भारत में खेलों के प्रति सोच बदलने का नाम ही नहीं ले रही है, क्योंकि यहां मेडल जीतने वाले खिलाड़ी की इज्जत भी नहीं है। हाल ही में जकार्ता में संपन्न हुए एशियाई खेलों में देश को ब्रांज मेडल दिलाने वाले खिलाड़ी हरीश कुमार को वह सब अभी भी झेलना पड़ रहा है, जो वह एशियन गेम्स से पहले झेल रहे थे।
एशियन गेम्स 2018 में भारत ने ऐतिहासिक प्रदर्शन करते हुए 15 गोल्ड, 24 सिल्वर और 30 ब्रॉन्ज मेडल जीते। जिसके बाद मेडल जीतने वाले खिलाड़ियों पर पैसों की बौछार हो रही है, लेकिन दूसरी तरफ अगर हरीश कुमार जो सेपक टकरा खेल में देश को कांस्य पदक दिलाने में अहम योगदान दिया है। लेकिन हरीश कुमार इंडोनेशिया से आते ही चाय बेचने लगे, ये उनका नहीं इस देश का दुर्भाग्य है।

हरीश जब जकार्ता से वापिस लौटे तो उनका शानदार तरीके से स्वागत हुआ लेकिन कुछ ही दिन बाद वह चाय बेचने को मजबूर है। हरीश की माने तो उनके पिता की चाय की दुकान है और यही हमारे परिवार की कमाई का इकलौता जरिया है। मेरे घर में दो बहनें है जो दोनों ही नहीं देख सकती इसलिए आते ही अपने पिता की मदद करना बहुत जरूरी है ताकि हमारी परिवार सही तरीके से चल पाए।
वहीं मीडिया रिपोर्ट्स के मुताबिक जब हरीश से पूछा गया कि क्या सरकार ने उन्हें नौकरी का ऑफर दिया है। तो उनका जवाब क्लियर नहीं था, लेकिन एक बात उन्होंने साफ कही कि सरकार की तरफ से उन्हें कोई आश्वासन नहीं दिया गया है।

इससे साफ हो जाता है कि भारत में क्रिकेट के बाद बाकी खेलों के खिलाड़ियों को वह सम्मान नहीं मिलता है, जिसके वह हकदार हैं। हालांकि सरकार से उम्मीद है कि अब ये मामला वह इस खिलाड़ी के लिए भी कुछ करे क्योंकि जब ये खिलाड़ी कठिन परिस्थिति में भी देश को पदक जिता सकता है तो सरकार की भी जिम्मेदारी बनती है कि वह इस खिलाड़ी को पूरा प्रोत्साहन दे।
सेपक टकरा में देश को पहली बार मेडल मिला है, लेकिन हरीश की कहानी काफी दर्द भरी है। वह उस समय से चाय की दुकान पर काम कर रहे हैं, जब दुकान पर आने वाले ग्राहक उन्हें छोटू कहकर बुलाते थे। उनकी दुकान दिल्ली के मजनू का टीला में है।

सेपक टकरा, मलय और थाई भाषा के दो शब्द हैं, जिसमें सेपक का मतलब किक लगाना है, वहीं टकरा का अर्थ हल्की गेंद होता है। इस खेल में बॉल को वॉलीबॉल की तरह नेट के दूसरी पार भेजना होता है, लेकिन इसमें हाथ की जगह पैर, घुटने, सीने और सिर का ही इस्तेमाल करना होता है।
हरीश ने बचपन में दोस्तों के साथ टायर को कैंची से काटकर उसकी गेंद बनाकर खेलते थे। एक दिन इसे खेलते हुए उन्हें कोच हेमराज ने देख लिया, जिसके बाद उन्होंने उन्हें सेपक टकरा खेलने को कहा। इसके बाद से यह उनका जुनून बन गया।
इस खेल में हरीश बेहतरीन हैं, लेकिन उन्हें कई दिक्कतों से जूझना पड़ता है, उनकी दो बहनें हैं जो नेत्रहीन हैं। जबकि चाय की दुकान ही उनके परिवार के लिए सहारा है, परिवार बड़ा है इसलिए उनके पिता ने कहा कि खेलना छोड़ो और दुकान में काम करवाओ, कमाई बढ़ेगी।
हालांकि उनके कोच हेमराज और बड़े भाई नवीन ने अपने छोटे भाई की काफी मदद की। कोच हेमराज तो हरीश को स्टेडियम आने-जाने का किराया भी देते हैं, हरीश पहले स्टेट और फिर नेशनल लेवल पर खेलने लगे। वह अच्छा खेलते गए और अपनी मंजिल के करीब पहुंचते गए, लेकिन देश के लिए मेडल जीतने के बाद भी उन्हें चाय बेचना पड़ रहा है।