अगर आपके दिल में अपने सपनों तक पहुंचने का हौसला नहीं है, तो सपने देखने का कोई अर्थ नहीं है। किसी भी मंजिल को पाने के लिए आपका जूनून ही आपकी तरक्की की ऊंचाई तय करता है। हौंसले बुलंद हो तो बड़ी से बड़ी उड़ान भी छोटी लगने लगती है। अगर दिल में जज़्बा हो और आखों में ख़्वाब तो हर मुश्किल राह आसान हो जाती है। अगर ऐसे ही जज़्बे और बुलंद हौसलों के साथ किसी लक्ष्य को पाने के लिए कदम उठाया जाए तो निश्चित ही मंजिल आपके पास खुद चलकर आती है। उन्होंने सपने देखे भी और उन्हें पूरा करने के लिए जी-जान एक कर दिया।

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उनके हौसले के आगे विश्व की सबसे ऊंची चोटी माउंट एवरेस्ट भी बौनी नज़र आई। उनकी उपलब्धि को देखकर तो यही कहा जा सकता है कि “अगले जन्म मोहे बिटिया ही कीजो।” वो भारत की पहली महिला हैं, जिनके नाम 50 साल की उम्र में विश्व के सात सर्वोच्च शिखरों को फतह कर उन पर तिरंगा फहराने का रिकॉर्ड है। उन्होंने साल 2011 में दुनिया की सबसे ऊंची चोटी माउंट एवरेस्ट को फतह किया। जी हाँ, हम बात कर रहे हैं 56 वर्षीय भारत की सबसे उम्रदराज महिला पर्वतारोही प्रेमलता अग्रवाल की।
कौन है प्रेमलता

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साल 1963 को पश्चिम बंगाल के दार्जिलिंग के एक छोटे से गांव सुखिया पोखरी में पैदा हुईं प्रेमलता के पिता रामअवतार एक बिजनेसमैन थे। महज हायर सेकेंडरी शिक्षा हासिल करने के बाद बहुत कम उम्र में उनकी शादी विमल अग्रवाल से कर दी गई, जो कि पेशे से एक पत्रकार थे। 18 साल की उम्र में ही वो दो बेटियों की मां बन गईं। उनके पति और बेटियों ने उस समय सोचा भी नहीं होगा कि आगे आने वाले समय में उनकी पत्नी और मां वो कारनामा कर दिखाएंगी जिससे दुनिया भर में उनकी वाहवाही होगी। उन्होंने पहले अपनी बड़ी बेटी की शादी कर दी और फिर छोटी बेटी को पढ़ाई के लिए आगे भेजा। जिम्मेदारियां निभाने के बाद उन्होंने माउंट एवरेस्ट पर चढ़ने का सफर शुरू किया। धीरे-धीरे पर्वतारोहण उनका जुनून सा बन गया।

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कुशल गृहिणी प्रेमलता ने 35 बरस की उम्र के बाद पहली बार पर्वतारोहण बनने का ख्वाब देखा। साल 1984 में लगभग 29 साल की उम्र में एवरेस्ट पर चढ़ने वाली पहली भारतीय महिला का गौरव हासिल करने वाली बछेंद्री पाल ने उन्हें इसके लिए प्रोत्साहन और प्रशिक्षण देना शुरू किया। अपने सपने को पूरा करने के लिए प्रेमलता ने दार्जिलिंग से पर्वतारोहण की शिक्षा प्राप्त की। इसके साथ ही साल 2011 के इको एवरेस्ट अभियान में शामिल वो 22 सदस्यीय अंतर्राष्ट्रीय दल का हिस्सा भी रही। उनकी इस काबिलियत को देखकर बछेंद्री पाल ने उन्हें सलाह दी कि उन्हें माउंट एवरेस्ट की चढ़ाई करनी चाहिए। अपनी उम्र के 48वें साल में बछेंद्री पाल के विश्वास के सहारे प्रेमलता ने दुनिया की सबसे ऊंची चोटी पर जाने का अपना प्रशिक्षण शुरू कर दिया। हालाँकि उन्हें इसके लिए कड़ी मेहनत करनी पड़ी क्योंकि आगे की डगर आसान नहीं थी।
बेहद कठिन थी राह

