अगर दिल में लगन हो कुछ कर गुजरने की और आपकी मेहनत सच्ची हो तो कोई आपको आपका मनचाहा लक्ष्य पाने से नहीं रोक सकता। चुनौतियों का सामना तो हर कदम पर करना ही होगा, लेकिन हर कदम चुनौतियों से सामना होने के बावजूद भी अगर डटकर खड़े रहो तो जीत निश्चित रूप से मिलती है। टेनिस जैसा खेल जो पूरी तरह बेहतर शारीरिक क्षमता की मांग करता है, इसे दिव्यांग खिलाड़ी भी उतने ही जोश से खेलते हैं, जैसे कि अन्य सामान्य खिलाड़ी। इनके खेल में बस एक और उपकरण शामिल होता है, व्हीलचेयर।
साल 1976 में व्हीलचेयर टेनिस की लोकप्रियता को बढ़ाने का मुख्य श्रेय ब्रेड पार्क्स को जाता है। इन्हें प्रतियोगी व्हीलचेयर टेनिस का जनक कहा जाता है। 1982 में फ्रांस ऐसा पहला देश बना जिसने व्हीलचेयर टेनिस टूर्नामेंट का आयोजन किया। इस प्रकार की टेनिस प्रतियोगिताओं में कोर्ट का आकार, गेंद, रैकेट आदि सब सामान्य होते हैं। लेकिन दो बातें इसे सामान्य टेनिस से अलग बनती हैं, पहली ये कि खिलाड़ी विशेष रूप से डिजाइन की गयी व्हीलचेयर पर बैठकर खेलते हैं और दूसरी बात ये कि यहां गेंद ज़मीन को दो बार छू सकती है।
व्हीलचेयर टेनिस ग्रैंड स्लैम टूर्नामेंटों में भी खेली जाती है और धीरे-धीरे लोकप्रिय भी हो रही है। इसके अलावा यह समर पैरालंपिक्स के मुख्य खेलों में से एक है। इस में तीन श्रेणियाँ होती हैं – मेन्स, वीमंस, व क्वाड (इसे मिश्रित युगल भी कहा जाता है)। सभी श्रेणियों में सिंगल व डबल दोनों टीम होती हैं। इस खेल को आरम्भ में पैरालम्पिक में प्रदर्शन(डिमॉन्सट्रेशन) के लिए खेला गया था। समय के साथ यह अपनी पहचान बनाता गया और साल 2000 में सिडनी समर पैरालम्पिक्स से लोगों का ध्यान इसकी तरफ गया और इसने व्हीलचेयर टेनिस के ग्रैंड स्लैम आयोजनों मे शामिल होने का रास्ता खोल दिया।
इस खेल में इतनी जिंदादिली और साहस से खेल रहे खिलाड़ियों के देखकर दिल अपने आप ही तालियां बजाने लगता है। इन्हें खेलते देखकर देखकर आपको पता भी नहीं चलेगा कि अगर मेहनत व लगन से किसी मुश्किल का सामना किया जाये तो वो खुद-ब-खुद आसान हो जाती है।