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कल तक नीतू को ताना मारने वाले गाँव के लोग आज उसकी प्रसंशा करते नहीं थकते। नीतू को उसके पूरे इलाके के लोग बड़े सम्मान की दृष्टि से देखते हैं। लेकिन पहले ऐसा नहीं था। कुछ अजीब ही कहानी थी नीतू की।

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घर में खाने के लाले ऊपर से पिता को बेटी के हाथ पीले करने की जल्दबाजी। घर की माली हालत ख़राब होने के चलते पिता ने सातवीं कक्षा में पढ़ने वाली 13 वर्षीय नीतू की शादी, 45 साल के एक अधेड़ उम्र के व्यक्ति के साथ कर दी। नीतू की किस्मत यहाँ भी दगाबाज़ निकली। बेरोजगार और मानसिक रूप से कमजोर पति के यहाँ दो वक़्त की रोटी तक की किल्लत थी। ससुर की बुरी नियत के चलते कई बार अपने ही ससुर द्वारा उसके साथ दुष्कर्म करने की नाकामयाब कोशिश की गयी। इन हालातों में जीना दुश्वार था। जैसे-तैसे शादी के सप्ताह बाद ही घर छोड़ भाग आई नीतू। मज़बूरी में बेटी को बोझ समझने वाले पिता ने दोबारा नीतू की शादी करवा दी। इस बार शायद होनी को कुछ और ही मंजूर था। शादी के साल भीतर ही वो जुड़वाँ बच्चों की माँ बन गयी। दूसरा पति उससे प्रेम का भाव रखता था। परन्तु बेरोजगारी के चलते बच्चों के बड़े होने पर उनके पास इतने भी पैसे नहीं थे वो बच्चों की प्राथमिक मूलभूत आवश्यकताओं को ही पूरा कर सके।

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संयोग से एक दिन टेलीविजन पर कुश्ती का मैच देखते हुए नीतू के मन में ख्याल आया कि क्यों न वह भी इसे सीखें। मन की इच्छा को पति और सास से जाहिर की लेकिन दोनों ने नाराज़गी व्यक्त करते हुए उसे घर के कामकाज़ में ध्यान देने को कहा। चट्टान से मजबूत इरादों वाली नीतू ने तय कर लिया था कि उसे पहलवानी से ही अपने और अपने बच्चों के भविष्य को सवारना है।
नीतू कहती है, “बचपन से ही मैं कुश्ती के प्रति आकर्षित रही थी। जब 2010 का कॉमन वेल्थ गेम्स भारत में हो रहा था, तब मैंने कुश्ती का पूरा मैच टी वी पर देखा। उसी समय मैंने यह सोचा कि क्यों न इसे एक करियर के रूप में चुना जाये।”

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पुरुषों के वर्चस्व वाले खेल को भला महिला कैसे लेकिन खेल सकती है? डगर बेहद मुश्किल थी। शुरुआत में तो उन्हें अखाड़े के भीतर दाखिल भी नहीं होने दिया गया। 80 किलों की नीतू खुद को शारीरिक रूप से फिट रखने और अपने वजन कम करने के लिए रोज सुबह 3 बजे उठ जाती और पूरे गांव के जगने से पहले ही दौड़-भाग कर लौट आया करती।

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कहा जाता है आपके भीतर कुछ करने का जुनून हो तो मदद के हाथ अपने आप बढ़ जाते हैं। भविष्य में होने वाली घटनाओं से अनजान नीतू को ऐसे ही एक शख्स का सहारा मिला जिन्होंने उनकी सोयी हुई किस्मत को ही जगा दिया। सारे गतिरोधों से लड़ते हुए अपना संघर्ष जारी रखने वाली नीतू , साल 2011 में ‘जिले सिंह’ नामक शख्स से मिलीं, जिन्होंने उन्हें ट्रेनिंग देनी शुरू कर दी। उनकी मेहनत रजग लाई और उसी साल एक राष्ट्रीय स्तर की प्रतियोगिता में नीतू ने कांस्य पदक जीता। आपको बता दें हाल ही में उन्होंने 48 किलोग्राम कैटेगरी में राष्ट्रीय स्तर पर सिल्वर पदक जीता है। इसके अलावा वह ब्राजील में संपन्न जूनियर चैंपियनशिप में भारत का प्रतिनिधित्व भी कर चुकी हैं।

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सुशील कुमार को अपना हीरों मानने वाली नीतू कहती हैं, “जो गाँव वाले मेरे निर्णय से नाराज़ थे, वो आज मेरी उपलब्धियों पर गर्व करते हैं। मैं अब अखाड़े में भी जाती हूँ और यहाँ के लोग अपनी बेटियों को मेरे जैसे बनने की सलाह देते हैं। इन सब से मुझे बहुत ख़ुशी मिलती है।”
अब सफलता भला ऐसे लोगों को नहीं मिलेगी तो फिर किसे मिलेगी? देश की बेटी होने के नाते पूरे देश को नीतू पर नाज हैं। मुश्किल हालातों का सामना करते हुए आज नीतू ने जो मुकाम हासिल किया है उसे कर पाना सभी के बस की बात नहीं हैं।