दो बार की कॉमनवेल्थ खेलों की गोल्ड मेडल विजेता भारत की स्टार वेटलिफ्टर संजीता चानू डोप टेस्ट में फेल हो गई हैं। उन्हें अवैध स्टेरॉइड एनाबोलिक के सेवन करने का दोषी पाया गया है। जिसकी वजह से अंतरराष्ट्रीय भारोत्तोलन महासंघ (आईडब्ल्यूएफ) ने उन्हें फिलहाल के लिए सस्पेंड कर दिया है।
आईडब्ल्यूएफ ने एक बयान जारी करके कहा कि संजीता चानू को टोप टेस्ट पॉजीटिव पाया गया है, सैंपल में एनाबॉलिक स्टेरॉइड टेस्टोस्टेरॉन नाम का ड्रग पाया गया है। जिसके चलते उन्हें डोपिंग रोधी नियम का उल्लंघन करने पर अस्थायी रूप से निलंबित कर दिया गया है।
मणिपुर की संजीता के पास अब आईडब्ल्यूएफ के फैसले को डोपिंग रोधी अनुशासन समिति के समक्ष चुनौती देने का अधिकार है, लेकिन अगर वह अपना केस हार जाती हैं तो गोल्ड कोस्ट में जीते हुए स्वर्ण पदक को उनसे वापस ले लिया जाएगा।
गोल्ड कोस्ट ऑस्ट्रेलिया में संजीता ने 53 किलोग्राम भार वर्ग में कुल 192 किलो वजन उठाकर स्वर्ण पदक जीता था और नया रिकॉर्ड स्थापित किया था। हालांकि फेडरेशन ने अभी इस पूरे मामले पर कोई अन्य जानकारी नहीं जारी की है। आईडब्ल्यूएफ ने साफ कहा है कि वह इस मामले के समाप्त होने तक और कोई टिप्पणी नहीं करेगा।
यह पता चला है कि संजीता को भारतीय भारोत्तोलन महासंघ ने शिविर छोड़ने को कहा है जिसके बाद वह अपने घर मणिपुर के लिए रवाना हो गई हैं. हिमाचल प्रदेश के शिलारू स्थित साई सेंटर में एशियाई खेलों से पूर्व तैयारियों में दूसरे भारोत्तोलक अपना अभ्यास जारी रखे हुए हैं।
हालांकि भारतीय भारत्तोलक संघ और विश्व भारत्तोलक संघ पर भी ये सवाल उठता है। क्योंकि ये सैंपल अमेरिका में हुए विश्व चैंपियनशिप के बाद बीते साल नवंबर में ली गयी थी, तो इसका परिणाम 6 महीने बाद क्यों आया है।
आपको बता दें डोपिंग संस्थाएं हफ्ते दर हफ्ते दवाओं को बैन करती रहती हैं, जबकि ये टेस्ट ही 6 महीने पुराना है। ऐसे में किसी एथलीट को 6 महीने पहले के सब्सटेंस में पॉजीटिव दिखा देना उसके करियर के साथ बहुत ही घिनौना रवैया है। यही नहीं भारतीय वेटलिफ्टर संघ की ये सबसे बड़ी असफलता है और संघ की कार्य प्रणाली गंभीर सवालों के घेरे में है।