भारत में खेल को धर्म का दर्जा दिया जाता है और खिलाड़ियों की उपलब्धियों पर जश्न मनाया जाता है। अपनी जीत से देश में दिवाली जैसा माहौल बनाने वाले खिलाड़ियों को मान और सम्मान भी दिया जाता है। उनके प्रशंसक उनकी जीत में अपनी ख़ुशी ढूंढ लेते हैं। ऐसे ही भारतीय कुश्ती के एक दिग्गज खिलाड़ी हैं जिन्होंने अपनी जीत से देशवासियों को ख़ुशी की दोहरी सौगात दी थी।
वो हैं विश्व के नंबर-1 पहलवान बजरंग पुनिया जिन्होंने दो सप्ताह के भीतर गुरुवार को अपना दूसरा खिताब जीता। गौरतलब है कि उन्होंने रूस के दागेस्तान में खेले गए अली एलिएव टूर्नामेंट में गोल्ड मेडल जीता था। इस प्रतियोगिता में उन्होंने 65 किलोग्राम फ्रीस्टाइल में रूसी खिलाड़ी विक्टर रासाडिन को 13-8 से हराया था। इससे पहले बजरंग ने पिछले सप्ताह चीन में हुई एशियाई चैम्पियनशिप में स्वर्ण पदक अपने नाम किया। 25 वर्षीय बजरंग का संघर्ष प्रेरणदायी रहा है। यहाँ हम एक नज़र डालेंगे उनके जीवन संघर्ष पर जिसने उन्हें विश्व का नंबर 1 पहलवान बना दिया।
बजरंग पुनिया के जीवन की कहानी

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भारतीय कुश्ती के दिग्गज पहलवान माने जाने वाले बजरंग का जन्म हरियाणा में हुआ था। उन्होंने अपने कुश्ती करियर की शुरुआत अपने घर से ही की थी। परिवार की आर्थिक स्थिति ठीक नहीं होने के चलते बजरंग के पिता कोई खास उपलब्धि नहीं हासिल कर सके लेकिन उन्होंने उस वक़्त यह ठान लिया था कि वो अपने बेटे को कुश्ती की तालीम देंगे और इस क्षेत्र में बड़ा बनाएंगे। जो परेशानियाँ उन्होंने झेली है वो अपने बेटे को नहीं झेलने देंगे। बड़े होने पर बजरंग अक्सर पैसे बचाने के लिए रिक्शा या बस के बजाय साइकिल से यात्रा करते थे और बचे हुए पैसे को अपने आहार पर खर्च किया करते थे। उनके घर की माली हालत बेहद ख़राब थी। फिर भी आर्थिक स्थित उनकी सफलता में बाधा नहीं बन सकी। भारतीय खेल प्राधिकरण में प्रशिक्षण लेने के लिए उनका परिवार सोनीपत शिफ्ट हो गया था।
योगेश्वर दत्त को अपना आदर्श मानते हैं बजरंग

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कुश्ती में कई कारनामे कर चुके बजरंग अपने नायक पद्म श्री योगेश्वर दत्त को अपना गुरु मानते हैं। आमतौर पर बजरंग 65 किलोग्राम फ्रीस्टाइल में भाग लेने से कतराते थे क्योंकि उनके गुरु योगेश्वर इस कैटगरी में खेला करते थे। लेकिन जब वो रिटायर होने के करीब आए तो बजरंग को उनका उत्तराधिकारी बनना पड़ा।
बजरंग पुनिया का अद्भुद सफ़र

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भारतीय कुश्ती में नया अध्याय लिखने वाले बजरंग के खेलने की स्टाइल एकदम अलग है। 65 किलोग्राम कैटेगरी में कुश्ती लड़ने वाले पुनिया ने साल 2013 में हुए एशियाई कुश्ती चैंपियनशिप में कांस्य पदक जीतकर कुश्ती जगत में अपनी अलग पहचान बनाई थी। इसके बाद साल 2014 में हुए राष्ट्रमंडल खेलों और उसी साल हुए एशियाई खेलों में रजत पदक जीतने वाले बजरंग ने रेसलिंग में नया मुकाम हासिल किया। उनके इस अद्भुद खेल को देखते हुए उन्हें साल 2015 में भारत सरकार द्वारा अर्जुन पुरस्कार से सम्मानित किया गया। इसके बाद उनके करियर ग्राफ में एकदम से तेजी देखी गई। अपनी लगन और मेहनत के दम पर वो कई मौकों पर देश का मान बढ़ाते रहे हैं।
ऐसा ही एक मौक़ा आया साल 2018 में जब उन्होंने उस साल हुए राष्ट्रमंडल खेलों और एशियाई खेलों में पुरुषों की 65 किलोग्राम श्रेणी में हुए फ़्रीस्टाइल कुश्ती में स्वर्ण पदक जीता। उनका विजयरथ यही नहीं रुका साल 2019 में चीन के शीआन में आयोजित एशियाई कुश्ती चैंपियनशिप में उन्होंने स्वर्ण पदक अपने नाम किया और अलीयेव कुश्ती टूर्नामेंट में एक बार फिर से स्वर्ण पदक जीतकर देशवासियों को जश्न मनाने का मौक़ा दिया। उनकी इस उपलब्धि को देखते हुए उन्हें राजीव गाँधी खेल रत्न पुरस्कार देने की सिफारिश की गई है।