सोचिये किसी कि दोनों भुजाएं किसी दुर्घटना में चली जाये तो उसका जीना मुश्किल हो जाता है। लेकिन कहते हैं न कि इरादे मजबूत होतो चट्टानें भी मोम की तरह पिघल जाती है। हम बात कर रहें हैं जम्मू-कश्मीर के रहने वाले चंदीप सिंह सूडान की जिन्होंने 100 मीटर की पैरा स्केटिंग में विश्व रिकॉर्ड (13.9 सेकेंड) बनाते हुए 19 वर्ष कि आयु में दो स्वर्ण पदक जीतकर भारत का नाम रोशन किया है। उनके लिए यह राह इतनी आसान नहीं थी लेकिन सारी मुश्किलों को किनारे करते हुए उन्होंने वह कारनामा कर दिखाया जो असंभव लगता था।
गौरतलब है कि 11 साल की उम्र में उन्हें 11,000 वोल्ट का बिजली का शॉक लगा, इस हादसे में उनके दोनों हाथ बुरी तरह से जल गए। शॉक लगने से उनके दोनों हाथों में इनफेक्शन फैल जाने की वजह से डॉक्टर्स को उनके दोनों हाथ काटने पड़े। शॉक इतना तगड़ा था कि उनका बच पना नामुमकिन था लेकिन क़िस्मत को कुछ और ही मंजूर था। आपको बता दें 2011 में हुए इस हादसे से पहले चंदीप स्कूल, जोनल और स्टेट लेवल पर फुटबॉल प्लेयर, एथलीट और स्केटर थे।
बकौल चंदीप “यह मेरे लिए एक बड़ा हादसा था और इसका मेरे दिमाग पर बहुत बुरा प्रभाव पड़ा। मैं बहुत रोया जब मुझे ये पता चला कि अब मेरे दोनों हाथ नहीं हैं। मेरा परिवार मुझे समझाता था कि मेरे साथ जो हो चुका है मैं उसके बारे में भूल जाऊं और सोचूं कि आगे क्या करना है।”

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सारी उम्मीदें खोता देख चंदीप ने दोबारा लड़ने की सोची और पूरी हिम्मत जुटाकर दोबारा स्केटिंग करना शुरू किया। शुरुआत में उन्हें स्केटिंग करने में बहुत दिक्कतें हुईं, क्योंकि स्केटिंग करते वक्त संतुलन बनाने के लिए बाहों की आवश्यकता होती है। चंदीप कहते हैं कि “शुरुआत में बहुत बार गिरता था, क्योंकि मेरी बाहें नहीं थीं, लेकिन कई बार गिरने के बाद आखिर मैंने अपने आपको संभाल लिया।” वह बाकी के नेशनल स्केटर्स के साथ प्रेक्टिस करते थे। उनकी मेहनत रंग लायी और आज वह नेशनल लेवल के स्केटर हैं और 100 मीटर की पैरा स्केटिंग में विश्व रिकॉर्ड (13.9 सेकेंड) बनाया है।
अपनी इस उपलब्धि पर चंदीप का कहना है कि “मेरे प्रेरणास्रोत, मेरी फैमिली और मेरे दोस्त हैं। मैं सोचता था कि मेरे लिए वे बहुत कुछ कर रहे हैं तो बदले में मुझे भी कुछ ऐसा करना चाहिए जिससे उन्हें मुझ पर गर्व हो। यही वह वक्त था जब मैंने तय किया कि मुझे कुछ करना है। जब मैंने स्केटिंग चुनी तो लोग कहते थे कि स्केटिंग में सारा खेल बैलेंस का होता है और बिना बाहों के आप बैलेंस नहीं बना सकते। मैंने इसे चैलेंज की तरह लिया। ऐसे लोगों को गलत साबित करने के लिए मैंने स्केटिंग करना शुरू किया।”
मिल्खा सिंह को अपना आदर्श मानने वाले चंदीप यहीं नहीं रुके। अब वह मार्शल आर्ट्स और ताइक्वांडो के चैंपियन बन गए हैं। उन्होंने साउथ कोरिया में हुए किमुन्यांग कप ताइक्वांडो चैंपियनशिप में दो गोल्ड मैडल जीते। इससे पहले उन्होंने वियतनाम में हुए एशियन ताइक्वांडो चैंपियनशिप और नेपाल में हुए इंटरनेशनल ताइक्वांडो चैंपियनशिप में गोल्ड मेडल जीता था।