भारत के बंगाल में फुटबॉल को एक धर्म की तरह पूजा जाता है। यही वजह है कि इस इलाके से कई ऐसे फुटबॉलर निकले हैं, जिन्होंने अपनी कहानी से कई युवाओं को प्रेरित किया है। ऐसी ही एक खिलाड़ी है जो रोज़ अपने सपनों का पीछा करते हुए गांव से तकरीबन साढ़े तीन घंटे का सफर तय करके कोलकाता ट्रेनिंग सेशन में भाग लेती है और फिर शाम को अपने पेट के खातिर गांव के ही एक सिलाई मशीन फ़ैक्ट्री में काम भी करती है।
वह लड़की बंगाल फुटबॉल टीम में डिफेंडर की भूमिका निभाती है, लेकिन असल ज़िंदगी में आती परेशानियों को डिफेंड करने में नाकामयाब रहती है। फुटबॉल के प्रति ऐसी दीवानगी रखने वाली उस फुटबॉलर का नाम कुसुमितार दास है जो अभी भारतीय महिला फुटबॉल टीम का अहम हिस्सा भी हैं। अपने टैलेंट के दम पर कुसुमितार ने पिछले दो सालों में बंगाल को नेशनल चैंपियनशिप ख़िताब जिताया। फुटबॉल के प्रति लगाव और फितूर की वजह से उन्होंने आठवीं के बाद पढ़ाई करनी छोड़ दी।
एक बार जब कुसुमितार के पिता ने उन्हें पढ़ाई पूरी करने को कहा, तो इस पर कुसुमितार का कहना था,” मैं अगर पढ़ाई करने की सोचती तो ज़िंदा नहीं रह पाउंगी।” यही वजह रही कि उन्होंने आठवीं क्लास के बाद पढ़ाई छोड़ दी और फुटबॉल को गंभीरता से लेना शुरू किया। यह उनके लिए एक नए सफर का आगाज़ था। अभी कुछ महीने पहले इस महिला फुटबॉलर ने सिलाई मशीन में काम करना छोड़ कर ग्रीन पुलिस डिपार्टमेंट में नौकरी करनी शुरू की। कुसुमितार कहती हैं कि मैं ग्रीन पुलिस डिपार्टमेंट में काम करती हूँ। मेरा काम ट्रैफिक पुलिस को समझाना और उनकी मदद करना है। यह काम हर रोज़ का है, अगर मैं किसी दिन अनुपस्थित रहती हूँ तो मुझे उस दिन का मेहनताना नहीं मिलता है।
कुसुमिता की लाइफ पर बन रही है फिल्म
हिंदुस्तान अखबार के एक साक्षात्कार में कुसुमितार ने बताया कि,” मेरी ज़िंदगी के ऊपर बंगाली फिल्म भी बन रही है, जिसको डायरेक्ट बंगाली फ़िल्मकार हृषिकेश मंडल कर रहे हैं। फिल्म में मेरा रोल बंगाली अभिनेत्री उषासी चक्रबर्ती निभा रही है। फिल्म का नाम “कुसुमितर गोप्पो” रखा गया है। जब रॉयल्टी फीस के बारे में पूछा गया तो उन्होंने बताया कि,”मुझे बहुत ही कम पैसे मिले हैं। लेकिन अभी मैं एक स्थायी रूप से जॉब तलाश रही हूँ ,जिससे मेरा घर चल सके। नहीं तो फुटबॉल खेलते रहना मेरे लिए बहुत मुश्किल होगा।
डायरेक्टर हृषिकेश मंडल से फिल्म के बारे पूछा गया, तो उन्होंने कहा,” अचेना बंधुत्तो के बाद मैं कोई बढ़िया स्क्रिप्ट पर काम करना चाह रहा था। जब मैंने अखबार के एक आर्टिकल में कुसुमितार दास और उसके संघर्ष के बारे में पढ़ा तो मुझे उनकी कहानी बहुत दिलचस्प लगी। वह उस वक़्त इंजरी से जूझ रही थी ,लेकिन उसकी मदद के लिए कोई सामने नहीं आया। कुछ महीने पहले दास के इलाज़ के लिए कोलकाता में एक चैरिटी मैच भी खेला गया था।”
हृषिकेश मंडल के अनुसार अभी कुसुमिता इंजरी से उबरने की कोशिश कर रही है। लेकिन सवाल देश के फुटबॉल एसोसिएशन और खेल मंत्री पर सवाल उठता है कि वे लोग क्या कर रहे हैं ? सरकार मदद के लिए क्यों नहीं आगे रही है ? इस देश की पराकाष्ठा तो देखिए जहां पुरुष टीम कोई भी मैडल या फिर टूर्नामेंट जीतता है तो पैसों की बारिश होती है। वहीं महिला टीम जीते तो एसोशिएसन और खेल मंत्रियो को सांप सूंघ जाते हैं। फिलहाल खेल से जुड़े सभी आला अधिकारियों को चाहिए कि जरुरतमंद खिलाड़ियों को आगे लेकर आए और उनकी मदद करें।