एशियन गेम्स 2018 में आज से एथलेटिक्स के मुकाबले शुरु हो रहे हैं, जिसमें भारतीय एथलीटों से काफी उम्मीद हैं। भारत के मोहम्मद अनस, हिमा दास, दुती चंद, श्रीशंकर और नीरज चोपड़ा को एथलेटिक्स में मेडल का प्रबल दावेदार माना जा रहा है। लेकिन भारत को मोहम्मद अनस और हिमा दास से सबसे ज्यादा उम्मीदें हैं, जो 400 मीटर स्पर्धा में अपनी दावेदारी पेश करेंगे।
एशियन गेम्स में एक समय एथलेटिक्स में भारत की तूती बोलती थी, जिसकी सबसे बड़ी वजह मिल्खा सिंह थे। मिल्खा सिंह ने 1958 और 1962 एशियन गेम्स में 400 मीटर में लगातार 2 गोल्ड जीतकर तहलका मचा दिया था। मिल्खा सिंह के रिटायरमेंट लेने के बाद से भारत आज तक मेडल के लिए तरस रहा है। लेकिन क्या आप ये जानते हैं कि एशियन गेम्स की 400 मीटर स्पर्धा में भारत ने आखिरी बार गोल्ड मेडल कब और किसने जीता था। आइये आपको बताते हैं आखिरी बार एशियन गेम्स में भारत को 400 मीटर में गोल्ड दिलाने वाले एथलीट के बारे में…….
एशियन गेम्स में 400 मीटर रेस में भारत ने आखिरी बार गोल्ड 1966 बैंकॉक एशियन गेम्स में जीता था। ये गोल्ड भारतीय एथलीट अजमेर सिंह ने भारत की झोली में डाला था। अजमेर सिंह ने 47.1 सेकेंड का समय निकालते हुए 400 मीटर के गोल्ड पर कब्जा जमाया। इस गोल्ड के बाद भारत एशियन गेम्स में 400 मीटर में आज तक कोई भी गोल्ड मेडल नहीं जीत सका है।
खेलकूद के साथ पढ़ाई में भी रहे अव्वल
अजमेर सिंह की बात करे तो, भारत का ये एथलीट 1 फरवरी 1940 को पंजाब के संगरुर जिले के कुपकइयां गांव में हुआ था। अजमेर ने बचपने में ही अपनी मां को खो दिया था, जिसका उन्हें हमेशा से मलाल रहा।
अजमेर के परिवार की आर्थिक स्थिति ठीक नहीं थी, इसके बावजूद वह एक मेधावी छात्र रहे। बचपन में वह अपने गांव से 4 किलोमीटर दूर स्कूल पैदल जाया करते थे। उस समय उनके गांव में बिजली भी नहीं हुआ करती थी और वो रात में लैंप की रौशनी में पढ़ाई करते। अजमेर ने हर क्लास फर्स्ट डिविजन से पास की। पढ़ाई से समय मिलने पर वह घर और खेत में परिवार का हाथ बंटाया करते थे।
अजमेर का परिवार इतना गरीब था कि बचपन में उन्हें भरपेट खाना भी नहीं मिल पाता था और इसी वजह से बढ़ती उम्र में उनके घटनों मे दिक्कत पैदा हो गई। इस सबके बावजूद अजमेर सिंह ने हार नहीं मानी और 1964 टोक्यो ओलंपिक में भारत का प्रतिनिधित्व किया और 1966 एशियन गेम्स में भारत के लिए 400 मीटर में गोल्ड और 200 मीटर में सिल्वर मेडल जीता।
एथलेटिक्स के दौरान भी अजमेर ने पढ़ाई जारी रखी और ग्वालियर के लक्ष्मीबाई नेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ फिजिकल एजूकेशन से बैचलर डिग्री हासिल की। इसके बाद उन्होंने पंजाब यूनिवर्सिटी से एमए और पीचडी भी पूरी की।
पीएचडी के साथ अर्जुन अवॉर्ड जीतने वाले इकलौते एथलीट
साल 1966 में उन्हें अर्जुन अवॉर्ड से सम्मानित किया गया। अजमेर इकलौते ऐसे भारतीय हैं, जिन्होंने पीएचडी डिग्री के साथ अर्जुन अवॉर्ड अपने नाम किया। उन्होंने भारत में फिजिकल एजुकेशन को बढ़ावा देने में अपना अहम योगदान दिया।
1976 से 1979 तक नाइजीरिया की सरकार में स्पेशल एजुकेशन ऑफिसर भी रहे। इस दौरान अजमेर ने दघबा मिन्हा को कोचिंग दी। अजमेर की कोचिंग में मिन्हा शॉट पुट और डिस्कस थ्रो में नेशनल चैंपियन बनने में सफल रही। भारत लौटने के बाद ग्वालियर के लक्ष्मीबाई नेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ फिजिकल एजूकेशन में वाइस-चांसलर और पंजाब यूनिवर्सिटी में स्पोर्ट्स डायरेक्टर का पद संभाला।
अपने देहांत से 2 साल पहले अजमेर सिंह ने अपने शरीर को चंडीगढ़ पीजीआई मेडिकल कालेज को डोनेट कर दिया। इसके अलावा उन्होंने अपनी मौत के बाद किसी भी तरह के स्मारक न बनाने का ऐलान कर दिया। 26 जनवरी 2010 को अजमेर सिंह ने इस दुनिया को अलविदा कह दिया। उनके निधन क बाद उनकी आखिरी इच्छा के अनुसार उनके पार्थिव शरीर को मेडिकल कॉलेज को दान कर दिया गया।