वैसे तो कहा जाता है कि लड़कियों में लड़कों के मुकाबलें अधिक सहनशीलता और क्षमता होती है। बस उन्हें तलाश होती है एक मौके की। देश की बेटियों को अगर मौक़ा मिलें तो वो हर वो मैदान फतह कर सकती हैं जिसे शायद लड़के न कर सकें। पिछले तीन दशकों में खेल के क्षेत्र में लड़कियों की भागीदारी बढ़ी है। बेटियों ने देश के लिए कईं अंतर्राष्ट्रीय खिताब जीतें हैं जो सिर्फ वो ही जीत सकती थी। मौजूदा दौर के इस बदलते परिवेश में लड़कियाँ किसी मामले में लड़कों से पीछे नहीं हैं। खेल के हर क्षेत्र में इनका दबदबा देखा जा सकता है।
बात करें क्रिकेट की तो अक्सर हम और आपने लड़कियों को गेंदबाज़ी या बल्लेबाज़ी करते देखा हैं। लेकिन क्या आप ने किसी महिला को अंपायरिंग करते देखा है। आप कहेंगे भला अंपायरिंग में कोई महिला क्यों दिलचस्पी लेगी। वैसे भी चिलचिलाती धूप में घंटो एक जगह खड़े होना साधारण बात नहीं है और ऊपर से गेंदबाज़ों द्वारा की जाने वाली अपील। गलत निर्णय देने पर बल्लेबाज़ की नाराज़गी तथा गेंदबाज़ों और बल्लेबाज़ों की भिड़ंत के साथ-साथ और भी बहुत कुछ झेलना पड़ता हैं अंपायर को। ऐसे में दृढ सहनशक्ति का परिचय देना पड़ता है उन्हें।

Picture Source :- Facebook / Vrinda Rathi
लेकिन वो महिला अंपायर होने के बाद भी इन सभी चीज़ों को मुस्कराते हुए देखती हैं और अपना निर्णय सुनाती हैं। हम बात कर रहें हैं भारत की आर्थिक राजधानी मुंबई से सटे नवी मुंबई की निवासी वृंदा राठी की, जो इन दिनों मुंबई क्रिकेट एसोसिएशन के मैचों में धूल भरे मैदानों में अंपायरिंग करते हुए नज़र आ जाती हैं।
अक्सर क्रिकेट खेल रहे युवा खिलाड़ियों को फील्ड पर महिला अंपायर्स की उतनी आदत नहीं होती इसलिए खिलाड़ी अकसर वृंदा को ‘मेडम’ की जगह ‘सर’ पुकार देते हैं। शॉर्ट हेयर रखने वाली वृंदा के लिए यह निगेटिव कॉमेंट नहीं है। ब्लैक पेंट और सफेद रंग की पूरी बाजू वाली शर्ट और सिर पर हैट पहने 29 वर्षीया वृंदा का अंपायरिंग लुक इंटरनैशनल क्रिकेट में दिखने वाले अंपायर से कम नहीं लगता। हालाँकि अंतरराष्ट्रीय स्तर पर अंपायर के लिए यह आवश्यक नहीं है कि वह पेशेवर स्तर पर खेल खेले हो। वृंदा के पास मीडियम पेसर के रूप में मुंबई विश्वविद्यालय के लिए खेलने का चार साल का अनुभव है।

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वृंदा ने बीते महीने बीसीसीआई की अंपायरिंग के लिए होने वाली लेवल 2 परीक्षा पास की है। इससे पहले राठी मुंबई के लिए कई लोकल मैचों में बतौर स्कोरर भी अपनी सेवाएं दे चुकी हैं। राठी के अलावा चेन्नई की एन. जननी ने भी यह परीक्षा पास की है। जननी अब भारत की अंतर्राष्ट्रीय महिला अंपायर हैं। खैर… भारत की महिलाएं अब सिर्फ क्रिकेट ही नहीं खेलतीं बल्कि अब वो अंपायरिंग में भी अपना हाथ आज़मा रही हैं। पेशे से फिटनेस कोच वृंदा कहती हैं कि “अहंकार एक ऐसी चीज है जिसे अंपायर बर्दाश्त नहीं कर सकता है, महिला अंपायरों की उपस्थिति में लड़के अक्सर अपनी आक्रामकता को नियंत्रित कर लेते हैं।”
‘द टाइम्स ऑफ इंडिया’ से हुई बातचीत में वो कहती हैं कि ” बॉडी लैंग्वेज, कम्युनिकेशन और इंटरपर्सनल स्किल्स से ज्यादा, एक अच्छा अंपायर वो होता है जो एक अच्छे अंपायर को परिभाषित करता है।” वृंदा आगे कहती हैं कि “अंपायरिंग के दौरान चिलचिलाती धूप में आपको अपने कौशल को सुधारने की आवश्यकता होती है।” वाणिज्य स्नातक, राठी का कहना है कि, ” आप चाहों तो कोई भी काम कर सकते हों, किसी भी काम को करने में आपका जेंडर कोई मायने नहीं रखता है।” वृंदा राठी अंपायरिंग की परीक्षाओं को पास करने के बाद से खासा नाम कमा रहीं हैं। इनके इस जज़्बे को देखकर दंगल फिल्म का यह डायलॉग सहज ही आपके मुहं से निकल आएगा कि “म्हारी छोरियाँ, छोरों से कम हैं के।”