ऑस्ट्रेलिया के गोल्ड कोस्ट में 21वें कॉमनवेल्थ गेम्स के 11वें दिन भारत ने शानदार अंदाज में अपने अभियान का समापन किया। भारत ने इस बार कॉमनवेल्थ गेम्स में 66 मेडल अपने नाम किए जिनमें 26 गोल्ड, 20 सिल्वर और 20 ब्रॉंज मेडल शामिल हैं। कॉमनवेल्थ गेम्स के इतिहास में भारत का ये तीसरा सर्वश्रेष्ठ प्रदर्शन रहा। हालांकि इस बार कुछ खिलाड़ी ऐसे भी रहे जिनसे बेहतर प्रदर्शन की उम्मीद थी लेकिन वो अपने काबिलियत और क्षमता के अनुरुप प्रदर्शन नहीं कर पाए। आइये नजर डालते ऐसे ही कुछ एथलीट्स पर जो इस बार कॉमनवेल्थ गेम्स में अपना प्रभाव छोड़ने में नाकाम रहे।
रियो ओलंपिक की ब्रॉंज मेडल विजेता साक्षी मलिक को इस बार के कॉमनवेल्थ गेम्स में कुश्ती में गोल्ड मेडल का दावेदार माना जा रहा था, लेकिन लगातार दो मुकाबले हारकर साक्षी का गोल्ड मेडल जीतने का सपना चकनाचूर हो गया।
साक्षी ने महिलाओं की फ्री स्टाइल कुश्ती के 62 किलोग्राम भार वर्ग के पहले मुकाबले में कैमरून की बर्थ इमिलिएने इटाने गोले को 10-0 से मात देकर विजयी शुरुआत की। हालांकि दूसरे मैच में साक्षी का कनाडा की मिशेल फजारी के खिलाफ हार का सामना करना पड़ा। मिशेल ने साक्षी को 11-8 से मात दी। तीसरे मैच में भी साक्षी को नाइजीरिया की अमिनात एडेनियी से हार का सामना करना पड़ा। नाइजीरियाई खिलाड़ी ने साक्षी को 6-3 से मात दी।
लगातार 2 हार के बाद ओलंपियन साक्षी गोल्ड मेडल की रेस बाहर हो गई। अपने आखिरी मुकाबले में उन्होंने न्यूजीलैंड की टेलर फोर्ड को मात देकर ब्रॉंज मेडल पर कब्जा जरुर किया लेकिन उनके चेहरे पर वो खुशी नहीं दिखाई दी जिसके लिए वो यहां आईं थीं। आपको बता दें कि साक्षी ने इससे पहले साल 2014 में ग्लॉस्गो में हुए कॉमनवेल्थ गेम्स में ब्रॉंज मेडल जीता था।
साक्षी मलिक
ऑस्ट्रेलिया के गोल्ड कोस्ट में हुए कॉमनवेल्थ गेम्स में भारतीय निशानेबाजों ने शानदार प्रदर्शन किया। भारत ने शूटिंग में 7 गोल्ड सहित 16 मेडल अपने नाम किए। एक तरफ जहां भारतीय निशानेबाजों ने शानदार प्रदर्शन किया। वहीं कुछ निशानेबाज ऐसे भी रहे जिन्होंने काफी निराश किया। इसमें सबसे बड़ा नाम निशानेबाजी टीम के सबसे अनुभवी खिलाड़ी मानवजीत सिंह संधु का रहा जो इस बार ट्रैप इवेंट के क्वॉलिफेकशन राउंड में ही बाहर हो गए। तीन बार के ओलिंपियन संधु के अनुभव का अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि वह कॉमनवेल्थ गेम्स में लगातार 3 बार गोल्ड मेडल जीत चुके हैं। वहीं एशियन गेम्स में भी उनके नाम 5 गोल्ड मेडल दर्ज हैं।
मानवजीत सिंह संधु
कॉमनवेल्थ गेम्स में भारत के मुक्केबाजों ने शानदार प्रदर्शन किया। भारत ने इस बार कॉमनवेल्थ में 12 मुक्केबाजों का दल भेजा था जिसमें 9 मुक्केबाजों ने सफलता हासिल की। भारत ने मुक्केबाजी में 2 गोल्ड सहित 9 मेडल अपने नाम किए। 12 मुक्केबाजों में सबसे बड़ा नाम 31 साल के मनोज कुमार का था जिन्होंने इस बार काफी निराश किया। मनोज भले ही ब्रॉंज मेडल जीतने में सफल रहे लेकिन वो अपना पिछला प्रदर्शन भी नहीं दोहरा पाए। मनोज ने साल 2014 में ग्लॉस्गों में हुए कॉमनवेल्थ गेम्स में सिल्वर जबकि दिल्ली कॉमनवेल्थ में गोल्ड मेडल हासिल किया था।
