भारतीय हॉकी टीम का जो रिकॉर्ड ओलंपिक में है, वैसा ही रिकॉर्ड पाकिस्तानी हॉकी टीम का एशियन गेम्स में हैं। एशियन गेम्स में पाकिस्तान अब तक 8 गोल्ड मेडल अपने नाम कर चुका है। वहीं भारत के नाम 3 गोल्ड दर्ज हैं। यही वजह है कि इन दोनों टूर्नामेंट में जब भी भारत-पाकिस्तान की भिड़ंत होती है तो हॉकी का रोमांच अपने चरम पर होता है।
एशियन गेम्स शुरू होने में अब एक हफ्ते से भी कम का समय बचा है। ऐसे में दोनों देशों के हॉकी प्रेमी अपनी-अपनी टीम की जीत की कामना कर रहे हैं। लेकिन शुरूआत में इन दर्शकों के उत्साह में कमी देखने को मिल सकती है क्योंकि भारत और पाकिस्तान को इस टूर्नामेंट में अलग-अलग ग्रुप में रखा गया है। ऐसे में दोनों देशों के दर्शक ग्रुप स्टेज के बाद भारत-पाक की भिड़ंत की उम्मीद लगाए हुए हैं।
ओलंपिक का टिकट कटाने का सुनहरा मौका
2014 एशियन गेम्स की गोल्ड मेडल विजेता भारतीय हॉकी टीम के लिए ये टूर्नामेंट काफी महत्वपूर्ण हैं। अगर भारत एशियन गेम्स का गोल्ड जीतने में कामयाब हो जाता है तो वह सीधे 2020 टोक्यो ओलंपिक का टिकट कटा लेगा। लेकिन भारत के लिए ये इतना आसान नहीं होगा।
एशियन गेम्स में भारत को पूल-ए में रखा गया है, जिसमें जापान और साउथ कोरिया की टीमें शामिल हैं। रैंकिंग के लिहाज से देखें तो भारत सभी टीमों पर भारी पड़ती है। एशियन गेम्स में हिस्सा लेने वाली टीमों में भारत इकलौती ऐसी टीम हैं, जो टॉप 5 में शामिल हैं। भारत के अलावा सभी एशियाई टीमें टॉप 10 में भी शामिल नहीं है।
2018 में निराशाजनक प्रदर्शन
रैंकिंग के इतर भारतीय टीम के हालिया प्रदर्शन पर नजर डाले तों टीम का प्रदर्शन काफी खराब रहा है। साल 2018 की शुरुआत में ही भारतीय टीम सुल्तान अजलन शाह कप में 5वें स्थान पर रही। इसके बाद अप्रैल में कॉमनवेल्थ गेम्स में भारत को 2010 के बाद पहली बार खाली हाथ लौटना पड़ा। हालांकि जून में खेली गई आखिरी चैंपियंस ट्रॉफी में भारत ने दूसरा स्थान हासिल किया, जो इस साल भारतीय टीम का एकमात्र सर्वश्रेष्ठ प्रदर्शन रहा।
पिछले 1 साल में भारतीय टीम को कोच की समस्या से जूझना भी पड़ा है। सितंबर 2017 में रोलेंट ओल्टमेंस को हटाए जाने के बाद शोर्ड मारिन को कोच नियुक्त किया गया था, जिनकी कोचिंग में भारत को कई बड़े टूर्नामेंट में हार का मुंह देखना पड़ा। इसके बाद हरेंद्र सिंह को कोच बनाया गया, जिनकी कोचिंग में टीम फिर से जीत की राह पर लौट रही है।
हरेंद्र सिंह की निगरानी में भारतीय टीम भले ही सुधार कर रही हो, लेकिन टीम में अभी भी कुछ कमियां बरकरार हैं, जो आने वाले टूर्नामेंट में टीम के लिए घातक साबित हो सकती हैं। तो आइये एक नजर डालते हैं भारतीय हॉकी टीम के कमजोर पक्षों पर…….
अटैक लाइन – भारत का पहला कमजोर पक्ष उसकी अटैक लाइन है। पिछले कई बड़े टूर्नामेंट में भारतीय टीम कई सुनहरे मौकों पर गोल करने से चूकी है। मिडफील्ड और फॉरवर्ड के बीच तालमेल भी एक बड़ी समस्या है, जो आखिरी क्वॉर्टर में अक्सर देखने को मिलती है। पिछले कई मुकाबलों में भारत ने बढ़त लेने के बावजूद मैच ड्रॉ कराए हैं। इसका एक बड़ा कारण मानसिक दवाब भी है, जिसकी वजह से टीम आखिरी समय में बिखर जाती है। ऐसे में टीम को मानसिक तौर पर मजबूत होने के साथ-साथ अपने आक्रमण को मजबूत करने की जरूरत है।
पेनल्टी कॉर्नर – मौजूदा समय में पेनल्टी कॉर्नर भारतीय टीम का सबसे कमजोर पक्ष है। पिछले कई सालों से भारतीय टीम का पेनल्टी कन्वर्जन रेट दुनिया की कमजोर टीमों से भी खराब रहा है। हाल ही में भारत चैंपियंस ट्रॉफी में पेनल्टी के जरिए गोल न कर पाने की वजह से खिताब जीतने से चूक गया। इसकी सबसे बड़ी वजह टीम में पेनल्टी स्पेशलिस्ट की कमी है। वर्तमान में भारतीय टीम में रूपिंदर पाल सिंह इकलौते पेनल्टी कॉर्नर स्पेशलिस्ट हैं। ऐसे में भारत को रूपिंदर के अलावा कई और खिलाड़ियों को पेनल्टी कॉर्नर में माहिर बनाना होगा। इसके अलावा टीम को पेनल्टी में वेरियेशन लाने की भी जरूरत है।