मेजर ध्यानचंद जिनके जन्मदिन को पूरा भारत खेल दिवस के रूप में मनाता है। अपने शानदार खेल के लिए हॉकी के जादूगर के नाम से मशहूर रहे मेजर ध्यानचंद को हॉकी से जितना प्यार था उतना ही प्यार वह अपने देश से भी करते थे तभी तो उन्होंने जर्मनी के तानाशाह एडोल्फ हिटलर तक को ना कहने की हिम्मत दिखाई थी।
ये वाकया है 1936 बर्लिन ओलंपिक का। एम्सटर्डम( 1928) और लांस एजिल्स(1932) में भारत को ओलंपिक गोल्ड दिलाने वाले मेजर ध्यानचंद बर्लिन ओलंपिक में भी टीम का नेतृत्व कर रहे थे। टूर्नामेंट की शुरूआत में एक अभ्यास मैच में जर्मनी ने भारत को बुरी तरह हरा दिया। इस हार से मेजर ध्यानचंद को बड़ा झटका लगा था। भारत ने टूर्नामेंट का आगाज हंगरी को हराकर किया।
ध्यानचंद के नेतृत्व में भारत ने पहले जापान और फिर फ्रांस को करारी शिकस्त दी। इसके बाद 14 अगस्त को फाइनल मुकाबले में भारत और जर्मनी आमने सामने आने वाले थे। मगर 14 अगस्त को काफी बारिश हुई इस वजह से यह मुकाबला 15 अगस्त को आयोजित किया गया।
जर्मनी टीम ने पहले हाफ में शानदार खेल दिखाते हुए भारत को सिर्फ 1 गोल की बढ़त लेने दी। हाफ टाइम खत्म होने के बाद ध्यानचंद ने जर्मनी टीम को सबक सिखाने की ठानी। उन्होंने अपने जूते उतारे और नंगे पांव स्टिक लेकर मैदान में उतर गए। फिर क्या था ध्यानचंद की स्टिक से गेंद मानो चिपक सी गई और कुछ ही देर में ध्यानचंद और भारतीय खिलाड़ियों ने गोलों की झड़ी लगा दी।
6 गोल खाने के बाद जर्मनी ने रफ खेल दिखाना शुरू किया और ध्यानचंद को निशाना बनाया। ध्यानचंद को चोट लगी। फिर क्या था ध्यानचंद चोटिल शेर की तरह और ज्यादा खतरनाक हो गए। उन्होंने अपने खिलाड़ियों को कोई गोल नहीं करने की सलाह दी और जर्मन खिलाड़ियों को उनकी औकात दिखाने की बात कही।
अगले कुछ मिनटों तक भारतीय खिलाड़ियों ने गेंद पर गजब का नियंत्रण दिखाते हुए जर्मनी खिलाड़ियों को खूब छकाया। मैच खत्म हुआ तो भारत का स्कोर 8-1 था। हिटलर भी इस मैच को देख रहे थे। मैच खत्म होने के बाद उन्होंने ध्यानचंद को बुलाया और अपनी सेना में रैंक का पद और जर्मनी के लिए खेलने का ऑफर दिया।
मगर ध्यानचंद ने हिटलर का ऑफर यह कहते हुए ठुकरा दिया कि मैंने भारत का नमक खाया है भारत के लिए ही खेलूंगा। इस तरह ध्यानचंद ने ना सिर्फ बेहतरीन खेल बल्कि देशभक्ति की भी मिसाल पेश की।