी एक निश्चित दुरी से कंचो को कंचे से हिट करता है। जो खिलाड़ी सभी कंचों को हिट कर लेता है अंत में उसे विजेता घोषित कर उसे सारे कंचे दे दिए जाते हैं।
खो-खो

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यह भारत में खेले जाने वाले खेलों से एक है जो काफी लोकप्रिय है। इसमें दो टीमें होती हैं। एक टीम मैदान में घुटनों के बल बैठती है। सभी खिलाड़ी एक-दूसरे के विपरीत दिशा में मुंह करके बैठते हैं। जो भी टीम सभी सदस्यों को टैप करके सबसे कम समय में खेल खत्म करती है वही विजयी होती है।
पोशम्पा

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बेहद रोमांचक तरीके से खेले जाने वाले इस खेल में दो लोग अपने सिर से ऊपर कर एक-दूसरे का हाथ पकड़कर खड़े होते हैं। साथ में वे एक गाना भी गाते हैं। बाकी सभी बच्चे उनके हाथों के नीचे से निकलते हैं। गाना खत्म होने पर दोनों अपने हाथ नीचे करते हैं और जो भी बच्चा उसमे फंसता है वह खेल से आउट हो जाता है। आज भी इस खेल को स्कूलों में खेला जाता है।
गुट्टे या किट्ठु

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गुट्टे या किट्ठु खेलने के लिए 5 छोटे पत्थरों की आवश्यकता होती है। आप हवा में एक पत्थर उछालते हैं और उस पत्थर के जमीन पर गिरने से पहले अन्य पत्थरों को चुनते हैं। इस खेल को बच्चों और बड़े दोनों द्वारा खेला जाता है।
किठ-किठ

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इस खेल को कुंटे, खाने इत्यादि नामों से जाना जाता है। किठ-किठ खेलने के लिए आपको एक चॉक से जमीन पर आयताकारनुमा डिब्बे बना कर उसमे नंबर लिखने होते हैं। हर एक खिलाडी बाहर से एक पत्थर एक डिब्बे में फेंकता है और फिर किसी भी डिब्बे की लाइन को छुए बिना एक पैर पर (लंगड़ी टांग) उस पत्थर को बाहर लाता है। इसे घर के भीतर और बाहर दोनों जगह खेला जा सकता है।
चौपड़/पचीसी

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चौपड़ के इस खेल में सभी खिलड़ियों को अपने विरोधी से पहले अपनी चारों गोटियों को बोर्ड के चारों ओर घुमाकर अपने स्थान पर लाकर रखना होता है। आपको बता दें इस खेल में चारों गोटियां चौकरनी से शुरू होकर चौकरनी पर खत्म होती हैं।
सतोलिया (पिट्ठू या लगोरी)

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सतोलिया को पिट्ठू या लागोरी के नाम से भी जाना जाता है। इसे खेलने के लिए सात छोटे पत्थरों की जरूरत होती है। हर पत्थर का आकार दूसरे पत्थर से कम होना चाहिए। घटते आकार के क्रम में पत्थरों को एक-दूसरे के ऊपर रखते है फिर एक निश्चित दुरी से एक बॉल को पत्थरों के ढेर पर फेक कर मारते हैं। आज भी भारत के कुछ भागों में इस खेल को खेला जाता है।