इंडोनेशिया में हुए एशियाई खेलों में पहली बार शामिल किए गए ब्रिज के खेल में भारत ने गोल्ड जीतकर इतिहास रच दिया है। एशियन गेम्स में भारत का यह आखिरी गोल्ड मेडल था जिसे 60 वर्षीय प्रणब बर्धन और 56 वर्षीय शिबनाथ सरकार की जोड़ी ने चीन को मात देकर इस खेल में एशियाड इतिहास का पहला गोल्ड मेडल जीता। वैसे तो भारत में काफी समय से इस खेल को खेला जा रहा जो ताश या आम बोलचाल में पत्तों के नाम से भी मशहूर है लेकिन समाज में इस खेल को बुरा और निकम्मों का खेल माना जाता है। कुछ लोग इसे जुआ से जोड़कर देखते हैं तो कुछ अय्याशों का खेल समझते हैं। लेकिन एशियाड में भारत के गोल्ड मेडल जीतने के बाद इस खेल को नई पहचान और सम्मान मिला है। भारतीय इतिहास में वैसे तो ताश पहले राजघरानों में अमीरों का खेल माना जाता था, लेकिन धीरे-धीरे यह खेल गांव से लेकर बड़े-बड़े शहरों में खेले जाने लगा। आपको जानकर हैरानी होगी लेकिन भारत में एक ऐसा भी गांव है जहां हर घर में ब्रिज बड़े ही जोश और शान के साथ खेला जाता है। बच्चे, बड़े, बूढ़े समेत यहां लड़कियां भी ब्रिज खेलने का शौक रखती हैं। खेल के प्रति लोगों की दीवानगी इस कद्र है कि यहां खासकर एक ब्रिज क्लब का निर्माण किया जा चुका है जहां पूरा गांव ताश की गड्डियों के बसता है। यह है मध्यप्रदेश का रायबिड़पुरा गांव जिसकी आबादी तो 5000 है लेकिन यहां 500 से ज्यादा ब्रिज के एक्सपर्ट्स बसते हैं।
मध्य प्रदेश के इस गांव का नाम रायबिड़पुरा है जहां घर का बच्चा-बच्चा ब्रिज का उस्ताद है। यहां के लोगों में मानना है कि ये ब्रिज शतरंज से भी कठिन और ज्यादा दिमाग वाला खेल है। लोगों की खेल के प्रति दीवानगी का पता इसी बात से लगाया जा सकता है कि गांव के किसान से लेकर यहां कि लड़कियां भी ब्रिज खेलती हैं।
रायबिड़पुर गांव जिसे ब्रिज गांव भी कहते हैं
रायबिड़पुरा गांव में ज्यादातर किसान, अशिक्षित और गरीब लोग रहते हैं, जिनमें में कुछ नशे की लत में जकड़े हुए थे तो वहीं गांव की महिलाओं के साथ अत्याचार और रेप जैसी वारदात काफी आम थी। लेकिन ब्रिज यहां केवल खेल के तौर पर ही नहीं उभरा बल्कि इसने गांव को नई पहचान दी। जिसका बड़ा असर समाज की मानसिकता और उनके विकास पर पड़ा। ब्रिज की शरुआत के साथ ही नशा और महिलाओं के साथ होने वाले अत्याचारों के मामले में भारी गिरावत हुई तो वहीं खेती-बाड़ी करने वाले किसानों ने अत्याधुनिक उपकरणों के इस्तेमाल करना शुरु कर दिया जिससे अच्छी फसल और पैदावर के साथ उनकी कमाई में भी बड़ा इजाफा हुआ। इसी तरह शिक्षा के क्षेत्र में भी बड़ा बदलाव देखा गया जहां स्कूलों में बच्चों की भर्ती को लेकर लोगों में रुझान बढ़ा।
खेल ने बदली गांव की छवि
गांव में लोगों का खेल के प्रति रुझान और प्रतिस्पर्धा को देखते हुए एक ब्रिज क्लब भी खोला गया है जहां सभी सदस्य आपस में खेलते हैं। जानकारी के मुताबिक गांव के कई खिलाड़ी देश के अन्य राज्यों में हुई चैंपियनशिप में इनाम जीत चुकें हैं।
गांव में है ब्रिज क्लब
आपको जानकर हैरानी होगी यहां केवल पुरुष ही नहीं बल्कि लड़कियों बढ़-चढ़कर इस खेल में हिस्सा लेती हैं। कुछ लड़कियों ने इस खेल में इतनी महारत हासिल की है कि उनका चयन इस्तांबुल में वर्ल्ड चैंपियनशिप के लिए हो चुका है लेकिन पार्सपोर्ट न होने के कारण यह इनमें हिस्सा नहीं ले सकी।
वर्ल्ड चैंपियनशिप में लड़कियों का हो चुका है चयन
मध्यप्रदेश के खरगौन जिले के छोटे से गांव रायबिड़पुरा यूं तो ज्यादातर लोग किसान हैं जो खेती करके अपने घर का गुज़ारा करते हैं। लेकिन 1965 में एक सरकारी अस्पताल में मोहम्मद जिया खान नाम के एक डॉक्टर का तबादला हुआ जिसने गांव की तस्वीर बदल दी। खान ब्रिज के एक धाकड़ खिलाड़ी थे जिन्हें इस खेल से कोई चीज़ दूर नहीं कर सकी। डॉक्टर साहब का खेलने का दौर यहां भी जारी रहा और देखते ही देखते उन्होंने गांव के लोगों को इस खेल का दीवाना बना दिया। डॉक्टर से ब्रिज के दांव-पेंच सिखने के बाद यह खेल गांव के बच्चों से लेकर बूढों में जान फूंक देता है।
गांव के डॉक्टर ने की खेल की शुरुआत