सुशील कुमार भारत के सबसे बड़े पहलवान माने जाते हैं, जिन्होंने भारत को ओलंपिक में दो पदक(सिल्वर और कांस्य), राष्ट्रमंडल खेलों में तीन गोल्ड मेडल और एशियन गेम्स में एक कांस्य पदक अपने नाम कर चुके हैं। लेकिन एशियन गेम्स 2018 में जब पूरे देश को सुशील कुमार से गोल्ड मेडल की उम्मीद थी, तो उन्होंने पूरे देश को निराश किया।
पूरे रेसलिंग एरीना में ओलंपिक मेडलिस्ट सुशील कुमाए क्वालिफिकेशन राउंड में बहरीन के एडम बतिरोव से 5-3 में हार गए। सुशील कुमार ने बाउट की शुरुआत दो प्वाइंट की बढ़त बनाते हुए की, लेकिन वह उसके बाद पूरी बाउट में बहुत ही धीमे नजर आए और उसका लाभ बहरीन के पहलवान ने उठाया।

बीते चार वर्षों में सुशील कुमार की ये दूसरी हार है, इससे पहले वह तबलिसी ग्रांपि में पोलैंड की पहलवान से हार गए थे। पहले हाफ में सुशील कुमार ने 2-1 की बढ़त बना रखी थी, लेकिन उसके बाद वह इस मुकाबले में पूरी तरह से बाहर हो गए।
35 वर्षीय इस भारतीय रेसलर को इससे पहले आखिरी बार मई साल 2014 में इटली के सासारी में आयोजित हुई कुश्ती प्रतियोगिता में फ्रांस के लुका लैंपिस ने मात दिया था। उसके बाद से सुशील कुमार एक भी कुश्ती नहीं हारे थे।
यही नहीं सुशील कुमार 2 साल बाद बीते महीने टारगेट ओलंपिक पोडियम स्कीम टॉप्स में शामिल किया गया था। यानी देश को इस दिग्गज रेसलर से ओलंपिक में पदक खासी उम्मीद है। 74 किग्रा भारवर्ग में मौजूदा समय में देश में सुशील की बराबरी वाला कोई अन्य पहलवान भी नहीं है।
हालांकि सुशील कुमार को जिस पहलवान एशियाई खेलों के पहले मुकाबले में ही मात दे दिया, वह कोई मामूली पहलवान नहीं हैं। जानें उनके बारे में ये खास बातेंः
एडम बतिरोव का जन्म 13 जनवरी 1985 में रुस में हुआ था, सन् 1992 में सात वर्ष की उम्र से एडम रेसलिंग करने लगे थे। जहां वह रूस की तरफ से 2015 तक रेसलिंग करते रहे, हालांकि इस पहलवान ने ज्यादा मौके की तलाश में बहरीन का रुख कर लिया। जहां वह साल 2016 के रियो ओलंपिक में बहरीन की तरफ से लड़े।

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एडम बतिरोव दक्षिणी रूस के डोगेस्टन में रहते थे, जो मुस्लिम बहुसंख्यक इलाका है। कैस्पियन सागर और खूबसूरत पर्वतीय इलाके में पहलवानी प्राकृतिक देन मानी जाती है। क्योंकि पूर्व में इस इलाके में छोटे-छोटे ग्रुप में लोग रहते थे, जो बेहद ही हिंसक होते थे। लेकिन आधुनिक दौर में ये लड़ाके पहलवान बन गए और मौजूदा समय में तकरीबन एक हजार से ज्यादा युवा लड़के पहलवानी कर रहे हैं।

बतिरोव के भाई मावलेत ने साल 2004 और 2008 के ओलंपिक गेम्स गोल्ड मेडल जीत चुके हैं, इसके अलावा उनके भतीजे माखुद मागोमेदोव ने अजरबैजान की तरफ से कुश्ती लड़ी है। उनके क्षेत्र में फिल्मों के थियेटर को जिम में तब्दील करके कुश्ती को बढ़ावा दिया जा रहा है।