2003 हॉकी एशिया कप में भारत खिताब अपने नाम कर चुका था। 2007 एशिया कप में भारत पर दोहरा दबाव था। पहला डिफेंडिंग चैंपियन होने का, दूसरा अपने घर में खेलने का। चूंकि ये एशिया कप भारत में ही हुआ। टीम इंडिया ने हॉकी जगत और फैन्स की उम्मीदों पर खरा उतरते हुए धमाकेदार परफॉर्मेंस किया। ग्रुप राउंड में भारत ने पांच में से पांच मैच जीते और अजेय रहते हुए फाइनल तक का सफर तय किया। फाइनल में भारत के सामने थी साउथ कोरिया की चुनौती। दोनों टीमों के बीच जिस कांटे की टक्कर की उम्मीद थी, मैच का आगाज उसी अंदाज में हुआ।
चौथे मिनट में ही शिवेंद्र सिंह ने गोल कर भारत का खाता खोला, तो नौंवे मिनट में ही जांग-जोंग ने कोरिया के लिए स्कोर बराबर कर दिया। फाइनल मैच में दोनों टीमों ने अपने तेवर दिखा दिए। लेकिन ये बराबरी ज्यादा देर नहीं टिकी।
एसवी सुनील ने 13वें मिनट में भारत को फिर लीड दिला दी और इसके बाद तो टीम इंडिया ने मैच को कब्जे में ले लिया। हाफ टाइम के पहले भारत ने दो और गोल कर कोरिया को बैकफुट पर धकेल दिया। टीम इंडिया के कॉर्डिनेशन और अटैकिंग खेल का कोई जवाब कोरिया के पास नहीं था।
हाफ टाइम के बाद भी कहानी नहीं बदली। भारत ने तीन गोल जल्दी-जल्दी ठोक दिए। कोरिया स्तब्ध था। 68वें मिनट में गोल कर कोरिया ने वापसी की आस जगाई, पर तब तक काफी देर हो चुकी थी। रेफरी की व्हिशल बजते ही स्कोर 7-2 पर फाइनल हुआ। भारत जश्न में डूब गया। लगातार दूसरी बार भारत एशिया का हॉकी चैंपियन बन चुका था। भारत ने साबित कर दिया कि खेल कोई भी..भारत को भारत में हराना आसान नहीं।