मनोज कुमार
भारत में जब भी टेबल टेनिस की बात होती है तो सबसे पहला नाम जेहन में अचंता शरथ कमल का आता है। भारत के अनुभवी खिलाड़ी शरथ कमल अंतर्राष्ट्रीय स्तर टेबल टेनिस में कई खिताब भारत दिलवा चुके हैं। लेकिन इस बार कॉमनवेल्थ गेम्स में वह बेहतर प्रदर्शन नहीं कर पाए। शरथ से इस बार गोल्ड मेडल की उम्मीद थी लेकिन वो पुरुष एकल में ब्रॉंज और पुरुष डबल्स में सिल्वर मेडल जीत सके। हालांकि टीम इवेंट में भारत गोल्ड पर कब्जा करने में सफल रहा। बता दें कि शरथ कमल ने 2006 कॉमनवेल्थ में पुरुष एकल में गोल्ड जबकि 2010 में ब्रॉंज मेडल जीता था। हाल ही में शरथ कमल ने 8वीं बार सीनियर राष्ट्रीय टेबल टेनिस चैंपियनशिप का खिताब जीत कर कमलेश मेहता के रिकॉर्ड की भी बराबरी की थी।
अचंता शरथ कमल
21वें कॉमनवेल्थ गेम्स में भारतीय पुरुष हॉकी टीम का प्रदर्शन काफी निराशाजनक रहा। भारल ने लीग मुकाबलों में 3 जीत और एक ड्रॉ के साथ भले ही ग्रुप में टॉप स्थान हासिल किया लेकिन नॉक आउट स्टेज में हॉकी टीम अपने से कम रैंक वाली इंग्लैंड और न्यूजीलैंड से भी हार गई। इस हार के साथ ही भारत को 2006 के बाद पहली बार खाली हाथ लौटना पड़ा। भारतीय हॉकी टीम के खराब प्रदर्शन में जितना हाथ खिलाड़ियों का रहा उससे कहीं ज्यादा कोच श्योर्ड मरीन्ये का रहा। रोल्ट ओल्टमंस की जगह कोच बनाए गए श्योर्ड मरीन्ये की रणनीति हर मैच में विफल रही। पूरे टूर्नामेंट के हर मैच में शुरुआती मिनटों के बाद टीम पूरे समय संघर्ष करती नजर आई। पूरे टूर्नामेंट भारतीय टीम के लिए पेनल्टी कॉर्नर चिंता का सबब बना रहा।
लीग स्टेज के पहले मुकाबले में भारत का सामना पाकिस्तान से हुआ। लेकिन इस मैच में भी भारतीय टीम संघर्ष करती नजर आई। पिछले 4 साल में भारत के खिलाफ एक भी मैच नहीं जीतने वाली पाकिस्तान की टीम ने भारत को कड़ी चुनौती दी।
पाकिस्तान के खिलाफ पहले मैच में भारत ने शुरुआती बढ़त के बावजूद रक्षात्मक खेल दिखाया। यही वजह रही कि भारतीय हॉकी टीम आखिरी मिनटों में गोल खा गई और मैच 2-2 से ड्ऱ़ हो गया। इसके बाद हॉकी टीम ने वेल्स, मलेशिया और इंग्लैंड के खिलाफ करीबी अंतर से जीत जरुर दर्ज की लेकिन इसमें भारतीय टीम की पोल खोल के रख दी। सेमीफाइनल में भारत को न्यूजीलैंड के हाथों 3-2 से हार का सामना करना पड़ा। इसके बाद ब्रॉंज मेडल मुकाबले में भी टीम इंडिया को इंग्लैंड ने 2-1 से हरा दिया। इस हार के साथ ही भारतीय हॉकी पर कई सवाल खड़े हो गए जिनका जवाब भारतीय कोच श्योर्ड मरीन्ये को आने वाले समय में जरुर पूंछा जाएगा।
इन सबके बीच भारत के गोलकीपर श्रीजेश का प्रदर्शन कमाल का रहा जो भारतीय गोल पोस्ट पर दीवार बन कर खड़े रहे। सिर्फ श्रीजेश ही थे जिनकी बदौलत भारत रोमांचक मैचों में परिणाम अपनी तरफ करने में सफल रहा वरना टीम के पहले चरण में ही बाहर होने का खतरा मंडरा रहा था।
भारतीय हॉकी टीम