कुछ कर गुजरने की चाह ही इंसान का परिचय सफलता से करवाती है। अपनी नाकामी को बाधा समझने वाले कभी सफल नहीं हो सकते। कुछ पाने के लिए बहुत कुछ करना पड़ता है। ऐसी ही एक कहानी है एक ऐसे व्यक्ति की जिसने बहुत कुछ खो कर के सब कुछ पाया है। एक सड़क-दुर्घटना में अपना दायां पाँव गवाने वाले उस शख़्स की कहानी है ही कुछ इस तरह कि यकीन करना मुश्किल होता है कि भला कोई कैसे के पैर से साइकिल चला कर कई कीर्तिमान बना सकता है। उनका नाम लिम्का बुक ऑफ रिकॉर्ड में दर्ज किया जा चुका है। 5.5 घंटे में 100 किमी की सवारी पूरी करने वाले वो पहले दिव्यांग साइकिल चालक हैं। वो अपने कृत्रिम पैर से 2.5 साल की अवधि में 40,000 किलोमीटर से अधिक साइकिल चला चुके हैं।
आपकी उत्सुकता को देखते हुए हम आपको बता दें कि यह कहानी है साल 2013 में हुए ‘एशियन पैरासाइकलिंग चैंपियन’ में दोहरा रजत पदक जीतने वाले हैदराबाद के आदित्य मेहता की। यह कहानी है ही इतनी प्रेरणादायक कि किसी के भी भीतर कुछ कर गुजरने का जज्बा भर दे। अब तक तो आप जान ही गए होंगे कि आदित्य के पास एक ही पैर है।
हैदराबाद की एक बिजनेस फैमली से ताल्लुक रखते हैं आदित्य

Picture Source :- Facebook/ Aditya Mehta
हैदराबाद स्थित सिंकदराबाद की एक बिजनेस फैमली से ताल्लुक रखने वाले आदित्य की रूचि शुरू से ही बिजनेस में थी। 18 चचेरे भाइयों वाले इस सयुंक्त परिवार से आने वाले आदित्य ने टेक्सटाइल के क्षेत्र में अपना व्यापार शुरू किया। उनका यह बिजनेस एक हद तक सफल भी रहा। मजे से ज़िन्दगी कट रही थी। अच्छी खासी ज़िन्दगी को शायद किसी की नज़र लग गई। कहते हैं न सुख ज्यादा दिन एक जगह नहीं ठहरता। साल 2005 में आदित्य के साथ एक हादसा हुआ।
क्विंट से बात करते हुए उन्होंने कहा “मैं अपने हार्ले डेविडसन पर था, जब दूसरी तरफ से आ रहे ट्रक ने मुझे टक्कर मार दी। जैसे ही मैं सड़क पर गिरा, दूसरी तरफ से आ रही एक बस मेरे पैर के ऊपर से गुजर गई। इस हादसे मने मैंने अपना पैर खो दिया। ” हादसे के बारे में पूछे जाने पर वह बताते हैं कि “मैं पूरी तरह टूट गया था और अपना बिजनेस भी मैंने बंद कर दिया था। सच तो यह है कि जीवन से जुड़ी हर उम्मीद मैंने छोड़ दी थी”
सड़क हादसे ने झकझोर दिया था आदित्य को।

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इस भयानक हादसे ने मानो झकझोर दिया था आदित्य को। लेकिन आदित्य का अस्त होना इतना आसान नहीं था। चट्टान को पिघला देने वाले मज़बूत इरादों ने आदित्य का साथ नहीं छोड़ा। तक़रीबन डेढ़ महीने तक पूरी तरह से बिस्तर पर आराम कर, अपने आप को संभालने की जद्दोजहद करने के बाद अपने बिजनेस को आगे बढाने की दोबारा कोशिश करने लगे थे आदित्य। लेकिन यह कर पाना उनके लिए पहले की तरह आसान नहीं था। दक्षिण अफ्रीका में चल रहे अपने बिजनेस को भारत लाना था। इसी कशमकश में उनके पैर उन्हें बमुश्किल से खड़े होने में मदद करने लगे थे। अलबत्ता इस स्थित में वो खुद को संभालते या फिर अपने बिजनेस को।
अपनी इस समस्या से निजात पाने के लिए आदित्य ने कृत्रिम पैर का सहारा लिया और ज़िन्दगी को एक बार फिर पटरी पर लाने की ठानी। बेजोड़ इरादों ने उनका बखूबी साथ दिया और कम समय में ही वो कृत्रिम पैर के सहारे चलने लगे। ऐसे ही एक दिन चलने के दौरान उन्होंने हैदराबाद में बिल बोर्ड पर साइकिलिंग से संबंधित लगा एक विज्ञापन देखा। फिर क्या था, उसी पल आदित्य ने ठान लिया की वो इसमें हाथ आजमाएंगे। हालाँकि एक पैर से साइकिल चलाना आसान नहीं था उनके लिए।
इस चुनौतीपूर्ण काम को करने का मन बना चुके थे आदित्य

