अक्सर जन्मदिन के अवसर पर बड़े बुजुर्गों का आशीर्वाद लिया जाता है, उपहार से भेट होती है। सोचिये आपके जन्मदिवस के दिन ही कोई ऐसा हादसा हो जिससे आप अंग विहीन हो जाये। कल्पना मात्र से ही आप काँप उठेंगे। लेकिन उसके लिए तो मानो वो हादसा नयी किरण लेकर आया। हताश जरुर थी लेकिन उसे हार पसंद नहीं थी। अपनी हिम्मत और धैर्य के बूते देश भर में नाम कमाया। सूरज की लालिमा की तरह निखरी और जिंदगी के अँधेरे को आशा की किरण से उजागर किया। जहाँ उसे चलने में भी परेशानी हुआ करती थी, वही लड़की भारत में मैराथन दौड़ने लगी और बनी भारत की महिला ब्लेड रनर।
हम बात कर रहे हैं किरन कनौजिया की जिसने अपने अदम्य साहस के दम पर असंभव को संभव कर दिखाया और लोगों को कठिनाइयों से लड़कर आगे बढ़ने के लिए प्रोत्साहित किया। कृत्रिम टांग के सहारे उन्होंने फिर से ज़िंदगी के साथ क़दम से क़दम से मिलाकर चलने की कोशिश शुरू की और ज़िंदगी को नई दिशा देने की ठानी।

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किरन की उपलब्धि को देख कर हम कह सकते है, शायद असंभव शब्द उसके इरादों के शब्दकोश से नदारद था। रुकना उन्होंने सीखा नहीं। भारत की पहली महिला ब्लेड रनर बनने तक का सफ़र मुश्किलों भरा था। 2011 में जब वह अपना जन्मदिन मनाने के लिए हैदराबाद से फ़रीदाबाद आने के लिए ट्रेन में सफ़र कर रही थी इस दौरान पलवल स्टेशन के पास कुछ उपद्रवी लड़कों ने उनका बैग छिनने की नाकाम कोशिश की और इस दौरान हुई छीना झपटी में वह ट्रेन से गिर गईं और उनका पैर रेलवे ट्रैक की पटरियों में फंस गया। उन्हें तत्काल अस्पताल ले जाया गया जहां इलाज के दौरान डॉक्टर्स को उनकी एक टांग काटनी पड़ी। टांग कटने के बाद उनकी प्रतिक्रिया थी, “मुझे लगा कि जन्मदिन पर फिर नया जन्म मिला है”।
झकझोर कर देने वाले इस हादसे ने किरण को आतंरिक रूप से कमजोर कर दिया लेकिन किरन ने हार नहीं मानी। वो जिंदगी भर किसी के दया का पात्र नहीं बनना चाहती थी। उसने ठान लिया था कि जो हुआ अब उसे बदला तो नहीं जा सकता लेकिन अपनी इसी कमजोरी को ताकत बनाकर आने वाले भविष्य को सुनहरा बनाया जा सकता है।

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फरीदाबाद की रहने वाली किरन हमेशा से ही फिटनेस के प्रति काफी सजग थीं, ऐरोबिक्स किया करतीं थीं। 6 महीने के लंबे अंतराल के बाद वो उठीं तो लेकिन उठते ही गिर पड़ी, उन्हें फिर अस्पताल ले जाया गया और वहां एक ऑपरेशन हुआ। डॉक्टरों ने दौड़-भाग न करने की सख्त हिदायत दी। नए सिरे से अपनी जिंदगी को आगे बढ़ाने का प्रण लिए किरण सब कुछ भुला देना चाहती थी। उन्होंने एमसीए किया है और हैदराबाद की इंफोसिस कंपनी में कार्यरत हैं। चूंकि किरण घर की सबसे बड़ी बेटी थीं इसलिए परिवार के प्रति वो अपनी जिम्मेदारी को समझतीं थी। वापस नौकरी करने गईं जहां उन्हें उनके साथियों ने पूरा सहयोग दिया।
हैदराबाद में उन्हें अपने जैसे कई लोग मिले किरन दक्षिण रिहेबलिटेशन सेंटर गईं और वहां उन्होंने देखा कि लोग रनिंग के लिए ब्लेड का प्रयोग कर रहे थे। फिर क्या था वहां के डॉक्टर्स ने उनका बहुत हौंसला बढ़ाया और उन्हें ब्लेड को प्रयोग करने के लिए कहा। ब्लेड को लगाने के बाद किरन ने देखा कि वो अब आसानी से भाग सकतीं थीं। वो धीरे-धीरे दौड़ने की प्रैक्टिस शुरू करने लगी। खुद को कामयाब होता देख अब चींजें आसान होने लगी। उन्होंने भी आर्टीफिशल लेग का प्रयोग शुरू किया।

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दक्षिण रिहेबलिटेशन सेंटर के बाकी लोगों ने एक ग्रुप बनाया और एक दूसरे को प्रोत्साहित करने लगे। ये सब जब एक साथ मैराथन के लिए निकले तो इन्हें देखकर लोगों ने भी इनका हौंसला बढ़ाया। किरन पहले तो 5 किलोमीटर भागीं फिर कुछ समय बाद उन्होंने अपना लक्ष्य बढ़ाया और 10 किलोमीटर दौड़ लगाने लगीं। उसके बाद उन्होंने अपना लक्ष्य 21 किलोमीटर किया। किरन खुद से ही प्रतिस्पर्धा करने लगीं, खुद को और मजबूत बनाने लगीं और जुट गई नये अध्याय को लिखने में। सुबह जाकर प्रैक्टिस में जाना अब किरन की रूटीन में शामिल हो चुका था।
अपनी उपलब्धि पर बोलते हुए वो कहती हैं, “मैंने अपने आप को हाफ़ मैराथन के लिए चैलेंज किया यानी 21 किलोमीटर। मुझे इससे कोई मतलब नहीं था कि मैं कितने समय में मैराथन ख़त्म करती हूं। बस मुझे रेस पूरी करनी थी। हैदराबाद हाफ़ मैराथन मैंने साढ़े तीन घंटे में पूरी की, दिल्ली की रेस 2.58 में और इस महीने मुंबई मैराथन 2.44 मिनट में”।

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भले ही उन्होंने अपना एक पैर गंवाया लेकिन इसमें कोई दो राय नहीं कि इस घटना ने उन्हें एक मजबूत इंसान बना दिया। जिंदगी के प्रति उनका नजरिया अब काफी सकारात्मक हो गया है, अब वो जिंदगी को ज्यादा खुल के जीना चाहतीं हैं और अब वो केवल अपने लिए ही नहीं बल्कि बाकी लोगों को प्रेरित करके उनकी जिंदगी में भी बदलाव लाना चाहतीं हैं”। दक्षिण अफ़्रीकी धावक ऑस्कर पिस्टोरियस से प्रेरणा लेने वाली किरन लगातार मैराथन दौड़ती हैं। अपने नाम के अनुरूप ही वो अपने जैसे कई लोगों के लिए उम्मीद की किरण बनी हुई हैं और बतौर महिला ब्लेड रनर ख़ूब नाम कमा रही हैं।