सौरव गांगुली के करियर में 2005-06 का वक्त काफी बुरा रहा। इस दौरान वो टीम से भी रुखसत हो गए। लेकिन गांगुली ने एक खिलाड़ी और एक इंसान के तौर पर पहले से भी कहीं मजबूत होकर टीम में वापसी की। वापसी के बाद सौरव का प्रदर्शन पहले से भी बेहतर रहा। 113 मैच लंबे टेस्ट करियर का इकलौता दोहरा शतक भी सौरव ने वापसी के बाद ही लगाया।
बात है साल 2007 की जब अनिल कुंबले की कप्तानी में टीम इंडिया पाकिस्तान के खिलाफ घरेलू सीरीज में 1-0 से आगे चल रही थी। सीरीज का तीसरा और आखिरी टेस्ट मैच बेंगलूरु के चिन्नास्वामी स्टेडियम पर खेला गया। पहले बल्लेबाजी करते हुए भारत की पारी लड़खड़ा गई। 61 रनों के स्कोर तक राहुल द्रविड़, वीवीएस लक्ष्मण समेत चार बल्लेबाज पवेलियन लौट गए। टीम को इस मुश्किल से उबारने का काम किया अनुभवी सौरव गांगुली और युवा युवराज सिंह ने। दोनों ने 300 रनों की बेमिसाल साझेदारी की। युवराज ने 203 गेंदों पर 169 रनों की जोरदार पारी खेली लेकिन आकर्षण का केंद्र बनी सौरव गांगुली की पारी। सौरव ने युवराज के आक्रामक रुख का साथ देते हुए अपने अनुभव की झलक दिखाई। युवराज ने जहां तेजी से रन बटोरते हुए 135 गेंदों पर जोरदार शतक ठोका, वहीं सौरव ने धैर्य रखा और 178 गेंदों पर 100 रन पूरे किए।
पहले दिन 125 रन पर नाबाद लौटे सौरव ने दूसरे दिन 241 गेंदों पर 150 रन पूरे किए। अब सौरव के फैन्स को उनके पहले दोहरे शतक की उम्मीद बंध चुकी थी। सौरव ने भी निराश नहीं किया और 83 गेंदों पर अगले 50 रन भी पूरे कर लिए। ये सौरव के टेस्ट करियर का पहला और आखिरी दोहरा शतक रहा। भारत ने 626 रन का स्कोर खड़ा किया। मैच ड्रॉ रहा, पर सीरीज 1-0 से भारत के नाम रही।
दादा ने मैराथन पारी में 518 मिनट क्रीज पर बिताए और 361 गेंदों का सामना किया। 30 चौके और दो छक्के की मदद से 239 रन की सौरव की इस पारी ने उनके करियर में एक और कीर्तिमान जोड़ दिया। पाकिस्तान के खिलाफ इस सीरीज में यादगार प्रदर्शन के लिए सौरव को मैन ऑफ द मैच और मैन ऑफ सीरीज भी चुना गया। दादा के साथ-साथ उनकी वो पारी आज भी हमारे दिलों में बस्ती है।