कठिन मेहनत, अनुशासन और त्याग किसी भी एथलीट की सफलता का राज होता है। लेकिन भारत में खेल में करियर बनाना जवानी को संघर्ष के हवाले कर देना होता है। इसके अलावा क्रिकेट के खिलाड़ियों के अलावा लोग अन्य खेलों के एथलीटों को उतना मान सम्मान और शोहरत भी नहीं देते हैं। हालांकि बीते एक दशक से देश में चीजें बदल रही हैं, जिससे देश के खिलाड़ी अब बेहतर भी कर रहे हैं।
जिसका असर पहले कॉमनवेल्थ खेलों के बाद एशियन गेम्स में भी नजर आया। भारत के एथलीट मनजीत सिंह ने इतिहास रचते हुए देश को 800 मीटर की रेस में गोल्ड मेडल दिलाया। लेकिन इस दौरान वह अपने पांच महीने के बच्चे अबीर सिंह से एक बार भी नहीं मिले, क्योंकि वह देश को गोल्ड दिलाने के लिए लगातार ट्रेनिंग में मशगूल थे।
मनजीत की कहानी भले ही आपको बॉलीवुड की फिल्मों की तरह लगे, लेकिन इस रनर ने वास्तव में देश के लिए इतना बड़ा त्याग किया है। मनजीत ने फाइनल में 1:46:15 का समय निकालकर अपने नाम गोल्ड किया, इस दौरान उन्होंने हमवतन जिनसन जॉनसन को भी पीछे छोड़ दिया, जो गोल्ड के प्रबल दावेदार थे।
ओएनजीसी में कॉन्ट्रैक्ट पर नौकरी करने वाले मनजीत सिंह जब लगातार मेडल की दौर से बाहर होते रहे, तो कंपनी ने उन्हें ही बाहर कर दिया। जिसके बाद मनजीत के पिता रणधीर सिंह जो पेशे से किसान और दूध बेचने का व्यवसाय करते हैं, ने उन्हें खेल छोड़ने को कहा लेकिन वह नहीं माने और दौड़ते रहे।
मनजीत के गोल्ड जीतने के बाद मनजीत के पिता ने कहा कि राज्य सरकार मनजीत को नौकरी देने से कतराती थी, लेकिन अब शायद वह ऐसा नहीं करेंगे। मनजीत के पिता भी राज्य स्तर के शॉट पुटर रह चुके हैं, वह कहते हैं कि मनजीत जब घर पर होता था। तो वह खेती के कामों में भी हाथ बंटाता था, साथ उसने गाय-भैंस भी चराई है।
मनजीत ने गोल्ड जीतने के बाद इस बात का खुलासा किया कि वह अपनी तैयारियों में इतने मशगूल रहे कि अपने बच्चे से मिलने घर नहीं गये। आपको बता दें साल 2013 में मनजीत चोटिल हो गए थे, जिसके बाद वह वापसी करने को बेताब थे।