क्रिकेट में वेस्टइंडीज-इंग्लैण्ड के दबदबे के बीच 1983 का विश्वकप जीतकर भारत ने सबको चौंका दिया था। कपिल देव की कप्तानी और गेंद-बल्ले से प्रदर्शन का ये विश्वकप जिताने में बड़ा योगदान था। खास तौर पर जिम्बाब्वे के खिलाफ कपिल की ऐतिहासिक 175 रन की पारी ने टीम के मनोबल और आत्मविश्वास पर खासा असर डाला। इस मैच के बाद टीम में भरोसा आ गया कि वो किसी भी परिस्थिति से निकलकर मैच जीत सकते हैं।
भारत ने टॉस जीतकर पहले बैटिंग का फैसला किया, जो कि कुछ ही देर में गलत साबित होने लगा। जिम्बाब्वे की पेस बॉलिंग जोड़ी लॉसन और कुरन ने भारतीय टॉप ऑर्डर को हत्थे से उखाड़ दिया। ओपनर सुनील गावस्कर और श्रीकांत बिना खाता खोले ही आउट हो गए। मोहिंदर अमरनाथ 5 रन, संदीप पाटिल 1 रन और यशपाल शर्मा 9 रन बनाकर पवेलियन में थे। स्कोर 17 रन तक पहुंचते-पहुंचते ये पांच विकेट गिर गए। मैदान पर उतरे कप्तान कपिल देव और यहीं से पूरी कहानी पलट गई।
कपिल ने सही मायने में वन मैन वंडर पेश किया और धुआंधार 138 बॉल पर 175 रन ठोक दिए। पारी में 16 चौके औऱ छह लंबे छक्के भी जड़े। कपिल ने अकेले दम पर भारत की मैच में दमदार वापसी करा दी। इसका अंदाजा इससे लगा सकते हैं कि कपिल के बाद सबसे ज्यादा 22 रन रोजर बिन्नी ने बनाए।
भारत ने 266 रन का स्कोर खड़ा किया और मैच 31 रन से जीता। कपिल ने गेंद से भी किफायती रहते हुए एक विकेट चटकाया। खैर इस मैच के बाद विश्वकप में भारत का सफर तो हर कोई जानता है।