अगर किसी बच्चे को आप तेज दौड़ते देखते हैं, तो सबसे पहले जेहन में मिल्खा सिंह का नाम आता है। और ऐसा हो भी क्यों न? मिल्खा ने अंतरराष्ट्रीय स्तर पर अपने प्रदर्शन से भारत का सिर कई मर्तबा ऊंचा किया। लेकिन क्या आप जानते हैं फ्लाइंग सिख मिल्खा को भी एक भारतीय धावक से दो-दो बार हार का सामना करना पड़ा था। सुनकर हैरानी होगी कि जिसने एशियाई खेलों में स्वर्ण पदक जीता, उसे कौन हरा सकता है? मिल्खा को धूल चटाने वाले इस एथलीट का नाम था माखन सिंह।
1962 में कोलकाता में आयोजित नेशनल गेम्स में माखन सिंह ने मिल्खा को बुरी तरह हराया था। अपने छह साल के करियर में माखन ने 12 गोल्ड, एक सिल्वर और तीन ब्रॉन्ज मेडल जीते। मिल्खा सिंह ने एक इंटरव्यू में भी माना था, “रेस पर अगर मुझे किसी से डर लगता था तो वह माखन सिंह थे। वह एक बेहतरीन धावक थे। 1962 के नेशनल गेम्स के बाद से आज तक मैंने वैसा 400 मीटर का रेस नहीं देखा है। मैं माखन को पाकिस्तान के अब्दुल खालिक से भी ऊपर मानता हूं।”
पत्नी तक नहीं जानती थीं माखन की कहानी
1962 के जकार्ता एशियन गेम्स में माखन ने 4*400 रिले रेस में गोल्ड जीता, वहीं क्वार्टर-माइल रेस में सिल्वर भी जीता। उन्हें भारत सरकार ने 1964 में अर्जुन अवार्ड से भी नवाजा। रिटायरमेंट के बाद माखन नागपुर अपनी बहन के पास चले गए जहां वो ट्रक चलाते थे। साल 1990 में एक्सीडेंट की वजह से उन्हें एक पैर गंवाना पड़ा। इसके बाद वो वापस पंजाब लौट आए। उन्हें 700 रुपए पेंशन मिलती थी। इसी में उनको महीनों भर अपने तीनों बच्चों का पेट भरना होता था। 1972 में माखन की शादी हुई। उनकी पत्नी सिर्फ इतना जानती थीं कि उनके पति एक ट्रक ड्राइवर है। पत्नी सुरिंदर कौर बताती हैं, “एक दिन मैंने अचानक एक पत्रिका में उनकी तस्वीर देखी। उनके बारे में कुछ आर्टिकल लिखे गए थे। पढ़ने के बाद मुझे पता चला कि मेरे पति भारत के एथलीट थे और उन्हें भारत सरकार द्वारा अर्जुन अवार्ड भी मिल चुका है। यह बात मैंने अपने मायके में बताई तो सब हैरान रह गए। एक दिन मुझे कुछ फोटो उठाने को बोले जो उन्होंने कपड़ों के तह में रखे थे। मैंने उनकी वह बेहतरीन फोटो देखी जिसमें वह कोलकाता नेशनल गेम्स में मिल्खा को हराकर फिनिशिंग लाइन में खड़े हुए उनकी ओर देख रहे थे।”
अपने अफ़्साने की शोहरत उसे मंज़ूर न थी
उस ने किरदार बदल कर मिरा क़िस्सा
गुमनामी में जिए और गुमनामी में ही..
एक बार माखन ने अपने परिवार से कहा था कि मेरी मौत के बाद दुनिया मुझे जानेगी। उनकी पत्नी कहती हैं,” साल 2009 में तत्कालीन खेल मंत्री एमएस गिल ने हमें दिल्ली बुलाया और तीन लाख रुपए की मदद की। उन पैसों से हमने छत ठीक करवाया और बचे पैसों को बैंक में जमा करवा दी।” साल 2013 में जब राकेश ओमप्रकाश मेहरा की फिल्म “भाग मिल्खा भाग” आई, तब एक बार फिर से कुछ अखबारों ने माखन सिंह का ज़िक्र किया। लेकिन जो शोहरत मिल्खा ने पाई वो माखन के नसीब में नहीं था। उस वक्त मीडिया का भी इतना शोर नहीं था। 2002 में माखन सिंह दुनिया को अलविदा कह दिया। वो कहते हैं न..
इज्ज़तें, शोहरतें, उल्फतें, चाहतें
इस दुनिया में रहता नहीं,
आज मैं हूं जहाँ कल कोई और था,
ये भी इक दौर है वो वो भी इक दौर था….
आज मैं हूं जहाँ कल कोई और था,
ये भी इक दौर है वो वो भी इक दौर था….