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बेहद चुनौतीपूर्ण काम था ये। समस्या विकराल रूप लिए मुहं बाए सामने खड़ीं थी लेकिन जज्बा उससे भी बड़ा था आदित्य का। एक पैर के सहारे साइकिल चलाना आसान नहीं था फिर भी आदित्य ने हार नहीं मानी और पूरी सिद्दत के साथ लक्ष्यप्राप्ति के लिए कूंच कर दिया। इस दौरान कई बार गिरे, उठे फिर गिरे और फिर उठे। इस तरह कई बार उठने-गिरने के बाद एक बार जो उठे तो फिर दोबारा गिराने की जहमत नहीं उठाई उनकी किस्मत ने। एक बार जब वो साइकिल पर सवार हुए तो फिर सफलताएँ उनके ही पीछे पड़ गयी।
पूरे 18 महीनों की कड़ी मेहनत के बाद वो एक प्रोफेशनल पैरासाइकलिस्ट बनें और साल 2013 में लिम्का बुक ऑफ रिकॉर्ड्स में उनका नाम दर्ज हुआ। इसके बाद उन्होंने पीछे मुड़कर कभी नहीं देखा। उनकी मेहनत हिना की तरह रंग दिखाने लगी। एक के बाद एक रिकॉर्ड बनते गये। बात करें उनके रिकार्ड्स की तो उन्होंने हैदराबाद से बंगलुरू का सफर साइकल से तीन दिन में पूरा किया। फिर वो मनाली से लेह-खरदूंगला को फतह करने निकल पड़े और इस दौरान 13,050 फुट ऊंचे रोहतांग पास को पार किया।
कैसे साइकिल चलाने से बदली उनकी ज़िन्दगी

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इसके अलावा आदित्य ने कश्मीर से कन्याकुमारी के बीच का 3600 किलोमीटर का सफर साइकल से तय कर नया रिकॉर्ड बनाया। अपने इस रिकॉर्ड के लिए उन्होंने इस रास्तें में आने वाले देश के 36 शहरों का सफर 36 दिनों में तय किया। इतना नहीं उन्होंने लंदन से पेरिस का 520 किमी का सफर तीन दिन में तय करके एक नया रिकॉर्ड बनाया।
अपने इस सफर के बारे में आदित्य बताते हैं कि “इस दौरान थकान के अलावा भी कई परेशानियां उनके सामने आईं।” उन्होंने बताया कि “इस दौरान उनकी नाक से खून आने लगा, पैर में चोटें आईं और त्वचा भी कई जगहों से कट गई।”.आजतक की रिपोर्ट के मुताबिक आदित्य से सफलता का राज पूछने पर वह बहुत आसान शब्दों में जवाब देते हैं कि “साइकलिंग करने से मुझे जिंदगी में रफ्तार मिलती है।”

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अपने संघर्ष के बाद उन्होंने पैरा-एथलीटों की मदद करने का फैसला किया। साल 2014 में एक संगठन की स्थापना की और कई पैरा-साइक्लिस्टों को प्रशिक्षित करने का काम करने लगे। हाल ही में उन्होंने युद्ध में घायल हुए सीमा सुरक्षा बल के सैनिकों को ‘पैरा-एथलीट का प्रशिक्षण देने का सराहनीय काम शुरू किया, और लोगों के लिए प्रेरणास्रोत बनकर उभरने का काम कर रहें हैं।
कहा जाता हैं कि पक्की धुन और लगन के बलबूते इंसान असंभव को भी संभव कर सकता है। इसे देखकर तो बस यही कहा जा सकता हैं कि बेशक यह रिकॉर्ड आम आदमी के बस की बात नहीं है, इसे पाने के लिए आदित्य की तरह कुछ कर दिखाने की धुन सवार होनी चाहिए तभी जाकर आदित्य बन कर घने तिमिर को हटाया जा सकता है।
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