संघर्ष किए बगैर कुछ भी आसानी से हासिल नहीं किया जा सकता। इस बात से नकारा नहीं जा सकता कि किसी भी मुकाम तक पहुँचने के पीछे कडा संघर्ष छुपा होता है। खासतौर पर बात जब हो रही हो खेल जगत की तो इस क्षेत्र में खिलाड़ियों को जीतने के लिए कड़े संघर्ष की जरुरत होती है। खेल जगत के खिलाड़ी इस बात को भलीभांति जानते हैं कि विरोधी टीम को हराने के लिए उनका फिट होना बेहद आवश्यक होता है। खिलाड़ी अपने फ़िटनेस के बलबूते ही विपक्षी टीम को धूल चटा सकतें हैं। खेल में बेहतर प्रदर्शन के लिए खिलाड़ियों को चोटिल होने से बचना होता है। उनका चोटिल होना ही उनके लिए सबसे बड़ी चिंता का विषय होता है। चोटिल होने के बाद एक तो उन्हें खेल से दूर रहना पड़ता है और दूसरा इसका सीधा असर उनके रिकार्ड्स और प्रदर्शन पर पड़ता है। आज हम ऐसे ही एक खिलाड़ी के चोटिल होने के बाद के संघर्ष पर प्रकाश डालेंगे।
यहाँ हम बात कर रहें हैं, भारतीय बैडमिंटन स्टार ‘समीर वर्मा’ की जिन्होंने कंधे की चोट का सामना करते हुए खेल में शानदार वापसी की और वो पिछले साल प्रतिष्ठित ‘बीडब्ल्यूएफ’ टूर फाइनल के लिए क्वालीफाई करने वाले अकेले भारतीय पुरुष शटलर बन गए। इस मुकाम तक पहुँचने के पीछे छुपा था उनका कड़ा संघर्ष। अपने बैडमिंटन प्रेम के बारे में समीर कहते हैं “कि मुझे शुरू से ही बैडमिंटन खेलना पसंद था। पिताजी मध्य प्रदेश स्थित धार जिले के एक क्लब में बैडमिंटन खेला करते थे। पिता को देखकर मेरे भाई और मैंने भी खेलना शुरू किया। आगे चलकर मेरी दिलचस्पी इस खेल में बढ़ती गई।”
ऐसे शुरू हुआ संघर्ष

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साल 2011-12 में, विश्व जूनियर और एशियाई जूनियर चैंपियनशिप में चार पदक जीतेने वाले समीर अपने चोट के बारे में कहते हैं कि “मैं इस दौरान चोटों से जूझता रहा। साल 2012 में पीठ में चोट लगने के बाद साल 2013 में शानदार वापसी की। इस दौरान मैं मन ही मन सोच रहा था कि काश अब दोबारा चोटिल न होना पड़े।” लेकिन साल भर बाद ही वर्ष 2014 में उन्हें अपेंडिसाइटिस का शिकार होना पड़ा। इस बिमारी ने मानो उन्हें भीतर से झकझोर दिया। इस दौरान उनका आत्मविश्वास पूरी तरह से टूट गया था। उनका मन बेहद उदास हो गया था।
जब हो भाई का साथ

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इस बाबत वो आगे कहते हैं कि “निराशा मुझ पर इस कदर हावी हो रही थी कि मुझे कुछ सूझ ही नहीं रहा था। मैं अक्सर सोचा करता था कि अब आगे क्या होगा। नकारात्मकता ने चारों तरफ से मुझे जकड़ रखा था। ऐसे में मुझे मेरे भाई सौरभ का साथ मिला। उन्होंने मुझे हार मानने से रोका। वो मेरे लिए आशा की किरण बने। मुझे हर पल प्रोत्साहित करते रहे। जब मैं अस्पताल में भर्ती था तब वो रोजाना अस्पताल आते समय अपना लैपटॉप लेकर आते और खेलते हुए वीडियो मुझे दिखाते और कहते कि देखो तुम कितना अच्छा खेलते हो।” उनका यह ट्रिक कारगर साबित हुआ परिणामस्वरूप समीर को उनका खोया हुआ आत्मविश्वास प्राप्त होने लगा। अब वो धीर-धीरे ठीक होने लगे थे और एक बार फिर राष्ट्रीय चैंपियन बनने की तैयारी करने लगे।

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इसी दौरान उन्हें एक बार फिर गहरी चोट का सामना करना पड़ा। साल 2017 में लगी कंधे की चोट समीर के इरादों को कमजोर नहीं कर सकी। उनके मजबूत इरादें उन्हें बेहतर प्रदर्शन करने के लिए प्रेरित करते रहे। परिणाम स्वरुप साल 2018 में समीर वर्मा ने बेहतर प्रदर्शन किया। फ़िटनेस पर उनका मानना हैं कि “खेल में बेहतर प्रदर्शन के लिए मेरे लिए सबसे अहम है मेरी फिटनेस। मुझे पता है कि अगर मैं फिट हूं, तो परिणाम मेरे ही मन मुताबिक होंगे। मैं चाहता हूं कि इस साल भी मैं फिट और चोट से दूर रहूँ।” इस तरह उन्हें उम्मीद हैं कि साल 2019 में भी वो शनदार प्रदर्शन करेंगे।