रानी रामपाल के नेतृत्व में भारतीय महिला हॉकी टीम आज से एशियन गेम्स में अपने अभियान का आगाज करेगी। दुनिया की 9वें नंबर की टीम भारत अपने पहले मुकाबले में मेजबान इंडोनेशिया से भिड़ेगी।
भारतीय टीम के लिए टोक्यो ओलंपिक का सीधा टिकट कटाने का ये सुनहरा मौका है ऐसे में टीम इंडिया की नजर इस टूर्नामेंट में गोल्ड जीतने पर होगी। भारतीय टीम में वैसे तो कई शानदार खिलाड़ी मौजूद हैं, लेकिन एक खिलाड़ी ऐसी भी है जिस पर टीम का काफी दारोमदार होगा।
हम बात कर रहे हैं ड्रैग फ्लिकर गुरजीत कौर की जिसने संघर्षों पर विजय प्राप्त कर टीम में अपनी जगह बनाई और आज एशियन गेम्स में अपना जलवा बिखेरने को तैयार हैं। आइये जानते हैं गुरजीत कौर के हॉकी खिलाड़ी बनने की संघर्षशील कहानी………
एशियन गेम्स से पहले गुरजीत कौर और उनके पिता सतनाम सिंह ने टाइम्स ऑफ इंडिया को दिए एक इंटरव्यू में अपनी बेटी के संघर्ष के बारे में विस्तार से बात की। सतनाम सिंह ने बताया कि गुरजीत हर दूसरे दिन 150 किमी. का सफर तय कर हॉकी की प्रैक्टिस के लिए पहुंचती थी।
गुरजीत कौर तरन तारन जिले के कैरों गांव में प्रैक्टिस करती थी। सतनाम ने बताया, “मुझे पता था कि गुरजीत में प्रतिभा है। बस उसे निखारने की जरूरत थी। जब वह छठी क्लास में पढ़ती थी तभी मैंने उसे कैरों सीनियर सेकेंडरी स्कूल में भेज दिया जहां उसकी चेचरी बहन मनदीप कौर भी पढ़ती थी। स्कूल में हॉकी की सुविधा थी। इसी वजह से उसकी हॉकी में काफी सुधार हुआ।”
सतनाम ने बताया, “कैरों से पहले मैं गुरजीत को अजनाला के स्कूल ले जाया करता था। ये स्कूल मेरे घर से 12 किलोमीटर दूर था। तब मेरे पास बाइक नहीं थी। मैं साइकल से ही उसे स्कूल छोड़ने जाया करता था। उसकी बचपन से ही हॉकी में रूचि थी, जो दिन-ब-दिन बढ़ती गई।”
सतनाम सिंह एक किसान हैं। उनकी आर्थिक स्थिति इतनी अच्छी नहीं थी कि वह गुरजीत की हॉकी ट्रेनिंग का खर्चा उठा सके। सतनाम कहते हैं, “अपना घर चलाने और गुरजीत की ट्रेनिंग का खर्चा उठाने के लिए मुझे अपने दोस्त से उधार पैसे लेने पड़े।”
पैसों की तंगी के अलावा, गुरजीत के परिवार को पड़ोसियों और रिश्तेदारों के ताने भी सुनने पड़े। गुरजीत ने टीओआई को बताया, “पड़ोसी और रिश्तेदार मेरे पिता को ताने मारते थे। वो कहते, “तेरी बेटी लड़कों के साथ खेलती है। छोटे कपड़े पहनती हैं। लेकिन मेरे पिता ने इन सभी टिप्पणियों का करारा जवाब दिया।”