सिर्फ केन्या के एलीड किपचोग को छोड़कर मैराथन के इतिहास में ऐसा कोई भी रनर नहीं है, जिसने 10 में से 9 रेस जीती है। इसके अलावा एलीड किपचोग के नाम एक ओलंपिक गोल्ड मेडल भी दर्ज है, किपचोग को महान कोच पैट्रिक सैंग ने 16 साल की उम्र में खोजा था। तकरीबन दो साल की ट्रेनिंग के बाद किपचोग ने साल 2003 में पेरिस विश्व चैंपियनशिप में 5000 मीटर की मैराथन में महान हिचैम एल गुरौज और केननिसा बेकल को मात देकर सभी को हैरान कर दिया था।
कुछ उसी तरह ही भारत के रिकॉर्ड ब्रेकिंग रनर बुधिया सिंह की कहानी है। ये वही बुधिया सिंह हैं, जिनके दौड़ने पर सरकार को बैन लगाना पड़ा था। बुधिया सिंह के नाम 7 घंटे, 2 मिनट में 65 किमी दौड़ने का रिकॉर्ड दर्ज है। बुधिया की उम्र अब 16 वर्ष है, और वह साल 2024 में मैराथन इवेंट में ओलंपिक मेडल लाने की ख्वाहिश रखते हैं।
बुधिया सिंह के जीवन पर आधारित एक फिल्म भी बन चुकी है, जिसका नाम बुधिया सिंह बॉर्न टू रन है। हालांकि बुधिया सिंह राजनीति के शिकार हुए और लोग उन्हें भुला बैठे। लेकिन वह हिम्मत नहीं हारे और भारत के लिए ओलंपिक मेडल जीतने का उनका सपना आज भी बरकरार है। वह फिलहाल अभी अकेले हफ्ते में 6 दिन ट्रेनिंग करते हैं, लेकिन अब उनके मदद के लिए सैंग आगे आएं हैं।
सैंग ने समाचार एजेंसी रायटर से बात करते हुए कहा कि कोच की भूमिका युवा रनर को हैंडल करने की होती है। इसके अलावा रनर का वर्कलोड मैनेज करना होता है, साथ ही उनकी उम्र के हिसाब उसकी ट्रेनिंग का रूटीन सेट करना होता है।
बुधिया सिंह को सैंग ट्रेनिंग देना चाहते हैं, इससे पहले वह किपचोग के अलावा कई अन्य चैंपियनों को ट्रेनिंग दे चुके हैं। सन् 1992 में बर्सिलोना ओलपंकि में 3000 मीटर की स्टीपलचेज में सिल्वर मेडल जीत चुके हैं। वहीं बुधिया ने 6 वर्ष की उम्र में 25 बार सेम दूरी के मैराथन को जीतकर रिकॉर्ड दर्ज किया था। 54 वर्षीय सैंग ने इसी वजह से बुधिया सिंह को ट्रेनिंग देने का फैसला किया है।
हालांकि सैंग ने ये भी कहा है कि बुधिया सिंह के मेडिकल परीक्षण के बाद ये निर्णय लेंगे की, वह 5000 मीटर और 10000 मीटर में कैसा प्रदर्शन करेगा और ये सब बुधिया की क्षमता पर निर्भर करेगा।