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उम्र के इस पड़ाव में जहां 50 वर्ष की आयु में महिलाएं अपनी बढ़ती उम्र के चलते घुटने के दर्द से कराह रही होती है, इस उम्र में वो सीढ़ियां भी बमुश्किल से चढ़ पाती हैं। वहीं प्रेमलता दुनिया की सबसे ऊँची चोटी माऊंट एवरेस्ट फतह कर रही थी। वो इतनी कमजोर भी नहीं थीं कि शुरूआत में ही हार मान बैठें। उनका हौसला अडिग था। उन्होंने माऊंट एवरेस्ट पर चढ़ने का दृढ निश्चय कर लिया था। इस दौरान वो दर्द के बावजूद लगातार आगे बढ़ती रहीं। इस बीच उनके साथ चल रही पर्वतारोही ने उन्हें बार-बार कहा कि उनकी उम्र ऐसी नहीं है कि वो इस तरह का वातावरण झेल सकें। अब वो लौटना नहीं चाहती थी। हार मनाना उनके शब्दकोश में था ही नहीं। इस दौरान पूरे रास्ते उन्होंने बहुत सी कठिनाइयों का सामना किया और अंत में वो दुनिया के सात सबसे ऊंचे शिखरों में से एक की चोटी तक पहुंचने में सफल रहीं। जहां उन्होंने तिरंगा लहरा कर न सिर्फ अपना बल्कि पूरे भारत का नाम रोशन किया।
प्रेमलता की उपलब्धि

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प्रेमलता 20 मई, 2011 कों सुबह 9:35 बजे 48 साल की उम्र में 29,029 फुट की ऊंचाई पर पहुँचकर माउंट एवरेस्ट के शिखर कों छूने वाली प्रथम भारतीय महिला होने का कीर्तिमान स्थापित किया। साथ ही 50 वर्ष की उम्र में 23 मई, 2013 को उत्तरी अमेरिका के अलास्का के माउंट मैकेनले को फतह किया। इस पर्वत शिखर पर चढ़ने वाली वो पहली भारतीय महिला बनी। गौरतलब है कि सात महाद्वीपों की 7 सबसे ऊंची पर्वत चोटियों को ‘सेवन समिट्स’ कहा जाता है, जिसमें किलिमंजारो, विन्सन मैसिफ, कॉसक्यूजको, कार्सटेन्सज पिरामिड, एवरेस्ट, एलब्रुस और माउंट मैककिनले शामिल हैं।

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प्रेमलता ने अपने अद्भुत साहस की बदौलत भारत की सबसे उम्रदराज पर्वतारोही का खिताब हासिल किया। उनकी इस उपलब्धि के लिए साल 2013 में देश के चौथे सबसे बड़े नागरिक सम्मान पद्मश्री से भी सम्मानित किया जा चुका है। बहरहाल, वर्तमान में प्रेमलता अब टाटा स्टील में काम करते हुए वहां अपने जैसे ही जोशीले पर्वतारोहियों को प्रशिक्षित देती हैं। ऐसा नहीं है कि प्रेमलता ने यह सफलता रातों-रात हासिल की हो। इसके लिये उन्हें कई स्तरों पर खुद को साबित करना पड़ा।

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झारखंड स्थित जमशेदपुर के जुगसलाई की रहने वाली प्रेमलता ने अपने कारनामों से देश-विदेश में झारखंड समेत पूरे भारत का नाम रोशन किया। प्रेमलता अग्रवाल सातों महाद्वीपों के सर्वोच्च शिखरों पर क़दम रखने वाली पहली भारतीय महिला हैं। गौरतलब है कि मई, 2018 तक ये खिताब प्रेमलता के नाम ही था, मगर अब संगीता बहल ने 53 साल की उम्र में यह कारनामा कर दिखाया है।