अखाड़े की दमखम देख जेहन में अक्सर एक सवाल उठता है कि यह पहलवान आखिर खाते क्या हैं ? उनकी तंदरुस्ती का क्या राज़ है, कैसे वो अपने आपको फिट रख लेते हैं। इस तरह के तमाम प्रश्नों का उठना लाज़मी है भी क्योंकि पहलवानों का अनुशासन सब के बस की बात नहीं है। उनकी दिनचर्या बेहद अनुशासित होती है। उन्हें अलसुबह उठकर नियमित वर्जिश करना होता है। जब हम सुबह की मस्त नींद ले रहे होते हैं या फिर बिस्तर छोड़ने की कल्पना से ही हम चिढ रहे होते हैं उस समय में वो (सुबह चार बजे) उठकर कंपाउंड के चारों ओर दौड़कर चक्कर लगा रहे होते हैं, अखाड़े को तैयार कर रहे होते हैं।
जिस समय हमारी आँख खुल रही होती है और हम उठने का मन बना रहे होते हैं उस समय वो कसरत से फुर्सत लेकर सुबह के नाश्ते की तैयारी कर रहे होते हैं। अक्सर बाहर से सुंदर नज़र आनेवाली पहलवानों की जिंदगी उस तरह की नहीं होती है जिस तरह हम कल्पना करते हैं। उन्हें अपनी दिनचर्या का कड़ाई से पालन करना पड़ता है। खान-पान का विशेष ख्याल रखना पड़ता है। हमारे आपके तरह वो कुछ भी नहीं खा सकते। अपनी सेहत के मद्देनज़र कई बार उन्हें उन सभी खाद्यपदार्थों का त्याग करना पड़ता है जो उन्हें बेहद पसंद होता है। अब जब बात हो चली है पहलवानों के विशेष खान-पान की तो, हम यहाँ एक नज़र डालेंगे उनके विशेष डाइट पर जिससे आप भी पहलवानों जैसी शरीर पा सके।
कैसा होता है पहलवानों का आहार

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जैसे कि यह बात जगजाहिर है कि गामा पहलवान एक दिन में 10 लीटर दूध, 6 किलो चिकन और 100 रोटियां कहा जाया करते थे और एक बार में 4 लीटर दूध, घी और बादाम के घोल को पचा जाते थे। पहलवान अपने आप को फिट रखने के लिए संपूर्ण आहार लेते है। अखाड़े में विरोधी टीम के पहलवान को पटखनी देने के लिए उन्हें तंदरुस्त होना जरुरी होता है। पहलवानों के आहार में दूध, घी, मख्खन और बादाम का समावेश विशेषरूप से होता है। अगर कोई मांसाहारी है तो उन्हें चिकन से बनी मीट सूप (आमतौर पर जिसे याकनी कहा जाता है) दी जाती हैं। विशालकाय शरीर को सुदृढ़ बनाने के लिए पहलवानों को जमकर कसरत करनी पड़ती है। अक्सर यह कहा जाता है कि कुश्ती का खेल बच्चों के बस की बात नहीं है। पहलवानों का खाना सचमुच बेहद दिलचस्प होता है। बिना संपूर्ण आहार के अखाड़े में जाने की कल्पना ही नहीं की जा सकती।
पहलवानों की दिनचर्या

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पहलवानी के लिए तैयार होने के का मतलब है कि आप बस पलक झपकते ही अपने शरीर में तेल लगाये और अखाड़े में विरोधी खेमे के पहलवान को पटखनी देने के लिए किसी भी पल तैयार बैठे हो। यही नहीं, इसके अलावा पहलवानों को अखाड़ा तैयार करने के लिए मैदान को साफ करना पड़ता है फिर वहां से छोटे -छोटे कंकड़ पत्थर निकालना पड़ता हैं ताकि कुश्ती के दौरान पहलवान को चोट ना लगे। अच्छी तरह से अखाड़े को तैयार करने के बाद वो प्रैक्टिस करते हैं। कुश्ती में अक्सर अपने से कम अनुभवी और छोटे पहलवानों से शरीर की मालिश करवाई जाती है। यहाँ धर्म के बंधनों से ऊपर उठकर अपने गुरु का सम्मान किया जाता है। इस तरह यह कह सकते हैं कि कुश्ती जात-पात की सभी दीवारों को गिराकर लोगों को एक दूसरों से जोड़ती है।

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कुश्ती में अक्सर एक शब्द बाऊट सुनने मिलता है जिसे जोर आजमाइश कहा जाता है। अक्सर वरिष्ठ पहलवानों नौसिखिए पहलवानों की ताकत को परखते हैं। आमतौर पर कुश्ती में यह टारगेट होता है कि कैसे विरोधी खेमे के पहलवान के कंधे को जमीन तक झुकाकर पटखनी दी जाए। पहलवानी में ताकत के साथ धीरज और शांति दिमाग की जरुरत होती है। अक्सर बड़े पहलवानों को कहते या सुनते देखा गया है कि पहलवानी ताकत का नहीं बल्कि दिमाग का खेल है। पहलवानों को अपने दिमाग को शांत रखने के लिए टेंशन फ्री होना पड़ता है। तनावमुक्त रहने के लिए उन्हें हमेश खुशमिजाज रहना पड़ता है।
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