शारीरिक और आर्थिक कमी आपको सफल होने से नहीं रोक सकती। कुछ अलहदा करने के लिए मजबूत इरादों की जरूरत होती है। अगर आपके अंदर इच्छाशक्ति है तो आप कठिन डगर भी आसानी से पार कर सकते हैं। ऐसी ही एक प्रेरणा भरी दास्तां है भारत के छोटे से राज्य गोवा की निवासी 17 वर्षीय दिव्यांग सबिता यादव की जिनपर देश गर्व कर रहा है। गौरतलब है कि साबित ने स्पेशल ओलंपिक वर्ल्ड गेम्स में हुए एकल टेबल टेनिस प्रतियोगिता में स्वर्ण पदक और डबल्स में रजत पदक जीतकर देश का मान बढ़ाया है। बता दें कि साल 2019 में अबू धाबी में हुए स्पेशल ओलंपिक खेल में भारत ने 44 स्वर्ण, 52 रजत और 67 कांस्य पदक के साथ कुल 163 पदक जीते हैं।
बात करें सबिता कि तो उन्हें ठीक से बोलना भी नहीं आता। बौद्धिक विकलांगता के बावजूद उन्होंने जो कारनामा कर दिखाया है उसे जानकर सभी को गर्व की अनुभूति हो रही है। घर की माली हालत ठीक नहीं थी, सिर से पिता का साया हटने के बाद घर चलाने और बेटी की परवरिश के लिए उनकी माँ दूसरों के घर में झाड़ू-पोछा लगाने का काम करने लगी। आर्थिक तंगी भी उनके जुनून के आगे बौनी नज़र आयी। टाइम्स ऑफ़ इंडिया में प्रकाशित खबर की माने तो सबिता ने एक स्पेशल स्कूल में एडमिशन लिया जहाँ उन्हें खास तौर पर वोकेशनल ट्रेनिंग दी जाती है। इसके साथ ही वहां सिलाई और खाना बनाने की भी शिक्षा दी जाती है। शुरू से ही सबिता की दिलचस्पी टेबल टेनिस में थी। साल 2015 में उन्हें आभास हुआ कि वो इस खेल में बेहतर कर सकती हैं।

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अपने हुनर को तराशने के लिए उन्होंने अपनी कोच शीतल नेगी से टेनिस के गुर सीखने प्रारंभ किये। टाइम्स ऑफ इंडिया में छपी खबर के मुताबिक सबिता की कोच शीतल नेगी का कहना है कि “मैं उन्हें पिछले 2 वर्षों से जानती हूं और उनमें बड़ा आत्मविश्वास है। उनकी कड़ी मेहनत और लगन से ही उनका सपना आज पूरा हो सका है।” बहुत कम लोग ही जानते हैं कि स्पेशल ओलंपिक एथलीट को भी जिला, राज्य, राष्ट्रीय स्तर के बाद अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर खेलने का मौका मिलता है।