फुटबॉल का ये वह दौर था, जब खिलाड़ियों ने टीवी मीडिया में बिजी होना और खेल के बाद पार्टीज में जाना शुरू किया था। हालांकि उनके पास सूट-पैंट नहीं हुआ करती थी, इसलिए ये फुटबॉलर ओलंपिक में मिली ड्रेस से ही काम चला लेते थे। लेकिन इस दौर में यूरोप व दक्षिण अमेरिकी देशों का जलवा ही रहता था, बाकी महाद्वीप की टीमें उस समय इतना शानदार फुटबॉल नहीं खेलती थीं। जिसकी वजह से मीडिया में अफ्रीकी व एशियाई देशों के फुटबॉलर्स उतनी जगह नहीं बना पाते थे। इसकी वजह उस दौर का भेदभाव भी हुआ करता था।
सन् 1970 तक फुटबॉल की सबसे बड़ी संस्था माने जाने वाली फीफा का रवैया अफ्रीकी व एशियाई देशों के लिए सही नहीं था। फीफा का रुख साउथ अमेरिकी देशों के अलावा यूरोपीय देशों के प्रति ज्यादा नरम होता था। जिसकी वजह से इन महाद्वीपों के देशों को विश्वकप खेलने में ज्यादा मसक्कत नहीं करनी होती थी। जबकि फीफा अपनी गलत नीतियों का इस्तेमाल एशियाई व अफ्रीकी मुल्कों में फुटबॉल के विकास के खिलाफ करता था।
फीफा की तानाशाही
अफ्रीकी देश जायर ने सन् 1974 में विश्वकप के लिए क्वालिफाई किया, जहां अपनी बेहतरीन स्किल का इस्तेमाल ये टीम नहीं कर पायी और एक भी मैच नहीं जीत पाई। लेकिन जो बदलाव होना चाहिए वह सन् 1978 में ट्यूनीशिया ने मैक्सिको को 3-1 से मात देकर इतिहास रच दिया। इस तरह ट्यूनीशिया विश्वकप में जीत हासिल करने वाला पहला अफ्रीकी मुल्क बन गया।
असल बदलाव
सन् 1982 में हुए विश्वकप में दो अफ्रीकी देशों ने फुटबॉल के इस बड़े संगम में क्वालिफाई करने में सफल हुए। ये देश अल्जीरिया व कैमरून थे, जिसमें ये जानकर आपको हैरानी होगी कि कैमरुन इस महासंग्राम में एक भी मैच न तो जीता न ही हारा। लेकिन अल्जीरिया ने अपने प्रदर्शन से सभी देशों को हैरान किया, इस अफ्रीकी देश ने पहले ही मैच में वेस्ट जर्मनी को 2-1 से मात दिया, जबकि ऑस्ट्रिया से उसे 0-2 से हार का सामना करना पड़ा। लेकिन अपने आखिरी लीग मैच में चिली को अल्जीरिया 3-2 से मात देने में कामयाब रहा।
1982 का वह दौर
फीफा की गलत नीतियों से तंग आकर सन् 1966 वर्ल्ड कप से ठीक पहले होने वाले क्वालिफायर का 31 अफ्रीकी देशों ने विरोध कर दिया था। आपको बता दें सन् 1934 में हुए दूसरे फुटबॉल वर्ल्ड कप में खेलने वाले इजिप्ट को दूसरी बार 36 वर्ष बाद विश्वकप खेलने का मौका मिला था। इसके अलावा मोरक्को को सन् 1970 में पहला फुटबॉल वर्ल्डकप खेलने को मिला था। जिसमें इस देश ने बुल्गारिया को 2-2 से ड्रा खेलने पर मजबूर किया।
फीफा से थी अनबन
सन् 1986 में वह समय आया जो इतिहास रचने के लिए बेहद अनूकूल था, हालांकि फीफा की गलत नीतियां यहां भी हावी थीं। 22 अफ्रीकी देशों में से अल्जीरिया और मोरक्को ने फीफा विश्वकप के लिए क्वालिफाई किया। लेकिन इतिहास और दौर को मोरक्को ने बदलकर रख दिया। अल्जीरिया जहां एक ड्रा और दो हार के बाद टूर्नामेंट से बाहर हो गया। वहीं दूसरी तरफ मोरक्को ने पोलैंड व इंग्लैंड के साथ ड्रॉ खेलने के बाद पुर्तगाल को 3-1 से मात देकर दुनिया को हैरान करते हुए अंतिम 16 में जगह बनाने वाला पहला अफ्रीकी देश बन गया। यहीं से अफ्रीकी देशों में फुटबॉल की दशा व दिशा बदल गई।
दौर बदल गया
दो मैच जीतने वाली अल्जीरिया को अगले राउंड में जगह मिले इसके लिए उसे ऑस्ट्रिया और वेस्ट जर्मनी के मैच का इंतजार था। लेकिन इस मैच का समीकरण ये था कि यदि वेस्ट जर्मनी ये मुकाबला 1-0 या 2-0 से जीता तो गोल के अंतर से ये दोनों यूरोपी देश अगले राउंड के लिए क्वालिफाई कर जाएंगे। जिसके बाद ये मैच विवादों से घिर गया क्योंकि वेस्ट जर्मनी ने मैच के 10वें मिनट में गोल करके, बाकी 80 मिनट तक बिना किसी एफर्ट के फुटबॉल खेलकर इन देशों ने खेल के साथ खिलवाड़ किया। जिसके बाद मैदान में मौजूद दर्शकों ने कोहराम मचा दिया, लेकिन फीफा ने एक बार नियमों का हवाला देकर अल्जीरिया को अगले दौर में नहीं पहुंचने दिया।
फिर हुआ यादगार विवाद