एशियन गेम्स 2018 में भारतीय पहलवानों ने शानदार प्रदर्शन करते हुए कुल 3 मेडल अपने नाम किए। बजरंग पुनिया और विनेश फोगाट ने गोल्ड जबकि दिव्या काकरान ने ब्रॉन्ज मेडल अपने नाम किया।
गोल्ड जीतने वाले बजरंग और विनेश की गिनती भारत के जाने-माने पहलवानों में होती है लेकिन दिव्या काकरान एक ऐसा नाम हैं, जिसने हाल ही में सुर्खियां बटोरी हैं। महज 20 साल की उम्र में भारत का नाम पूरी दुनिया में रौशन करने वाली दिव्या के संघर्ष की कहानी किसी दंगल से कम नहीं है।
रूढ़िवादी समाज और गरीब परिवार से ताल्लुक रखने वाली दिव्या का जन्म मुज्जफरनगर के पुरबलिया गांव में 7 फरवरी 1998 को हुआ था। पुरुष प्रधान इस इलाके में किसी लड़की का पहलवानी करना काफी खराब माना जाता है। लेकिन दिव्या ने न केवल कुश्ती को ्अपनाकर इस सोच को तोड़ा बल्कि कुश्ती के दंगल में पुरुष पहलवानों को भी धूल चटाई। दिव्या को इस मुकाम तक पहुंचाने में उनके माता-पिता की भी अहम भूमिका रही है।
दिव्या के पिता उत्तर दिल्ली में लंगोट बेचते हैं और उनकी माँ घर में लंगोट सिलती हैं। इससे अंदाजा लगा सकते हैं कि दिव्या का जीवन कितनी कठिनाइयों से बीता है, लेकिन उन्होंने अपने सपनों से लगातार दंगल जारी रखा।
लंगोट बेचते हैं दिव्या के पिता
दिव्या के पिता पुराने दिनों को याद करते हुए बताते हैं कि बेटी को खिलाने के लिए कोई प्रोटीन या सप्लिमेंट तक के पैसे उनके पास नहीं होते थे। वह सिर्फ ग्लूकोज पीकर प्रैक्टिस करती थीं।
दिव्या काकरान
दिव्या काकरान ने साल 2017 में जोहांसबर्ग में हुए कॉमनवेल्थ चैंपियनशिप में स्वर्ण पदक जीता। इसी साल एशियाई चैंपियनशिप में दिव्या ने कांस्य पदक जीता।
दंगल गर्ल गीता को डे चुकी हैं मात
कुश्ती संघ के अध्यक्ष व यूपी के कैसरगंज से सांसद ब्रजभूषण शरण सिंह के कहने पर दिव्या ने प्रदेश स्तर पर यूपी की तरफ खेलने का फैसला किया। पहले वह दिल्ली का प्रतिनिधित्व करती थीं। दिव्या ने 6 वर्ष की उम्र से कुश्ती के दांव-पेंच सीखना शुरू कर दिया था। दिव्या काकरान ने अबतक 6 बार भरत केसरी ख़िताब अपने नाम कर चुकी है। उनके पिता सूरजवीर उन्हें दिल्ली, यूपी और हरियाणा के मशहूर अखाड़ों में लेकर जाते थे।
6 बार रही हैं भरत केसरी
साल 2018 दिव्या के लिए काफी शानदार रहा है। मार्च 2018 में दिव्या ने हरियाणा में भारत केसरी दंगल में दंगल गर्ल गीता फोगाट को हराकर काफी सुर्खियां बटोरी थी।
इसके 1 महीने बाद ही गोल्डकोस्ट में आयोजित कॉमनवेल्थ खेलों में उन्होंने कांस्य पदक जीतकर सनसनी मचा दी और अब एशियन गेम्स में मेडल जीतकर इतिहास रच दिया है। वह एशियाड में मेडल जीतने वाली चौथी महिला पहलवान हैं।
दिव्या काकरान
समाजिक बंदिशों और अपनी बिटिया के पैशन को देखते हुए पिता ने दिल्ली की ओर रुख किया। जहां गोकुलपुर में दिव्या ने पहलवानी के गुर सीखे। शुरुआत में दिव्या के लिए कुश्ती पैसे कमाने का जरिया था, जिसकी वजह से उन्हें लड़कों के खिलाफ कुश्ती लड़ने को मजबूर होना पड़ा। इस दौरान उन्होंने कई बार पुरुष पहलवानों को भी पटखनी दी।
दिव्या काकरान
दिव्या को सफल रेसलर बनाने के लिए उनके परिवार ने बड़ा समझौता किया है। दिव्या के दो भाई भी हैं और इनमें से एक की कुश्ती में काफी रूचि भी थी। मगर घर की परिस्थितियां इतनी अच्छी नहीं थी कि कि दिव्या और उसके भाई दोनों की कुश्ती का खर्च उठाया जा सके। इसलिए भाई ने अपना सपना छोड़ दिव्या को कुश्ती में बढ़ाने का फैसला किया और आज वह उनकी उपलब्धियों को देख खुश है।
दिव्या काकरान