वनडे क्रिकेट में यह माना जाता रहा है कि है कि पारी की शुरुआत भले ही धीमी हो, लेकिन विकेट हाथ में होने चाहिए जिससे अंतिम ओवरों में तेज़ी से रन बनाए जा सकें। वनडे क्रिकेट में यह फॉर्मूला पुराना है और सभी टीमें इसे अपनाती भी थीं, यही वजह है कि 15 ओवरों तक फील्डिंग रिस्ट्रिक्शन होने के बावजूद बल्लेबाज़ी करने वाली टीमें अधिक रन बनाने पर ध्यान नहीं देती थी। बस किसी तरह विकेट हाथ में रहें तो अंतिम ओवरों में रन जुटाए जाएं।
90 के दशक तक गेंद और बल्ले के बीच बराबर का मुकाबला होता था। यानी वनडे क्रिकेट के नियमों में एक संतुलन था जो गेंदबाज और बल्लेबाज़ दोनों को ही बेहतर खेल दिखाने के समान अवसर देता था, लेकिन फिर वनडे क्रिकेट को रोचक बनाने के प्रयास किए गए और इसका स्वरूप बदला। बदलाव के नाम पर हाई स्कोरिंग मैच करवाने का लक्ष्य बनाया गया, जिससे अधिक से अधिक दर्शक खेल में रूचि लें।
सफेद गेंद से खेल होने लगा, फील्डिंग रिस्ट्रिक्शन का फायदा बल्लेबज़ उठाने लगे और बेसिक्स से अलग लॉफ्टेड शॉट्स अधिक देखने को मिले। साथ ही पिच भी बल्लेबाजों के फेवर की बनाए जाने लगीं। वनडे क्रिकेट में रोचकता लाने के लिए किए गए बदलावों ने खेल को पूरी तरह बल्लेबाजों के पक्ष में झुका दिया। एक समय वह भी आया कि गेंदबाज़ विकेट लेने के बजाय इस बात पर ध्यान क्रेंदित करने लगे कि मार खाने से कैसे बचा जाए?
आज भी वनडे क्रिकेट को रोचक बनाने के लिए अंतरराष्ट्रीय क्रिकेट परिषद नए-नए नियम ला रही है। पावर-प्ले को भागों में बांट दिया गया है और एक ताज़ा
नियम के अनुसार अंतिम ओवरों में एक अतिरिक्त फील्डर 30 गज के घेरे के बाहर रखा जा सकता है। यह बदलाव वर्ल्ड कप 2015 के बाद हुआ और हाल ही
में समाप्त चैंपियंस ट्रॉफी में इसका असर देखा गया, जहां अंतिम ओवरों में वर्ल्ड कप की अपेक्षा कम रन बने।
वर्ल्ड कप 2015 में जहां टीमों में अंतिम 10 ओवरों में 9.32 रन प्रति ओवर की औसत से रन बनाए थे, वहीं चैंपियंस ट्रॉफी के दौरान अंतिम 10 ओवरों में यह
रनगति 7.35 रन प्रति ओवर रही। ये आंकड़े पहली पारी के हैं, क्योंकि विरोधी टीम को लक्ष्य देने के लिए पहले बल्लेबाजी कर रही टीम अधिक से अधिक रन बनान चाहती है। वर्ल्ड कप 2015 और चैंपियंस ट्रॉफी 2017 में एक अतिरिक्त आउटफील्डर के इस नियम में बड़ा अंतर पैदा कर दिया और एक और फील्डर बाउंड्री पर रहने से गेंदबाजों को कुछ राहत मिली।
आंकड़े कहते हैं कि इस बदलाव के बाद अंतिम ओवरों में रन बनाना इतना आसान नहीं रह गया है जितना कि पहले था। वैसे आईसीसी का यह बदलाव गेंदबाजों के लिए राहत की खबर है, क्योंकि अगर सभी नियम बल्लेबाजों के पक्ष में ही चले जाएंगे तो पारी में विशाल स्कोर तो बन जाएगा, लेकिन बल्ले और गेंद में फिर बराबर का मुकाबला नहीं रह जाएगा।
बहरहाल पूरी तरह यह भी नहीं कहा जा सकता कि इसी नियम के कारण चैंपियंस ट्रॉफी में अंतिम 10 ओवरों में अपेक्षाकृत कम रन बने। आने वाले समय से और क्रिकेट होगा और उसका विश्लेषण भी होगा, जिसमें यह देखा जाएगा कि क्या इस नियम के बाद सचमुच गेंदबाजों की कम पिटाई हो रही है या बात कुछ और है? फिलहाल टीमें अगामी क्रिकेट के लिए अवश्य ही इन आकडों को ध्यान में रखेंगी।