इंडोनेशिया में 18 अगस्त से शुरु हो रहे 18वें एशियन गेम्स में भारतीय की ओर से 572 एथलीट भाग ले रहे हैं जिनपर देश को मेडल दिलाने का दारोमदार होगा। भारतीय एथलीटों के इतिहास को देखते हुए मुख्यत: देश को कुश्ती, बॉक्सिंग, तीरअंदाजी, वेटलिफ्टिंग, शूटिंग जैसे चर्चित खेलों में सबसे ज्यादा मेडल मिलने की उम्मीद है। लेकिन इस बार दो नए खेलों की एशियन गेम्स में एंट्री हो रही है जो आज़ भी भारत में अपने अस्तित्व के लिए मोहताज़ है और बहुत कम लोगों को इन खेलों के बारे में पता है। मार्शल आर्ट से जन्मे इन खेलों को नाम है पेनकेक सिलट और कुरश। जो होते तो जूडो-कराटे की तर्ज पर ही हैं लेकिन अलग-अलग नियमों के तहत ये इनसे काफी जुदा हैं।
एशियन गेम्स में डेब्यू करने वाले इन खेलों में भारत से भी मेडल की उम्मीद जताई जा रही। भारत के मणिपुर से बॉयनो सिंह और हरियाणा की कई बेटियां इसमें हिस्सा ले रहीं हैं, जिनके मेडल जीतने से ये खेल भारत में अपनी खास पहचान बना सकते हैं। भारत की ओर से 14 एथलीट कुरश जबकि 3 पेनकेक सिलिट में हिस्सा लेंगे।
इंडियन पेनकेक सिलट फेडरेशन के कोच और डायरेक्टर जनरल मोहम्मद इकबाल के एशियन गेम्स से पहले कहा कि ‘ एशियाई खेलों से इन खेलों को नई पहचान मिलेगी। “यह एक बड़ा मंच है।”
इकबाल का कहना है कि ‘ये खेल भारत में काफी लोकप्रिय हो सकता है लेकिन इसके लिए, बॉयनो सिंह या हरियाणा के ग्रामीण बेल्ट टीम के अन्य दो सदस्यों, सोनिया और सिमरन को मिलेमौकों को भुनाना होगा “हमने एशियाड के लिए 22 सदस्यीय टीम चुनी थी, लेकिन दुर्भाग्यवश इसे कम कर तीन कर दिया गया था, लेकिन यह हमारे एथलीटों को सर्वश्रेष्ठ प्रदर्शन करने से नहीं रोकेगा। अगर हम कुछ पदक प्राप्त करते हैं, तो खेल को प्राथमिकता में शामिल किया जा सकता है सरकार से अधिक सहायता मिलने की उम्मीद बढ़ेगी।’
दोनों खेलों की उत्पत्ति और इतिहास
पेनकेक सिलट – यह सबसे सुरक्षित और अनुशासित मार्शल आर्ट की एक फॉर्म है, क्योंकि इसमें प्रतिभागियों को अपने प्रतिद्वंद्वियों के चेहरे पर हिट करने की अनुमति नहीं होती है। यह भारत में 2007 आया था और इकबाल और कुछ अन्य व्यवसायियों जैसे लोगों ने इस खेल को जीवित रखने में बड़ा योगदान दिया। पेनकेक सिलट – इंडोनेशियाई / मलय द्वीपसमूह के स्वदेशी मार्शल आर्ट्स के लिए इस्तेमाल किए जाने वाला एक सामान्य शब्द है। पेनकेक और सिलट शब्द का एकसाथ इस्तेमाल तब से किए जाने लगा जब पहली बार इंडोनेशिया में सभी पेनकेक और सिलट संस्थानों को एकजुट करने वाले संगठन को 1948 में सुरकार्ता में स्थापित किया गया था। भारत की ओर से इस खेल में तीन एथलीटों को एशियाड भेजा जा रहा है।
कुरश – कुरश, जो ज्यादा स्टैंडिंग जूडो’ के नाम से प्रचलित है, यह खेल 3000 साल पहले उजबेकिस्तान में पैदा हुआ था। भारत में यह खेल 2000-2001 के आसपास आया था। कई जुडो खेलने वाले खिलाड़ी खेल की लोकप्रियता को देखते हुए कुरश एथलीटों में बदल गए हैं। शोधकर्ताओं,इतिहासकारों और पुरातात्विक जांच के अनुसार, कुरश का जन्म लगभग 2500-3000 साल पहले हुआ था, यह जानकारी भारत की कुरश एसोसिएशन ऑफ इंडिया द्वारा उपलब्ध की गई है। यह जूडो के समान है और स्टैंडिंग जूडो के रूप में जाना जाता है। दोनों के बीच बड़ा अंतर यह है कि जूडो की तरह कुरश में किसी खिलाड़ी को पकड़कर जमीन पर गिराने की अनुमति नहीं होती। सितंबर 1998 में ताशकंद ने 30 देशों के साथ पहला अंतरराष्ट्रीय कुरश टूर्नामेंट आयोजित किया था। भारत की ओर से 14 एथलीट एशियाई खेलों में कुरश में हिस्सा लेंगे।